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Population Census Notification: भारत की 16वीं जनगणना की अधिसूचना जारी, पूछे जाएंगे 36 सवाल, 16 भाषाओं में दर्ज होगा डेटा

यह जनगणना 16 साल बाद हो रही है और इसमें डेटा 16 भाषाओं में दर्ज होगा. इसके नतीजे 16 महीने बाद, यानी दिसंबर 2027 या जनवरी 2028 तक आने की संभावना है.

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इस बार की जनगणना खास है, क्योंकि:

  • आज़ाद भारत की यह पहली डिजिटल जनगणना होगी
  • पहली बार जातिगत आंकड़े भी जुटाए जाएंगे
  • पिछली जनगणना 2011 में हुई थी
  • 2021 की जनगणना कोविड के कारण टाल दी गई थी

जनगणना की तारीखें और क्षेत्र
अधिसूचना के अनुसार, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बर्फबारी वाले इलाकों में जनगणना की संदर्भ तिथि 1 अक्टूबर 2026 होगी. अन्य राज्यों के लिए यह तिथि 1 मार्च 2027 तय की गई है. इसी तारीख तक जन्मे लोगों को जनगणना में शामिल किया जाएगा. गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को जनगणना की तैयारियों की समीक्षा की थी. इसमें गृह सचिव, रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त भी शामिल रहे.

दो चरणों में होगी जनगणना

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  • पहला चरण: हाउस लिस्टिंग यानी घरों की स्थिति, जलस्रोत, ईंधन, शौचालय, किचन आदि की जानकारी ली जाएगी.
  • दूसरा चरण: लोगों से व्यक्तिगत विवरण लिया जाएगा जैसे – उम्र, लिंग, शिक्षा, धर्म, जाति, भाषा, विकलांगता, मोबाइल/इंटरनेट का उपयोग, वाहन इत्यादि.

36 सवालों की सूची

  • पूछे जाएंगे कुल 36 सवाल, जैसे “परिवार का मुखिया कौन है?”, “क्या वह महिला है?”, “एससी/एसटी वर्ग से है या नहीं?” आदि.
  • डिजिटल ऐप में प्री-कोडेड ड्रॉपडाउन मेन्यू होगा, जहां से जवाब चुने जाएंगे.
  • डेटा सीधे बैक-एंड सिस्टम में जाएगा, जिससे मैन्युअल डेटा एंट्री की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.
  • ऐप में इंटेलिजेंट कैरेक्टर रिकग्निशन तकनीक है, जो अधूरी या हाथ से लिखी जानकारी पढ़ सकती है. 

संसाधन और खर्च

  • जनगणना में 34 लाख कर्मियों की भागीदारी होगी.
  • इनमें 1.3 लाख अधिकारी होंगे जो डिजिटल उपकरण से लैस होंगे.
  • इनके प्रशिक्षण के लिए 100 राष्ट्रीय प्रशिक्षक, 1,800 मास्टर ट्रेनर, 45,000 फील्ड ट्रेनर लगाए जाएंगे और अनुमानित खर्च 13,000 करोड़ रुपये होगा. 
  • यह बजट वर्ष 2026 में आवंटित होगा. इसमें जातिगत जनगणना और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) का अपडेट भी शामिल होगा. 

भारत में 2026-27 की यह जनगणना तकनीकी और सामाजिक दृष्टि से एक नई शुरुआत है. डिजिटल माध्यम से पारदर्शिता और गति बढ़ेगी, जबकि जातिगत आंकड़े सामाजिक योजनाओं के लिए अहम भूमिका निभा सकते हैं. 

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