scorecardresearch

खारिज हुई खुद को लाल किले की 'वारिस' बताने वाली सुल्ताना बेगम की याचिका, जानिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर क्या कहा

यह पहली बार नहीं है जब सुल्ताना बेगम ने लाल किले पर दावा किया हो. इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी याचिका दो बार खारिज की थी- पहली बार 2021 में और फिर 2023 में.

Red Fort in Delhi Red Fort in Delhi

पिछले कुछ दिनों से लाल किला चर्चा में है और वजह है एक महिला, सुल्ताना बेगम. सुल्ताना बेगम ने कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, यह दावा करते हुए कि वह मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र की परपोता बहू हैं और इस नाते लाल किले की "असली वारिस" हैं. उन्होंने दावा किया है कि वे मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र के वंश से हैं और इसलिए लाल किले की मालिकाना हकदार हैं. 

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उनकी याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह “भ्रमित करने वाली” और “बिना किसी कानूनी आधार के” है. इस बेंच में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार शामिल थे. सुल्ताना बेगम के वकील ने अदालत में भावनात्मक दलील दी कि उनका संबंध भारत के "प्रथम स्वतंत्रता सेनानी" से है. 

लेकिन चीफ जस्टिस खन्ना ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “अगर हम यह मान लें, तो फिर सिर्फ लाल किला क्यों? आगरा और फतेहपुर सीकरी पर भी दावा क्यों नहीं?”

सम्बंधित ख़बरें

पहले भी खारिज हो चुकी हैं याचिका
यह पहली बार नहीं है जब सुल्ताना बेगम ने लाल किले पर दावा किया हो. इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी याचिका दो बार खारिज की थी- पहली बार 2021 में और फिर 2023 में. कोर्ट ने तब कहा था कि उन्होंने यह दावा दर्ज कराने में 150 साल से भी ज़्यादा का समय ले लिया है. उनके इस विलंब की वजह उन्होंने अपनी खराब सेहत और बेटी के असामयिक निधन को बताया था, लेकिन अदालत ने इस पर भरोसा नहीं जताया. 

सुल्ताना बेगम का दावा क्या है?
कोलकाता के हावड़ा में दो कमरों के घर में रहने वाली सुल्ताना बेगम का कहना है कि जब अंग्रेजों ने भारत पर कब्ज़ा किया और 1857 की क्रांति के बाद बहादुर शाह ज़फ़र को देश से निर्वासित कर दिया, तब से ही लाल किला उनके परिवार से जबरन छीन लिया गया. उनका यह भी दावा है कि 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ, तो लाल किला भारत सरकार ने "ग़ैरक़ानूनी रूप से" अपने कब्ज़े में ले लिया. इसलिए उन्होंने अदालत से मांग की थी कि या तो लाल किला उन्हें वापस दिया जाए या फिर इसके लिए उचित मुआवज़ा दिया जाए. 

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी और इसे पूरी तरह "बेबुनियाद" बताया. ANI न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए सुल्ताना बेगम ने कहा, "मैंने लाल किले (Red Fort) का ज़िक्र नहीं किया था, मैंने सिर्फ बहादुर शाह ज़फ़र के घर का हक मांगा था. मुझे नहीं पता कि वह लाल किला है, ज़फ़र महल है या फतेहपुर सीकरी… ये सरकार को पता होगा. मुझे सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिलने की उम्मीद थी, लेकिन आज वह उम्मीद टूट गई. अब मैं कहां जाऊं? क्या अब मैं भीख मांगूं या ज़फ़र को बदनाम करूं? मैं क्या करूं?"

उन्होंने आगे कहा, "बहादुर शाह ज़फ़र ने देश के लिए बहुत कुछ किया. उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी दी, अपना ताज गंवाया, लेकिन देश से कभी गद्दारी नहीं की.... उनकी औलाद आज तक संघर्ष कर रही है. कोई हमारी सुनवाई नहीं कर रहा…" उन्होंने बताया कि उनके पति मिर्ज़ा मोहम्मद बेदार बख्त बहादुर शाह ज़फ़र के परपोते माने जाते हैं. उन्हें 1960 में नेहरू सरकार ने आधिकारिक रूप से मान्यता दी थी और राजनीतिक पेंशन भी दी गई थी. सुल्ताना बेगम ने उनसे 1965 में शादी की और उनके निधन (1980) के बाद उन्हें भी पेंशन मिलती रही. 

अब जब सुप्रीम कोर्ट ने उनका केस पूरी तरह खारिज कर दिया है, तो सुल्ताना बेगम कहती हैं कि उनके पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है और उन्हें जनता से ही मदद मांगनी पड़ेगी.