
देश में गंभीर अपराधियों को मृत्युदंड के लिए फांसी की बजाय जहर का इंजेक्शन देने की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि सरकार इसे बदलने को तैयार नहीं है. फांसी की सजा की जगह जहरीला इंजेक्शन का विकल्प देने से केंद्र की अनिच्छा पर सवाल उठाते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने मौखिक रूप से कहा कि समस्या यह है कि सरकार ही इसे बदलने को तैयार नहीं है. यह बहुत पुरानी प्रक्रिया है. समय के साथ चीज़ें बदल गई हैं.
केंद्र की दलील पर SC की टिप्पणी-
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की उस दलील पर कड़ी टिप्पणी की, जिसमें उसने मौत की सजा के लिए 'फांसी' की जगह जहरीला इंजेक्शन (lethal injection) लगाने का विकल्प देने से इंकार किया था. सुनवाई के दौरान ये सुझाव दिया गया कि दोषी को फांसी या जहर का इंजेक्शन, इन दोनों में से किसी एक को चुनने का विकल्प दिया जा सकता है.
केंद्र समय के साथ सोच बदले को तैयार नहीं- कोर्ट
हालांकि, केंद्र के हलफनामे में कहा गया कि ऐसा करना 'व्यवहारिक रूप से संभव नहीं' है. इस पर अदालत ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि केंद्र समय के साथ सोच विकसित करने को तैयार नहीं दिख रहा है. केंद्र की ओर से वरिष्ठ वकील सोनिया माथुर ने दलील दी कि यह मामला नीतिगत निर्णय से जुड़ा है.
मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को-
मामले की अगली सुनवाई अब अगले महीने 11 नवंबर को होगी. यह जनहित याचिका वकील ऋषि मल्होत्रा ने दायर की है. इसमें दलील दी गई है कि फांसी के जरिए दी जाने वाली सजा 'अत्यधिक पीड़ादायक, अमानवीय और क्रूर' है. लिहाजा फांसी के बजाय मौत की सजा जहर का इंजेक्शन, शूटिंग, इलेक्ट्रोक्यूशन या गैस चैंबर से दी जा सकती है. इनसे दोषी की मृत्यु कुछ ही मिनटों में हो जाती है.
फांसी से मृत्युदंड को असंवैधानिक घोषित करने की याचिका-
याचिका में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 354(5) में 'फांसी देकर मृत्युदंड देने' को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है. याचिका में यह भी कहा गया है कि सम्मानजनक मृत्यु का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त होना चाहिए.
याचिकाकर्ता के अनुसार, फांसी की प्रक्रिया में दोषी की मृत्यु घोषित करने में लगभग 40 मिनट लगते हैं, जबकि शूटिंग या जहर के इंजेक्शन के ज़रिए यह प्रक्रिया 5 मिनट में पूरी हो जाती है.
याचिका में संयुक्त राष्ट्र के उस प्रस्ताव का भी हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया था कि जहां मृत्युदंड दिया जाता है, वहां उसे यथासंभव कम पीड़ा पहुंचाने वाले तरीके से लागू किया जाना चाहिए.
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