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Live-in Relationship In India: भारत में लिव-इन रिलेशन में रह रही महिलाओं के पास कितने अधिकार? जानें ऐसे रिश्ते को कितनी कानूनी मान्यता

Live-in Relationship In India: लिव-इन रिलेशन को संबोधित करने के लिए भारत में कोई अलग से कानून नहीं है. लेकिन भारतीय न्यायपालिका ने अपने कई जजमेंट के माध्यम से वर्षों से इससे जुड़े फैसलों पर अपनी राय रखी है. उनके मुताबिक ये अवैध नहीं है और कानूनी रूप से मान्य है.

लिव-इन रिलेशनशिप लिव-इन रिलेशनशिप
हाइलाइट्स
  • लिव-इन रिलेशन में रहते हुए आपके पास कई कानूनी अधिकार हैं

  • लिव-इन रिलेशनशिप कानूनी रूप से जायज

श्रद्धा मर्डर केस के बाद अब निक्की मर्डर केस सामने आया है. देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लिव-इन रिलेशन में रहने वाली इन लड़कियों को उनके प्रेमी ने ही मौत के घाट उतार दिया. श्रद्धा वालकर के बाद निक्की यादव की घटना ने महिलाओं की सुरक्षा और लिव-इन रिलेशन पर सवाल खड़े कर दिए हैं. इसे लेकर राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी बड़ा बयान दिया है. NCW की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप में लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं. इसके अलावा उन्होंने ऐसी घटनाओं के लिए सिर्फ लड़कियां ही नहीं बल्कि उनके परिवार वालों को भी जिम्मेदार बताया है. उनका कहना है कि लड़कियों को अपना साथी चुनने का अधिकार दिया जाए तो ऐसी घटनाओं में कमी आ सकती है. हालांकि, भारतीय कानून इसके बारे में क्या कहता है और क्या भारत में लिव-इन रिलेशन में रह रही लड़कियों के पास कोई अधिकार भी है या नहीं इसके बारे में कम ही लोग जानते हैं. 

क्या भारत में लीगल है लिव-इन रिलेशन? 

किसी भी टिपिकल शादी के रिश्ते में पति और पत्नी दोनों के हिस्से में कुछ अधिकार और कर्तव्य आते हैं. हिंदू लॉ, मुस्लिमलॉ, ईसाई कानून आदि जैसे कई व्यक्तिगत कानून हैं जो एक मान्यता प्राप्त जोड़े के रिश्ते को नियंत्रित और संरक्षित करते हैं. हालांकि, लिव-इन रिलेशन को संबोधित करने के लिए भारत में कोई अलग से कानून नहीं है. लेकिन भारतीय न्यायपालिका ने अपने कई जजमेंट के माध्यम से वर्षों से इससे जुड़े फैसलों पर अपनी राय रखी है. बद्री प्रसाद बनाम डिप्टी डायरेक्टर ऑफ कंसोलिडेशन (1978) में सुप्रीम कोर्ट ने भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी थी. हालांकि, इसमें उम्र, सहमति और दिमागी तौर पर दोनों कितने मजबूती हैं ये भी मायने रखता है. दो लोग अगर काफी समय से साथ रह रहे हैं और दोनों की आपसी सहमति है तो ये रिश्ता मान्य होगा.   

लिव-इन रिलेशनशिप में पार्टनर के अधिकार

मौजूदा समय की बात करें, तो लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर भारतीय समाज का नजरिया ज्यादा सकारात्मक नहीं रहा है. लेकिन न्यायपालिका ने अपने कई फैसलों में इसका पक्ष लिया है. इसकी विधता पर कई बार कोर्ट ने लीग से हटकर निर्णय सुनाए हैं. अदालत ने लिव-इन रिलेशनशिप में महिलाओं के अधिकार को कानूनी दर्जा भी दिया हुआ.है.

इसे लेकर चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्णन, दीपक वर्मा और बी एस चौहान की तीन जजों की बेंच  ने कहा था कि, "जब दो वयस्क एक साथ रहना चाहते हैं तो इसमें क्या गलत है? साथ रहना अपराध नहीं है. यह अपराध नहीं हो सकता. यहां तक ​​कि भगवान 'कृष्ण और राधा' भी पौराणिक कथाओं के अनुसार एक साथ रहते थे.” आगे कोर्ट ने ये भी कहा था कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो लिव-इन रिलेशनशिप या प्री-मैरिटल सेक्स पर रोक लगाता हो. ये फैसला सुप्रीम कोर्ट ने प्रसिद्ध साउथ इंडियन एक्ट्रेस खुशबू के मामले में सुनाया था. 

बताते चलें कि भारतीय कानून के मुताबिक, लिव-इन रिलेशनशिप अनुच्छेद 19 (ए) जिसमें भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और अनुच्छेद 21, जिसमें के जीवन जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की बात की जाती है, की उपज है. अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार इस अर्थ में लागू होता है कि एक व्यक्ति अपने पसंद के व्यक्ति के साथ शादी के बाद या उसके बिना भी रह सकता है. ये अधिकार उसके पास हैं. 

कानून की नजर में अवैध नहीं है ये रिश्ता  

2001 में, पायल शर्मा बनाम नारी निकेतन में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि एक पुरुष और एक महिला का एक साथ रहना अवैध नहीं है. ये पूरी तरह से लीगल है. हाईकोर्ट ने कानून और नैतिकता के बीच अंतर भी बताया था. हाई कोर्ट ने कहा था, “क्योंकि वह एक वयस्क है इसलिए उन्हें कहीं भी जाने और किसी के भी साथ रहने का अधिकार है. हमारी राय में, एक पुरुष और एक महिला, बिना शादी किए भी, अगर वे चाहें तो एक साथ रह सकते हैं. इसे समाज द्वारा अनैतिक माना जा सकता है लेकिन यह कानून की नजर में अवैध नहीं है.”

वहीं, 2006 में, लता सिंह बनाम यूपी में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि एक महिला और पुरुष का साथ रहना अवैध नहीं है. खुशबू बनाम कन्नियाम्मल और अन्य में न्यायपालिका ने कहा था कि दो वयस्कों के बीच लिव-इन रिलेशन किसी भी तरह से अपराध की श्रेणी में नहीं आता है. 

लिव-इन रिलेशन में रहते हुए आपके पास कितने कानूनी अधिकार हैं?

2013 में, इंद्र शर्मा बनाम वीकेवी शरमा में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि लिव-इन रिलेशनशिप में महिला पार्टनर को घरेलू हिंसा (पीडब्ल्यूडीवी) अधिनियम, 2005 से महिलाओं की सुरक्षा के तहत संरक्षित किया गया है. 

इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक क्राइटेरिया भी रखा है. जिसके मुताबिक, पति-पत्नी के समान होने के नाते दोनों पार्टनर्स को खुद को समाज के सामने रखना होगा.

-शादी करने के लिए उनकी कानूनी उम्र होनी चाहिए. 

-दोनों ने स्वेच्छा से साथ रहने का फैसला किया हो. 

गुजारा भत्ता मांगने के अधिकार के बारे में क्या है कानून?

इतना ही नहीं अजय भारद्वाज बनाम ज्योत्सना मामले में पंजाब हाई कोर्ट के 2016 के फैसले के अनुसार, महिलाएं लिव-इन रिलेशनशिप में गुजारा भत्ते के लिए भी पात्र हैं. सीआरपीसी की धारा 125 ने एक विवाहित महिला को पति से गुजारा भत्ता का दावा करने की अनुमति के साथ साथ, लिव-इन रिलेशन में रह रही महिलाओं को भी इसका अधिकार दिया है.  हालांकि, मालिमथ समिति की रिपोर्ट ने 'पत्नी' शब्द की परिभाषा को थोड़ा और बढ़ाया था. इसमें कहा गया कि अगर कोई महिला काफी समय तक पत्नी की तरह ही एक पुरुष के साथ रही है तो उसे भी कानूनी रूप से भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार है. 

गौरतलब है कि लिव इन रिलेशनशिप कानूनी होने के बावजूद भी दोनों वयस्कों को इस बात का अधिकार होता है कि वे कभी भी उस रिश्ते से बाहर निकल सकते हैं. ये रिश्ते पर्सनल लॉ द्वारा नियंत्रित नहीं होते हैं. हालांकि, पिछले कुछ समय से भारतीय कानून बदलाव लाने की कोशिश कर रहा है.