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Subhash Chandra Bose Birth Anniversary: अंग्रेजों की कैद से भागने से लेकर आजाद हिंद फौज बनाने तक, जानिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रोचक किस्से

आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती के मौके पर पूरे देश में पराक्रम दिवस मनाया जा रहा है ताकि उन्हें वह सम्मान मिल सके जिसका भारत का हर स्वतंत्रता सेनानी हकदार है.

Netaji Subhash Chandra Bose Birth Anniversary (Photo: Twitter) Netaji Subhash Chandra Bose Birth Anniversary (Photo: Twitter)
हाइलाइट्स
  • अंग्रेजों को चकमा देकर भाग निकले 

  • संभाली आजाद हिंद फौज की कमान 

  • अमर रही प्रेम कहानी 

'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दुंगा,' ये शब्द सुनकर आज भी लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. और इन शब्दों को जिसने कहा, उनके बारे में जितना भी जान लें पर और थोड़ा जानने की कसक मन में रहती है.  भारत मां के सच्चे सपूत, भारतीयों के स्वतंत्रता सेनानी, अंग्रेजों के लिए युद्ध के क्रिमिनल और दुनिया के लिए एक पहेली- नेताजी सुभाष चंद्र बोस. 

भारत का वह वीर जिसने अंग्रेजों के जुल्म और खौफ के खिलाफ एक पूरी सेना खड़ी कर दी- आजाद हिंद फौज. और इस फौज ने भारत को उसका सबसे निरपेक्ष नारा दिया- जय हिंद. नेताजी ने जो किया वह किसी की कल्पना से भी परे था. आज उनकी जयंती के मौके पर हम आपको बता रहे हैं उनसे जुड़े कुछ रोचक किस्से. 

अंग्रेजों को चकमा देकर भाग निकले 
साल 1940 में जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ तब अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण बोस, अंग्रेजों की कैद में थे. हालांकि, जेल में उनकी तबियत खराब हो गई क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भूख हड़ताल कर दी थी. इससे परेशान होकर तत्कालीन गवर्नर जॉन हरबर्ट ने उन्हें घर भेज दिया ताकि अंग्रेजों पर उनकी मौत का इल्जाम न लगे. 

लेकिन अंग्रेजों ने उनके घर के बाहर सादे कपड़ों में अपने सिपाही तैनात किए ताकि उनके ठीक होते ही उन्हें गिरफ्तार किया जाए. इस बीच, सुभाष चंद्र बोस ने अपने भतीजे शीशिर के साथ मिलकर बंगाल से निकलने की योजना बना ली. वह देर रात अपने घर से 'मोहम्मद ज़ियाउद्दीन' बनकर निकले. अंग्रेजों को 10 दिन बाद पता चला कि सुभाष चंद्र बोस बंगाल तो क्या देश छोड़कर जा चुके हैं.

संभाली आजाद हिंद फौज की कमान 
बात आजाद हिंद फौज की करें तो कम लोग यह जानते हैं कि इसकी स्थापना एक और भारतीय क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने की थी. इस फौज का गठन पहली बार 1942 में रास बिहारी बोस ने ब्रिटिश भारतीय सेना के भारतीय युद्धबंदियों के साथ मिलकर किया था. लेकिन यह 1943 में ही बिखरने लगी थी और फिर इसकी कमान रास बिहारी बोस ने सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी.

और सुभाष ने इसे फिर से रिवाइव किया. सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आज़ाद और स्वयं के नाम पर आईएनए के ब्रिगेड/रेजिमेंट का नाम रखा. झांसी की रानी, ​​​​लक्ष्मीबाई के नाम पर एक अखिल महिला रेजिमेंट भी थी. महिलाओं को सेना में भर्ती करने और उन्हें हर तरह से लड़ाई के लिए तैयार करने का सपना सुभाष ने देश की आजादी से भी पहले देख लिया था. आज भी लोग इस फौज को इसके कार्यान्वन के लिए याद करते हैं. 

आजाद हिंद फौज की महिला जासूस  
नेताजी ने आजाद हिंद फौज में न सिर्फ पुरुषों बल्कि महिलाओं को भी बराबर का मौका दिया. उन्होंने महिला रेजिमेंट में बहुत सी लड़कियों को ट्रेनिंग दी. सबसे दिलचस्प बात थी कि यहां पर कुछ लड़कियों को न सिर्फ मेडिकल की बल्कि जासूसी की ट्रेनिंग भी दी गई. 

आज भी बात भारत की महिला जासूसों की हो तो सबसे पहले नाम नीरा आर्या और सरस्वती राजामणि का आता है. नीरा आर्या और राजामणि ब्रिटिश पुलिस के साथ लड़कों के वेश में काम करती रहीं. और जरूरी सूचनाएं नेताजी तक पहुंचाती रहीं. एक बार उनकी एक साथी पकड़ी गई तो उसे बचाने में सरस्वती के पैर में गोली लग गई. लेकिन फिर भी जैसे-तैसे वे नेताजी तक पहुंची और उन्हें अंग्रेजों के अगले कदम की जानकारी दी. 

वहीं, नीरा आर्या ने सुभाष चंद्र बोस को बचाने के लिए अपने पति की जान ले ली थी. क्योंकि उनके पति ब्रिटिश पुलिस में अफसर थे और वह हर कीमत पर नेताजी को पकड़ना चाहते थे. लेकिन वह ऐसा कुछ करते इससे पहले ही नीरा ने उन्हें मार दिया और इस जुर्म में ब्रिटिश सरकार की सजा भी काटी. 

गुमनामी में जिए ये सिपाही 
आजाद हिंद फौज के बहुत से लोग आजादी के बाद भारत में आकर बस गए. लेकिन उन्होंने कभी भी अपने योगदान के बदले कोई तमगा या मेडल नहीं लिया. इनमें से एक थे कर्नल निजामुद्दी. ये नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भरोसेमंद सहयोगी थे. उन्होंने एक बार तत्कालीन बर्मा के जंगलों में नेता जी को बचाने के लिए तीन गोलियां खाईं थीं. जिसके बाद नेताजी ने उन्हें 'कर्नल' की उपाधि दी. 

इसी तरह चेन्नई के रतीनावेलु ने अपना पूरा जीवन देश के नाम कर दिया. उन्होंने जिंदगी की सबसे बेहतरीन उम्र नेताजी के साथ देश के लिए लड़ते हुए बिताए. आजादी के बाद भी उन्होंने देश को शिक्षा के रूप में कुछ देने की ठानी और स्कूल शुरू किया. 

अमर रही प्रेम कहानी 
साल 1934 में सुभाष चंद्र बोस की मुलाकात ऑस्ट्रिया के विएना में उस लड़की से हुई जिसने उनके दिल-ओ-दिमाग में घर कर लिया था. यह लड़की थी एमिली शेंकल. बोस पर लिखी गईं कई किताबों में उनकी प्रेम कहानी का उल्लेख है और कई जगह उनके लव लेटर्स की पिक्चर्स भी हैं. 

एमिली और बोस के बीच 12 साल का रिश्ता रहा, जिसमें वह मुश्किल से 3 साल साथ रहे. लेकिन उनका प्रेम इतना गहरा था कि कभी भी एक-दूसरे को उन्होंने नहीं छोड़ा. बताया जाता है कि बोस ने 1937 में एमिली से शादी कर ली थी. और साल 1942 में उनकी एक बेटी भी हुई. 

उनकी बेटी अनीता बोस को एमिली ने अकेले ही पाला और साल 1996 में अंतिम सांस ली. वहीं, सुभाष चंद्र बोस की मृत्यू के बारे में हमेशा से ही विवाद बना रहा है.