
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को 72 साल के हो जाएंगे. पीएम मोदी इस बार जन्मदिन के मौके पर मध्य प्रदेश के कूनो पालपुर नेशनल पार्क में रहेंगे. इस दौरान पीएम मोदी चीता परियोजना का शुभारंभ करेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे को लेकर तैयारी चल रही है. कूनो नेशनल पार्क में 7 हेलिपैड बनाए जा रहे हैं. आपको बता दें कि इस दिन ही 8 चीतों को कूनो नेशनल पार्क में लाया जाएगा. नामीबिया से चीतों को नेशनल पार्क में लाया जा रहा है.
क्यों खास है पीएम मोदी का दौरा-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दौरान चीता परियोजना की शुरुआत करेंगे. 70 साल बाद पहली बार भारत में चीता चहलकदमी करते दिखाई देंगे. भारत में आखिरी चीता की मौत साल 1947 में छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में हुई थी. साल 1952 में भारत सरकार ने चीता को विलुप्त मान लिया. लेकिन एक बार फिर कूनो नेशनल पार्क में चीता दिखाए देंगे. इसकी तैयारी की जा रही है.
कूनो पार्क में चीतों के लिए अलग से व्यवस्था-
चीतों को रखने के लिए कूनो पालपुर नेशनल पार्क में अलग से बाड़ा बनाया जा रहा है. जिसमें चीतों को रखा जाएगा. इसको पूरी तरह से सुरक्षित भी किया जा रहा है. इतना ही नहीं, चीतों की सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मी भी तैनात करने की योजना है. बताया जा रहा है कि चीतों के बाड़े से तेंदुए को निकालने के लिए हाथियों की मदद ली जा रही है, ताकि चीतों को किसी तरह का कोई खतरा ना हो.
कूनो अभयारण्य कैसे बना नेशनल पार्क-
साल 1981 में कूनो पालपुर वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना हुई. उस वक्त वन्य अभ्यारण्य का क्षेत्र 344 वर्ग किलोमीटर था. जिसमें भारतीय भेड़िया, बंदर, भारतीय तेंदुआ और नीलगाय जैसे जानवर पाए जाते थे. साल 2018 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया था. नेशनल पार्क मध्य प्रदेश के श्योपुर और मुरैना जिले में पड़ता है. इसमें 404 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र शामिल किया गया है.
क्यों खास है कूनो नेशनल पार्क-
कूनो पालपुर नेशनल पार्क में वैसे तो कई तरह से जानवर पाए जाते हैं. लेकिन इस पार्क में चीता और शेरों के रहने के लिए उपयुक्त माहौल है. इस पार्क में चीता और शेर के भोजन के लिए शिकार की कमी नहीं है. पर्यावरण और मौसम के हिसाब से भी कूनो पार्क बेहतर है. इसलिए अफ्रीकी चीतों के लिए इस पार्क को चुना गया है. गुजरात से एशियाई शेरों को भी इस पार्क में लाने की तैयारी सालों से चल रही है.
एशियाई शेरों को बसाने की भी योजना-
एशियाई शेरों को कूनो अभ्यारण्य में बसाने की योजना पर काम साल 1993 से चल रहा है. लेकिन अब तक इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है. साल 1998 से 2003 तक 1600 परिवारों को विस्थापित किया गया. गुजरात से एशियाई शेरों को लाकर बसाने की योजना है. लेकिन अब तक ये योजना पूरी नहीं हो पाई है.
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