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जोधपुर की सना ने अपने घर में बनाया चिड़ियों का आशियाना, विलुप्त होते पक्षियों का भी यहां है डेरा

जोधपुर की रहने वाली सना ने अपने घर में वेस्ट चीजों से चिड़ियों के लिए छोटे-छोटे बर्ड फीडर बनाए हैं. ये बर्ड फीडर प्लास्टिक के डंडे या फिर सूख चुके पेड़ के टहनियों से बनाए गए हैं.

जोधपुर की सना ने अपने घर में बनाया चिड़ियों का आशियाना जोधपुर की सना ने अपने घर में बनाया चिड़ियों का आशियाना
हाइलाइट्स
  • सूख चुके पेड़ के टहनियों से बनाए हैं पक्षियों के लिए घर

कंक्रीट के जंगल में रहने वाले हम लोग, क्या कभी यह सोचते भी हैं कि भला जंगल की उन चिड़ियों का क्या हाल होता होगा, जिनके घर यानी पेड़ों को काट के हमने अपने पक्के मकान बना लिए. जोधपुर की सना ने यह सोचा और अपने पक्के मकान के एक कोने में कुछ ऐसा इंतजाम किया कि वो सैकड़ों चिड़ियों का आशियाना बन गया.

'फैमली मेंबर की तरह रखती हैं खाने-पीने का ख्याल'

जोधपुर की रहने वाली सना ने अपने घर में वेस्ट चीजों से चिड़ियों के लिए छोटे-छोटे बर्ड फीडर बनाए हैं. ये बर्ड फीडर प्लास्टिक के डंडे या फिर सूख चुके पेड़ के टहनियों से बनाए गए हैं. इनमें फूड डिलवरी में इस्तेमाल होने वाले बाउल और कोल्ड्रिंक की बोतल के ढक्कन का इस्तेमाल भी किया गया है. सना हर रोज इन पक्षियों के लिए बढ़िया खाना और पीने के लिए साफ पानी का इंतजाम परिवार के सदस्यों की तरह ही करती हैं.

'टीवी पर गायब होते पक्षियों की खबर देखकर बुरा लगता था'

सना कहती हैं कि वह अक्सर टीवी पर ऐसी खबरें सुनती थी, जिनमें बताया जाता था कि लगातार पक्षियों की संख्या कम होती जा रही है. ये बात उन्हें बहुत परेशान करती थी क्योंकि उनका बचपन गौरैया और दूसरी चिड़ियों को देखते हुए बीता था. सना कहती हैं कि शुरुआत तो बस यूं ही कर दी थी लेकिन, जब शुरुआत में ही अच्छी खासी चिड़िया आने लगीं तो उनको लगा कि उन्हें अपना दायरा और बड़ा करना चाहिए.

गौरैया से लेकर टेलर बर्ड तक हैं मेहमान'

सना बताती हैं कि चिड़ियों के साथ बुलबुल, टेलर बर्ड, सनबर्ड, जंगल बैबलर जैसे पक्षी नियमित रूप से आते हैं. सना बताती हैं कि वाइट ब्रूट फैनटेल नाम का एक पक्षी है. वो अनाज नहीं खाती लेकिन, फिर भी वो यहां आती है क्योंकि दूसरे पक्षी यहां बहुत सारी हैं, उसे यहां एक माहौल मिलता है. 

'बेटियां ज्यादा समझदार हो गईं'

सना के पति सरफराज आलम और उनकी बेटियां भी इस काम में सना की पूरी मदद करते हैं. सना के पति बताते हैं कि कैसे सना के इस काम ने उनके बच्चों को भी ज्यादा समझदार और सेंसटिव बना दिया है. वो कहते हैं कि हमारी सबसे बड़ी बेटी ये नहीं कहती कि उसे डॉक्टर या इंजीनियर बनना है वो कहती है कि उसे जूलॉजिस्ट बनना है.

सना की शुरुवात हम सबके लिए एक संदेश है कि नेचर के लिए सिर्फ हल्ला और चिंता करने से कुछ नहीं होगा. असल में हमारी छोटी-छोटी कोशिशें भी प्रकृति में बड़े बदलाव का जरिया बन सकती हैं.

(मनीष चौरसिया की रिपोर्ट)

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