scorecardresearch

President Election: देश में कई बार राष्ट्रपति से सरकारों का रहा टकराव, जानिए कब और किन मुद्दों को लेकर रही दूरियां

President Election 2022: देश में कई ऐसे मौके आए हैं, जब राष्ट्रपति और सरकारों में टकराव की स्थिति बन गई है. देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर ज्ञानी जैल सिंह तक के कार्यकाल में सरकारों से मतभेद रहा.

राष्ट्रपति भवन राष्ट्रपति भवन
हाइलाइट्स
  • कई बार राष्ट्रपति और सरकारों में हुआ है टकराव

  • हिंदू कोड बिल पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री में था मतभेद

  • पोस्टल एमेंडमेंट बिल पर ज्ञानी जैल सिंह और राजीव सरकार में रहा टकराव

राष्ट्रपति चुनाव के लिए गजट नोटिफिकेशन जारी हो चुका है. नए राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर सियासी खींचतान होने लगी है. विपक्ष उम्मीदवारी के बैठकें कर रहा है तो सत्ता पक्ष में भी मंथन चल रहा है. वैसे तो राष्ट्रपति का पद दलगत राजनीति से  ऊपर होता है, लेकिन देश में कई बार ऐसा वक्त आया है, जब सरकार और राष्ट्रपति के बीच टकराव हुआ है. चलिए आपको बताते हैं कि किस राष्ट्रपति के कार्यकाल में और किन मुद्दों पर पर टकराव की स्थिति बनी है.

हिंदू कोड बिल पर मतभेद- 
डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति थे. इस दौरान जवाहरलाल नेहरू की सरकार और डॉ. राजेंद्र प्रसाद में हिंदू कोड बिल को लेकर मतभेद उभरा था. साल 1947 में संविधान सभा में हिंदू कोड बिल का मसौदा पेश किया गया. इसको लेकर राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और पीएम नेहरू में मतभेद थे. पीएम नेहरू ने सभी हिंदुओं के लिए एक नियत संहिता बनाने का समर्थन किया. जबकि डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी इसका समर्थन करते थे. लेकिन भारतीय मानस के मूल के बदलकर नहीं. राष्ट्रपति चाहते थे कि हर धर्म के लिए एक कोड बिल हो. लेकिन तमाम समर्थन और विरोध के बाद 1955-56 में हिंदू कोड बिल लोकसभा से  पास हो गया.

सोमनाथ मंदिर को लेकर टकराव-
सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1940 को सोमनाथ के नवनिर्माण मंदिर की आधारशिला रखी और 11 मई 1955 को राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था. सोमनाथ मंदिर के एक कार्यक्रम को लेकर पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को आमंत्रित किया गया था. लेकिन नेहरू नहीं चाहते थे कि देश के राष्ट्रपति किसी धार्मिक कार्यक्रम में शामिल हों. नेहरू का मानना था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और राष्ट्रपति के कार्यक्रम में शामिल होने से गलत संदेश जाएगा. नेहरू के विरोध के बावजूद डॉ. राजेंद्र प्रसाद साल 1951 में सोमनाथ मंदिर गए. तात्कालिक पीएम नेहरू ने खुद को सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्वार कार्यक्रम से अलग रखा.

पटेल के अंत्येष्टि में जाने को लेकर मतभेद-
साल 1950 में मुंबई के बिड़ला हाउस में सरदार पटेल का निधन हो हुआ. लेकिन नेहरू ने अपने मंत्रियों के साथ राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भी पटेल के अंतिम संस्कार में जाने से रोक दिया. इसका जिक्र कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने अपनी किताब 'पिलग्रिमेज टू फ्रीडम' में किया है. नेहरू ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को मुंबई जाने से रोक दिया. लेकिन राष्ट्रपति ने उनका आग्रह अस्वीकार कर दिया और सरदार पटेल को अंतिम संस्कार में शामिल हुए.

महंगाई का टकराव-
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन साल 1962 से 1967 तक देश के राष्ट्रपति रहे. इस दौरान महंगाई के मुद्दे पर सरकार से उनका मतभेद भी रहा. साल 1966 में डॉ. राधाकृष्णन ने महंगाई को लेकर सरकार की आलोचना की. इतना ही नहीं, नेहरू की चीन नीति फेल होने भी डॉ. राधाकृष्णन निराश थे.

लोकसभा भंग करने पर मतभेद-
वीवी गिरी साल 1969 से 1974 तक देश के राष्ट्रपित रहे. इस दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से उनके मतभेद रहे. दरअसल इंदिरा गांधी लोकसभा भंग करके चुनाव कराना चाहती थी और इसके लिए राष्ट्रपति को सलाह भी दी थी. लेकिन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने सलाह मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद पीएम इंदिरा गांधी को कैबिनेट की बैठक बुलानी पड़ी.

ज्ञानी जैल सिंह ने लौटाया बिल-
भारत के 7वें राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह थे. ज्ञानी जैल सिंह और राजीव गांधी सरकार के बीच पोस्टल एमेंडमेंट बिल पर टरकराव हुआ. राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह पॉकेट वीटो का इस्तेमाल किया. सरकार में ज्ञानी जैल सिंह के खिलाफ महाभियोग तक चलाने की बात होने लगी थी.

ये भी पढ़ें: