
देश के 50वें मुख्य न्यायाधीश के पद पर नौ नवंबर 2022 को न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ शपथ लेकर कामकाज शुरू करेंगे. वह इस पद पर 10 नवंबर 2024 तक रहेंगे.न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर संवेदनशील और हनन करने वालों के प्रति कड़े रुख के लिए जाने जाते हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ की सबसे विशिष्ट खासियत है कि वह धैर्य से सुनवाई करते हैं. कुछ दिन पहले जस्टिस चंद्रचूड़ ने लगातार 10 घंटों तक सुनवाई की थी. सुनवाई पूरी करते हुए उन्होंने कहा भी था कि काम ही पूजा है. कानून और न्याय प्रणाली की अलग समझ की वजह से जस्टिस चंद्रचूड़ ने दो बार अपने पिता पूर्व चीफ जस्टिस यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के फैसलों को भी पलट दिया था. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नाम अनगिनत ऐतिहासिक फैसले हैं. हाल ही में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक ऐतिहासिक फैसले दिए, जिसमें महिलाओं के प्रजनन अधिकारों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया. अविवाहित या अकेली गर्भवती महिलाओं को 24 सप्ताह तक गर्भपात करने से रोकने के कानून को रद्द कर सभी महिलाओं को ये अधिकार दिया है. पहली बार मेरिटल रेप को परिभाषित करते हुए पति द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने से गर्भवती विवाहित महिलाओं को भी नया अधिकार दिया है. उन्होंने कहा कि ये समानता के अधिकार की भावना का उल्लंघन करता है. वैवाहिक संस्थानों के भीतर अपमानजनक संबंधों के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए, उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने पहली बार वैवाहिक बलात्कार के अपराध को कानूनी मान्यता देते हुए फैसला सुनाया कि एक विवाहित महिला की जबरदस्ती गर्भावस्था को गर्भपात के प्रयोजनों के लिए वैवाहिक बलात्कार के रूप में माना जा सकता है.
सुपर टेक ट्विन टॉवर को ढहाने के दिए थे आदेश
महिला अधिकारों को लेकर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सेना व नेवी में परमानेंट कमीशन जैसे फैसले सुनाए. नोएडा एक्सप्रेस पर अवैध तरीके से बनाई गई सुपर टेक ट्विन टॉवर को भी ढहाने के आदेश दिए. सोशल पोस्ट करने पर पत्रकार मोहम्मद जुबैर को तुरंत जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए. जस्टिस चंद्रचूड़ कई संविधान पीठों के हिस्सा भी रहे हैं. अयोध्या का ऐतिहासिक फैसला, निजता के अधिकार, व्यभिचार को अपराध से मुक्त करने और समलैंगिता को अपराध यानी IPC की धारा 377 से बाहर करने, सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश, और लिविंग विल जैसे बड़े फैसले दिए हैं.
कई बार साथी जजों के साथ सहमति नहीं जताई
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ उन जजों में से एक हैं, जिन्होंने कभी-कभी अपने साथी जजों के साथ सहमति भी नहीं जताई. आधार के प्रसिद्ध फैसले में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने बहुमत से असहमति जताते हुए कहा था कि आधार को असंवैधानिक रूप से धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था.उन्होंने भीमा कोरेगांव में कथित रूप से हिंसा भड़काने के आरोपी पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी से संबंधित एक मामले में भी असहमति जताई थी, जब पीठ के अन्य दो जजों ने पुणे पुलिस को कानून के अनुसार अपनी जांच जारी रखने की अनुमति दी थी. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को मेहनती जज कहा जाता है. अपने पिछले जन्मदिन पर भी लगातार कई घंटों तक काम करते रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट में इतिहास रचा CJI पिता-पुत्र की जोड़ी ने
देश के 50वें मुख्य न्यायाधीश डॉ धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ पहले ऐसे CJI बनेंगे जिनके पिता भी पहले देश के मुख्य न्यायाधीश रहे हैं. न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार पिता- पुत्र की जोड़ी होगी जिन्होंने देश के मुख्य न्यायाधीश के पद को सुशोभित किया है. लेकिन कानून और न्याय शास्त्र को समझने का उनका अलग नजरिया है. यही वजह है कि उन्होंने रिव्यू के लिए आई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दो बार उन्होंने अपने पिता जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के फैसलों को ही पलटा. निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित करने वाला सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की संविधान पीठ का फैसला एक अनोखे कारण के लिए ऐतिहासिक था. लेकिन जब वो फैसला सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू के लिए आया तो जस्टिस धनंजय वी चंद्रचूड़ ने आपातकाल के दौरान दिए गए उस प्रसिद्ध ADM जबलपुर मामले में अपने पिता वाईवी चंद्रचूड़ के लिखे फैसले को पलट दिया था. 28 अप्रैल, 1976 को, जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ पांच जजों की संविधान पीठ का हिस्सा थे. उस पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाया था कि आपातकाल के दौरान सभी मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते हैं. नागरिकों को अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए संवैधानिक अदालतों से संपर्क करने का अधिकार नहीं है. इसके 41 साल बाद, उनके बेटे और सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसले को खारिज करते हुए कहा कि एडीएम जबलपुर वाले मामले में बहुमत बनाने वाले सभी चार जजों के दिए फैसले में गंभीर त्रुटियां हैं. एडीएम जबलपुर के फैसले द्वारा पैदा की गई अधिकांश समस्याओं को 44 वें संविधान संशोधन द्वारा ठीक कर दिया गया था. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने उस मामले में जस्टिस एच आर खन्ना द्वारा दिए गए अल्पसंख्यक फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि जस्टिस खन्ना द्वारा लिए गए विचार को स्वीकार किया जाना चाहिए. उनके विचारों की ताकत और इसके दृढ़ विश्वास के साहस के लिए सम्मान में स्वीकार किया जाना चाहिए. जस्टिस खन्ना का स्पष्ट रूप से यह मानना सही था कि संविधान के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मान्यता इसके अलावा उस अधिकार के अस्तित्व को नकारती नहीं है और न ही यह एक गलत धारणा हो सकती है कि संविधान को अपनाने में भारत के लोगों ने मानव व्यक्तित्व के सबसे कीमती पहलू, जीवन, स्वतंत्रता और स्वतंत्रता को उस राज्य को सौंप दिया, जिसकी दया पर ये अधिकार निर्भर होंगे. दूसरे व्याभिचार कानून मामले में भी जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और उनके पिता, भारत के पूर्व CJI चंद्रचूड़ शामिल थे.
हमें अपने फैसलों को आज के समय के हिसाब से प्रासंगिक बनाना चाहिए
1985 में, तत्कालीन CJI वाईवी चंद्रचूड़ ने जस्टिस आरएस पाठक और एएन सेन के साथ धारा 497 की वैधता को बरकरार रखा. उस फैसले के भी 33 साल बाद उनके बेटे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले में कहा कि हमें अपने फैसलों को आज के समय के हिसाब से प्रासंगिक बनाना चाहिए.कामकाजी महिलाओं के उदाहरण देखने को मिलते हैं, जो घर की देखभाल करती हैं, उनके पतियों द्वारा मारपीट की जाती है, जो कमाते नहीं हैं. वह तलाक चाहती है लेकिन यह मामला सालों से कोर्ट में लंबित है. अगर वह किसी दूसरे पुरुष में प्यार, स्नेह और सांत्वना खोजती है, तो क्या वह इससे वंचित रह सकती है. उन्होंने लिखा कि अक्सर, व्यभिचार तब होता है जब शादी पहले ही टूट चुकी होती है और युगल अलग रह रहे होते हैं. यदि उनमें से कोई भी किसी अन्य व्यक्ति के साथ यौन संबंध रखता है, तो क्या उसे धारा 497 के तहत दंडित किया जाना चाहिए? व्यभिचार में कानून पितृसत्ता का एक संहिताबद्ध नियम है. यौन स्वायत्तता के सम्मान पर जोर दिया जाना चाहिए. विवाह स्वायत्तता की सीमा को संरक्षित नहीं करता है. धारा 497 विवाह में महिला की अधीनस्थ प्रकृति को अपराध करता है. (संजय शर्मा की रिपोर्ट)