 parliament special session
 parliament special session  parliament special session
 parliament special session आज से विशेष संसद सत्र शुरू हो रहा है. ये 5 दिवसीय सत्र विशेष सत्र (Special Session) कहा जा रहा है. हालांकि, सरकार ने इसे लेकर स्पष्ट किया है कि यह एक नियमित सत्र यानी लोकसभा का 13वां और राज्यसभा का 261वां सत्र होगा. हालांकि, पहले कहा जा रहा था कि केंद्र सरकार कुछ बड़े कदम उठा सकती है, इस बीच संसद का पांच दिवसीय विशेष सत्र सोमवार को शुरू हो गया है.
8 बिलों पर होगी चर्चा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुबह 11 बजे लोकसभा में संविधान सभा से शुरू 75 वर्षों की संसदीय यात्रा - उपलब्धियां, अनुभव, यादें और सीख पर चर्चा शुरू की. विशेष सत्र के एजेंडे की अस्थायी सूची में आठ बिल शामिल हैं. सदनों में विचार और पारित करने के लिए सूचीबद्ध बिलों में अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2023; प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक, 2023; डाकघर विधेयक, 2023, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023, वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण पर एक विधेयक और एससी/एसटी ऑर्डर शामिल हैं. एक और विधेयक जिस पर चर्चा हो सकती है वह महिला आरक्षण विधेयक है.
संसद में बैठकों का कोई निश्चित कैलेंडर नहीं
दरअसल, भारत की संसद देश के कानूनों और नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हालांकि, संसद के काम करने का तरीका, जिसमें इसकी बैठक कब और कितने समय तक होती है, सभी नियमों और प्रक्रियाओं पर निर्भर करता है. अगर इसके इतिहास की बात करें, तो भारत की संसद में बैठकों का कोई निश्चित कैलेंडर नहीं है. 1955 में, एक लोकसभा समिति ने संसदीय सत्रों के लिए एक समय सारिणी प्रस्तावित की थी. इसने सिफारिश की कि संसद का बजट सत्र 1 फरवरी से शुरू होकर 7 मई तक चलेगा और मानसून सत्र 15 जुलाई से शुरू होकर 15 सितंबर को समाप्त होगा. इस दौरान समिति ने सुझाव दिया कि शीतकालीन सत्र, साल का आखिरी सत्र, 5 नवंबर (या दिवाली के चौथे दिन, जो भी बाद में हो) से शुरू होकर 22 दिसंबर को समाप्त होगा. हालांकि सरकार इस कैलेंडर पर सहमत थी, लेकिन इसे कभी लागू नहीं किया गया.
संसद की बैठक कब होगी इसका निर्णय कौन करता है?
सरकार संसदीय सत्र की तारीख और अवधि निर्धारित करती है. ये फैसला संसदीय मामलों की कैबिनेट कमेटी लेती है. वर्तमान में इसमें दस मंत्री होते हैं, जिनमें रक्षा, गृह, वित्त, कृषि, जनजातीय मामले, संसदीय मामले और सूचना और प्रसारण मंत्री शामिल होते हैं.
अब अगर विशेष सत्र की बात करें, तो संविधान में "विशेष सत्र" शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है. राष्ट्रपति, जो नियमित संसदीय सत्र बुलाते हैं, संविधान के अनुच्छेद 85(1) के प्रावधानों के अनुसार वही इस सत्र को भी बुलाते हैं. अनुच्छेद 85(1) में कहा गया है कि "राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर बैठक के लिए बुला सकते हैं जैसा वह उचित समझें. संविधान में कहा गया है कि भले ही छह महीने की अवधि में दो सेशन अनिवार्य हैं, लेकिन राष्ट्रपति आवश्यकता पड़ने पर सदन को बुला सकते हैं.
आजादी के बाद से शुरू हुए विशेष संसदीय सत्र
डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, अनुच्छेद 356(4) के दूसरे प्रावधान के तहत तमिलनाडु और नागालैंड में राष्ट्रपति शासन के विस्तार के लिए फरवरी 1977 में दो दिनों के लिए राज्यसभा का एक विशेष सत्र आयोजित किया गया था. 3 जून 1991 को हरियाणा में राष्ट्रपति शासन की मंजूरी के लिए एक और दो दिवसीय सत्र आयोजित किया गया था.
2008 में भी जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, तब विश्वास मत के लिए लोक सभा का विशेष सत्र बुलाया गया था. भारत छोड़ो आंदोलन या भारत की आजादी के 50 साल जैसे राष्ट्रीय उत्सवों को मनाने के लिए कई बार विशेष सत्र और संयुक्त बैठकें भी बुलाई गई हैं.
2017 में ही पहली बार किसी विधेयक पर विशेष सत्र में चर्चा हुई थी. 30 जून, 2017 को मोदी सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने के लिए दोनों सदनों का संयुक्त मध्यरात्रि सत्र बुलाया था.