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'रात बिताने के लिए पैसे मिलते हैं साहब...', गंगूबाई की मांग को अब सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया जायज

इस साल एक फिल्म आई थी गंगूबाई काठियावाड़ी...फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली थे तो विवाद होना लाजिमी है. फिल्म की रिलीज के बाद कहा गया कि वह वेश्यावृत्ति को प्रमोट कर रहे हैं. अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने एतिहासिक फैसले में सेक्स वर्क को पेशे के रूप में मान्यता दे दी है.

गंगूबाई काठियावाड़ी गंगूबाई काठियावाड़ी
हाइलाइट्स
  • सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स वर्क को लीगल माना है

  • सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश सेक्स वर्कर्स के बीच सम्मान को बढ़ाता है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एतिहासिक फैसले में सेक्स वर्क को लीगल माना है. कोर्ट ने कहा कि यदि कोई महिला अपनी इच्छा से सेक्स वर्क में शामिल है तो उसे परेशान नहीं किया जाना चाहिए. सेक्स वर्कर्स भी कानून के तहत गरिमा और समान सुरक्षा के हकदार हैं. हालांकि वेश्यालय चलाने को कोर्ट ने अवैध बताया है.

रात बिताने के लिए पैसे मिलते हैं... जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए. संजय लीला भंसाली की फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी का यह संवाद उन सेक्स वर्कर्स के लिए हैं जो अपनी मर्जी से इस पेशे को अपनाती हैं.


हिंदी सिनेमा में सेक्स वर्कर्स की जिंदगी पर वैसे तो कई फिल्में बनी हैं लेकिन ताजा उदाहरण संजय लीला भंसाली की फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी का है, इस फिल्म में सेक्स वर्क को लीगल करने का मुद्दा उठाया गया. एक ऐसी महिला की कहानी दिखाई गई जो सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए प्रधानमंत्री तक के पास पहुंच गई. प्रेमी की दगाबाजी के चलते मजबूरी में उसे यह पेशा अपनाना पड़ा लेकिन वह किसी को वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर नहीं करना चाहती. इस फिल्म के जरिए भंसाली ने दिखाया कि कैसे पुलिस सेक्स वर्कर्स को परेशान करती है. समाज उन्हें गलत नजर से देखता है. वहीं कुछ हिस्से उन लड़कियों के नजरिए से भी है जो अपनी मर्जी से वेश्यावृत्ति में आई हैं.

भंसाली की फिल्मों में सेक्स वर्कर्स के लिए अलग नजरिया
संजय लीला भंसाली की ज्यादातर फिल्मों में सेक्स वर्कर्स, वेश्यालयों और रेड लाइट एरिया की कहानी दिखाई जाती है. भंसाली खुद भी मुंबई के रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा के करीब एक चॉल में पले-बढ़े हैं. ऐसे में वह सेक्स वर्कर्स की जिंदगी को करीब से देखते हैं. उनकी फिल्मों को लोग वन्स इन ए लाइफ टाइम एक्सपीरिएंस कहते हैं लेकिन गंगूबाई काठियावाड़ी में सेक्स वर्क को लीगल करते-करते उन्होंने देश के हर लड़के को विलेन बना दिया. 

सेक्स वर्क को लीगलाइज करने में मात खा गए भंसाली
क्लाइमेक्स में प्रॉस्टिट्यूशन को लीगलाइज करने की नाकाम कोशिश की गई लेकिन उदाहरण ऐसा दिया कि पूरी फिल्म का मैसेज बेकार हो गया. अगर सेक्स वर्कर नहीं होंगे तो मर्द सड़क चलती औरतों को अपना शिकार बनाएंगे. इस फिल्म में गंगूबाई शहरों में सेक्स वर्कर्स के लिए जगह उपलब्ध कराने के लिए आवाज उठाती है. फिल्म उन महिलाओं के अधिकारों की बात भी करती है जो जबरदस्ती सेक्स वर्कर बना दी गई हैं और इस काम को छोड़कर अपना घर बसाना चाहती हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में सेक्स वर्कर्स कम्युनिटी के बीच अच्छा संदेश भेजने की कोशिश की है. समाज के लोगों को भी सेक्स वर्कर्स कम्युनिटी की महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता की जरूरत है. संविधान के आर्टिकल 21 के तहत भारत के हर नागरिक को एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है. हमारे देश में वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है, लेकिन अपनी इच्छा से सेक्स वर्क करना गैरकानूनी नहीं है.