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1500 रुपए में शुरू किया बिजनेस, डिब्बे बनाकर आज हैं ढाई करोड़ की कंपनी की मालकिन

कुछ कामगार तो सपरिवार यहीं रह रहे हैं, और संगीता के बिजनेस में पूरा परिवार हाथ बंटा रहा है. कामगारों का कहना है कि, "रहने को घर और घर चलाने के लिए पैसे मिल जाएं, तो और क्या चाहिए."

संगीता पांडेय संगीता पांडेय
हाइलाइट्स
  • पैकेजिंग बॉक्स बनाती हैं संगीता

  • 1500 रुपए से शुरू किया था बिजनेस

  • आज है ढाई करोड़ का टर्नओवर

काम कोई भी हो, छोटा या बड़ा नहीं होता. बस सोच होनी चाहिए और काम करने का जज्बा होना चाहिए. यूपी के गोरखपुर की संगीता पांडेय की कामयाबी से ये बात समझी जा सकती है. जिन्होंने महज 1500 रुपए से अपना काम शुरू किया और आज 8 साल बाद अपनी मेहनत और लगन से कंपनी को ढाई करोड़ का बना दिया. 

2 करोड़ पार का है टर्नओवर
"काम कोई भी हो, मेहनत कीजिए तो रंग लाती ही है," ऐसे मिसालों से दुनिया भरी पड़ी है. अब गोरखपुर की संगीता पांडेय को ही ले लीजिये 1500 रुपये से अपना काम शुरू किया और अब ढाई करोड़ की कंपनी की मालकिन हैं. इनकी कंपनी का नाम सिद्धि विनायक पैकेजर्स है. जिसे इस ऊंचाई तक लाने में इन्हें 8 साल लगे. आज इस कंपनी का टर्नओवर दो करोड़ को पार कर गया है.

संगीता के बिजनेस से मिल रहा लोगों को रोजगार
गोरखपुर के शहबाज गंज में रहने वाली संगीता का बिजनेस मुख्य तौर पर कागज के बॉक्स बनाने का है. लेकिन यहां आपको थैला और अलग-अलग तरह के पैकेजिंग बॉक्स भी मिल जाएंगे. इन डिब्बों की सप्लाई अलग-अलग जिलों तक होती है. कई बार राज्यों के बाहर से भी डिब्बे बनाने के ऑर्डर मिलते हैं. यहां काम करने वाले लोगों में महिलाएं भी हैं और पुरुष भी. यहां काम करने वाली महिलाएं इस बात से खुश हैं कि उन्हें खाली वक्त में करने के लिए मन का काम मिल जाता है. साथ ही परिवार की आर्थिक मदद भी हो जाती है.

40 परिवारों को दिया रोजगार
कुछ कामगार तो सपरिवार यहीं रह रहे हैं, और संगीता के बिजनेस में पूरा परिवार हाथ बंटा रहा है. कामगारों का कहना है कि, "रहने को घर और घर चलाने के लिए पैसे मिल जाएं, तो और क्या चाहिए." संगीता की मेहनत और सोच दूसरों के लिए मिसाल तो है ही. साथ ही उन्हें इस बात का भी श्रेय मिलता है कि उन्होंने अपने साथ-साथ 40 परिवारों को भी रोजगार दिया है. उनकी आजीविका का इंतजाम किया है. किसी भी काम को शुरू करने के लिए अपनी सोच और मेहनत पर ही भरोसा करना होता है. लेकिन परिवार का साथ मिल जाए तो काम को एक मुकाम तक पहुंचाना आसान हो जाता है.

(गजेंद्र त्रिपाठी की रिपोर्ट)