
पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्स एक्ट को हिंदी में बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम कहा जाता है. इस कानून को साल 2012 में नाबालिग बच्चे-बच्चियों को सुरक्षित रखने के लिए लाया गया. पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी पाए जाने पर कड़ी सजा का प्रावधान है. अपराधियों को बेल मिलना मुश्किल है लेकिन फिर भी दोषी छूट जा रहे हैं. आखिर कैसे ऐसा हो रहा है, आइए जानते हैं.
पुलिस विवेचना की गुणवत्ता पर उठते हैं सवाल
पॉक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार अपराधियों के छूटने पर कई बार पुलिस विवेचना की गुणवत्ता पर भी सवाल उठते हैं. इसका ताजा मामला उत्तर प्रदेश के बरेली का है. जहां पर एक नाबालिग को अगवा करने के आरोप में एक आदमी को गिरफ्तार किया गया. पुलिस की पड़ताल में पता चला कि गिरफ्तार आरोपी पहले भी नाबालिग से रेप के मामले में 10 साल की सजा काट चुका है. 2023 में 10 साल की सजा काटने के बाद वह जेल से बाहर निकलता है. साल 2024 में उसने एक दूसरी लड़की को अगवा कर लिया.
इस मामले में नौ महीने तक जेल की सजा काटी. वह हाल ही में जमानत पर बहार आया लेकिन जमानत पर बहार आते ही उसने फिर से वही हरकत दोहराई और एक 9 साल की लड़की का अपहरण कर लिया. हर बार की तरह अंजाम वही हुआ आरोपी पुलिस की गिरफ्त में है लेकिन सवाल ऐसे में ये उठता है कि क्या हमारा कानून इतना कमजोर है कि जेल की सजा काट चुका आरोपी फिर से वहीं क्राइम करने से डरता नहीं है? इतने गंभीर मामले में आखिर वो कैसे कानून के साथ खिलवाड़ कर जमानत पर बाहर आ जाता है? क्या बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाया गया एक्ट या फिर और ज्यादा उसे सख्त करने की जरूरत है? ये सारे सवाल हैं, जिनको हम सभी जानते हैं और हमारे मन में भी ये सवाल उठ भी रहे हैं.
कोर्ट केवल एक्सेप्शनल सर्कमस्टैंसेस में ही करता है बेल ग्रांट
पॉक्सो एक्ट के तहत नाबालिगों के साथ यौन अपराध करने वालों को सख्त सजा दी जाती है. पॉक्सो एक्ट के तहत अपराधियों को बेल मिलना बहुत मुश्किल है. इस कानून के तहत यौन उत्पीड़न के मामलों में 20 साल की सजा का प्रावधान है. इसके अलावा जुर्माना भी देना पड़ सकता है. इसमें क्या कुछ आधार रखा गया है पेरोल या बेल की. उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी डॉक्टर विक्रम सिंह ने बताया, पॉक्सो में बेल मिलना इतना आसान बिल्कुल भी नहीं है और बहुत ही मुश्किल और कठिन है इसमें बेल मिलना. उन्होंने कहा कि कोर्ट केवल एक्सेप्शनल सर्कमस्टैंसेस में ही बेल ग्रांट करता है. डॉक्टर विक्रम सिंह ने कहा, विवेचक का कर्तव्य होता है कि बेल को अपोज करे लेकिन ऐसे शातिर दिमाग के अपराधी बच जाते हैं. उन्होंने कहा कि कई बार विवेचक की रिपोर्ट माइल्ड होती है, जिससे कोर्ट को निर्णय लेने में कठिनाई होती है.
पेरोल की प्रक्रिया भी है एक महत्वपूर्ण मुद्दा
पेरोल की प्रक्रिया भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. विक्रम सिंह ने कहा, पेरोल मुश्किल कहा है. भाई राम रहीम को कितनी बार मिली? उन्होंने यह भी कहा कि पेरोल केवल कुछ दिनों के लिए ही होता है और कोर्ट हर एक आवेदन को इंडीविजुअल मेरिट के आधार पर डिसैड करता है.
कानून का सख्त इम्प्लिमेंटेशन भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा
वीमेन राइट एक्टिविस्ट ताहिरा हसन न कहा कि कानून का सख्त इम्प्लिमेंटेशन भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. उन्होंने कहा कि कानून जो बने हैं, जब इतने मजबूत कानून महिलाओं ने बच्चों के लिए और महिलाओं के लिए लड़के अपने स्ट्रगल से बनवाए हैं, ये संसद में बने हैं तो आखिर इन कानूनों का इम्प्लिमेंटेशन क्यों नहीं होता है? उन्होंने यह भी कहा कि मानसिकता बदलने के इंतजार में हम अपने बच्चों और महिलाओं को इस जिंदगी में नहीं ढकेल सकते. चाहे महिलाओं के प्रति हिंसा हो या बच्चों के प्रति हिंसा, पॉक्सो एक्ट की बात हो या निर्भय के बाद जो कानून बना उसके इम्प्लिमेंटेशन की बात हो. उसमें एविडेंस भी पुलिस को बकायदा कलेक्ट करना चाहिए. मैक्सिमॅम जिससे कोर्ट में वो प्रोड्यूस हो सके.
इतने आए मामले
पॉक्सो एक्ट आया 2012 में उसके बाद देखें 2018 में 33,356 मामले रेप के सामने आए. 2019 में 32,032, साल 2020 में 28,046, साल 2021 में 31,670 और साल 2022 में 31,516 बलात्कार के मामले सामने आए. लड़कियों को देर तक घूरना 65 फीसदी मामले इस तरह के सामने आए हैं. गानों के जरिए कमेंट करना, 53 फीसदी मामले, लड़कियों पर भदे कमेंट करना 49 फीसदी मामले हैं, गलत तरीके से छूना 36 फीसदी और बीच सड़क पर रास्ता रोकने के 40 फीसदी मामले आए हैं.