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प्यार और स्नेह में ट्रांसफर की गई प्रापर्टी को गिफ्ट डीड में गिना जाएगा, जरूरी नहीं कि बदले में बच्चे आपकी सेवा करें : सुप्रीम कोर्ट

रिलीज डीड ऐसी संपत्ति के संबंध बनाई जाती है जो किसी व्यक्ति को वारिस नाते प्राप्त होती है. वारिस नाते प्राप्त होना उस संपत्ति को कहा जाता है जो किसी दूसरे व्यक्ति की होती है और किसी तीसरे व्यक्ति को ऐसी संपत्ति उत्तराधिकार में मिलती है. इस मामले में याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने एक फैसला सुनाया.

Supreme Court Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की धारा 23 तभी लागू होगी जब किसी वरिष्ठ नागरिक द्वारा संपत्ति का हस्तांतरण उसे बुनियादी सुविधाएं और बुनियादी भौतिक जरूरतें प्रदान करने की शर्त के अधीन होगा.

क्या है मामला?
इस मामले में, एक सीनियर सिटीजन महिला ने याचिका दायर की थी. महिला द्वारा माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 23 के तहत एक याचिका दायर की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसके बेटे और बेटियां उसका ध्यान नहीं रख रहे थे और इसलिए उसने अपनी दो बेटियों को void घोषित करने के लिए रिलीज डीड एक्सजीक्यूट किया गया था. The Maintenance Tribunal ने याचिका को स्वीकार कर लिया और release deed को शून्य और null घोषित कर दिया. पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने इस आदेश को बरकरार रखा.

वहीं शीर्ष अदालत के समक्ष, अपीलकर्ता-बेटियों ने तर्क दिया कि रिकॉर्ड में ऐसी कोई बात नहीं है जो यह संकेत दे सके कि रिलीज डीड का निष्पादन धोखाधड़ी या जबरदस्ती या अनुचित प्रभाव से किया गया था. प्रतिवादी-वरिष्ठ नागरिक ने आक्षेपित आदेश का समर्थन किया.

सामने आईं दो बातें 
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने धारा 23 का उल्लेख किया और कहा कि धारा 23 की उप-धारा (1) को आकर्षित करने के लिए निम्नलिखित दो शर्तें पूरा किया जाना चाहिए.

स्थानान्तरण इस शर्त के अधीन किया जाना चाहिए कि ट्रांसफेरी (संपत्ति लेने वाला), ट्रांसफेरर (संपत्ति देने वाला) को बुनियादी सुविधाएं और मूलभूत भौतिक आवश्यकताएं प्रदान करेगा.
ट्रांसफेरी अगर सुविधाओं और भौतिक जरूरतों को हस्तांतरणकर्ता को प्रदान करने से इनकार करता है या विफल रहता है.

उन्होंने कहा, "यदि पूर्वोक्त दोनों शर्तें कानूनी कल्पना से संतुष्ट हैं, तो स्थानांतरण को धोखाधड़ी या जबरदस्ती या अनुचित प्रभाव से किया गया माना जाएगा. इस तरह का स्थानांतरण तब हस्तांतरणकर्ता के कहने पर शून्य हो जाता है और रखरखाव न्यायाधिकरण को हस्तांतरण को शून्य घोषित करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है (यदि बच्चे माता-पिता की देखभाल नहीं करते हैं जिन्होंने उन्हें संपत्ति उपहार में दी है.) ”

बदल गया फैसला
बता दें कि गुरुग्राम में रहने वाली एक महिला ने अपने बच्चों को कुछ संपत्ति उपहार में दी थी. बाद में उसने गिफ्ट डीड को रद्द करने के लिए मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल का रुख किया और आरोप लगाया कि बच्चे उसकी देखभाल नहीं कर रहे हैं. ट्रिब्यूनल ने आरोपों को सही पाया और मई 2018 में गिफ्ट डीड को रद्द कर दिया. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले से सहमति जताई.

लेकिन बाद में जस्टिस कौल और ओका ने यह कहते हुए फैसले को पलट दिया. बेंच ने कहा कि गिफ्ट डीड में बूढ़ी महिला को उसके तीन बच्चों, दो बेटियों और एक बेटे को उपहार में दी गई संपत्ति के बदले रखरखाव के लिए एक स्पष्ट खंड नहीं था इसलिए, गिफ्ट डीड को रद्द नहीं किया जा सकता है. SC ने कहा कि जब कोई वरिष्ठ नागरिक अपने प्रियजनों के पक्ष में उपहार देकर अपनी संपत्ति का हिस्सा देता है, तो वरिष्ठ नागरिक की देखभाल की शर्त जरूरी नहीं है. उन्होंने कहा, "बहुत बार, इस तरह से बिना किसी अपेक्षा के प्यार और स्नेह में चीजें ली और दी जाती हैं. इसलिए, जब यह आरोप लगाया जाता है कि धारा 23 की उप-धारा (1) में उल्लेखित शर्तें एक हस्तांतरण से जुड़ी हैं, तो ऐसी शर्तों का अस्तित्व न्यायाधिकरण के समक्ष स्थापित किया जाना चाहिए.''