
प्रयागराज की एक महिला पिछले 11 सालों से एक विफल नसबंदी प्रक्रिया के खिलाफ न्याय की लड़ाई लड़ रही थी और अब आखिरकार महिला को न्याय मिल गया है. स्थायी लोक अदालत ने महिला की विफल नसबंदी प्रक्रिया के लिए उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग को जिम्मेदार ठहराया. यह नसबंदी अक्टूबर 2013 में मऊआइमा के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में की गई थी, जिसके बाद छठवीं बार गर्भवती होने पर पीड़िता अनीता ने न्याय के लिए संघर्ष शुरू किया.
क्या है पूरा मामला
प्रयागराज के बहरिया इलाके में कलिपुर छाता गांव की रहने वाली अनीता ने 2013 में एक सरकारी पीएचसी से नसबंदी कराई था. अनीता और उनके पति दिहाड़ी मजदूर हैं. जैसे-तैसे घर चलाते हैं. उनके पहले से ही पांच बच्चे थे इसलिए उन्होंने नसबंदी कराने का फैसला किया. लेकिन जनवरी 2014 में वह 16 सप्ताह की गर्भवती पाई गईं. डॉक्टरों ने गर्भपात की सलाह दी, लेकिन अनीता ने अपने गर्भ में पल रही जान को खत्म करने से इनकार कर दिया.
पांच बच्चों के भरण-पोषण में पहले ही संघर्ष कर रहे इस दंपत्ति को इलाज और कानूनी लड़ाई के लिए कर्ज लेना पड़ा. स्वास्थ्य विभाग ने आठ साल तक अदालत के नोटिसों की अनदेखी की. जुलाई 2022 में पहली बार मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) अदालत में पेश हुए. अधिकारियों ने ₹60,000 के समझौते की पेशकश की, जबकि अनीता ने बच्ची के पालन-पोषण के लिए ₹5 लाख की मांग की थी.
लोक अदालत का फैसला
11 सालों में 130 से ज्यादा सुनवाइयों और पांच न्यायाधीशों के बदलने के बाद 4 जून 2025 को स्थायी लोक अदालत का फैसला आया. अनीता के वकील सुधाकर मिश्रा का कहना है कि CMO कार्यालय ने बार-बार तारीखें टालने की कोशिश की. लेकिन अदालत ने अपना फैसला दिया. अदालत ने आदेश दिया कि जब तक बच्ची 18 वर्ष की नहीं हो जाती या स्नातक पूरी नहीं कर लेती, तब तक अनीता को हर महीने ₹5,000 की सहायता राशि दी जाए.
अदालत ने सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि परिवार को तीन महीने के भीतर विफलता की सूचना देनी चाहिए थी. अदालत ने कहा, "विफल नसबंदी का बोझ पीड़िता पर नहीं डाला जा सकता." अदालत ने मानसिक पीड़ा के लिए ₹20,000 का अलग मुआवजा देने का भी आदेश दिया. यह फैसला सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं में जवाबदेही तय करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.
अनीता की 11 वर्षीय बेटी अंजली डॉक्टर बनना चाहती है, और उसके माता-पिता उसकी यह इच्छा पूरी करने के लिए हर संभव कोशिश करने की कोशिश कर रहे हैं, भले ही उनकी आमदनी बहुत सीमित हो.