scorecardresearch

POCSO के तहत सजा के लिए ‘स्किन टू स्किन टच’ नहीं है जरूरी, सुप्रीम कोर्ट ने बदला हाई कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान दी गयी ‘टच’ की परिभाषा पर सवाल उठाया है. कोर्ट ने कहा, "स्पर्श का क्या मतलब है, बस एक स्पर्श? भले ही आपने कपड़े का एक टुकड़ा पहना हो, वो इंसान, छूने की कोशिश नहीं कर रहे हैं. हमें स्पर्श (touch) को उस इंसान की मंशा के लिहाज से देखना चाहिए."

 प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
हाइलाइट्स
  • सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान दी गयी ‘टच’ की परिभाषा पर सवाल उठाया है

  • SC ने अपने एक फैसला में कहा है कि यौन उत्पीड़न के लिए बच्चों से ‘स्किन टू स्किन’ कांटेक्ट होना ज़रूरी नहीं

एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट को लेकर बड़ा फैसला  सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसला में कहा है कि यौन उत्पीड़न (Sexual assault) के लिए बच्चों से ‘स्किन टू स्किन’ कांटेक्ट होना  ज़रूरी नहीं है. SC ने इससे बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें एक व्यक्ति को यह कहते हुए छोड़ दिया गया था कि एक नाबालिग के प्राइवेट पार्ट्स (Private Parts) को 'स्किन टू स्किन’ टच (Skin to skin touch) किये बगैर यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता.  

यह बताते हुए कि पॉक्सो का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना है, अदालत ने कहा कि यौन इरादे (Sexual Intent) से किया गया कैसा भी शारीरिक संपर्क पॉक्सो के अंतर्गत ही आता है, इसमें "स्किन टू स्किन’ टच का मापदंड जरूरी नहीं है.

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले का रद्द करते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है उसका यह मतलब निकाला जाये कि "कोई सर्जिकल दस्ताने पहनकर एक बच्चे का शोषण कर सकता है और बच निकल सकता है."

क्या है मामला?

दरअसल, साल 2016 में सतीश बंदू रागड़े नाम का शख्स 12 वर्षीय बच्ची को अपने घर ले गया था जहां उसने बच्ची के प्राइवेट पार्ट को हाथ लगाया था. बच्ची के घर न लौटने पर उसकी मां ने उसे ढूंढा तो बच्ची को रागड़े के घर पर पाया. बाद में बच्ची के बताने पर उस आदमी की शिकायत दर्ज करवाई गयी. 

लेकिन, बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला ने आरोपी को ये कहते हुए बरी कर दिया कि यह यौन शोषण में नहीं आता है.

क्या है पॉक्सो?

दरअसल, पॉक्सो अधिनियम किसी भी बच्चे पर हुए यौन हमले को परिभाषित करता है. जब कोई "सेक्शुअल इंटेंट से बच्चे के प्राइवेट पार्ट्स को छूता है या बच्चे को ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति के प्राइवेट पार्ट्स छूने के लिए मजबूर करता है, जिसमें जरूरी नहीं है कि शारीरिक संपर्क ही बनाया जाये, सेक्शुअल असाल्ट (Sexual assault) कहा जाता है.”

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान दी गयी ‘टच’ की परिभाषा पर सवाल उठाया है. कोर्ट ने कहा, "स्पर्श का क्या मतलब है, बस एक स्पर्श? भले ही आपने कपड़े का एक टुकड़ा पहना हो, वो इंसान, छूने की कोशिश नहीं कर रहे हैं. हमें स्पर्श (touch) को उस इंसान की मंशा के लिहाज से देखना चाहिए."

सुप्रीम कोर्ट ने कहा "यौन शोषण करने के लिए सबसे जरूरी स्किन टू स्किन टच नहीं है, बल्कि उस इंसान की मंशा है/ इरादा है.”

गौरतलब है कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि किसी नाबालिग के प्राइवेट पार्ट्स को 'स्किन टू स्किन' छूना पॉक्सो एक्ट के तहत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आता है. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने कहा था कि जब आरोपी पीड़ित के कपड़े हटाकर या कपड़ों में हाथ डालकर फिजिकल कॉन्टैक्ट करे, तब पॉक्सो के तहत उसपे कार्रवाई की जाएगी. हाई कोर्ट के इस फैसले पर कई संस्थानों ने आपत्ति जताई थी. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को रद्द कर दिया है.