Indian Railways 
 Indian Railways सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि ट्रेन यात्रा के दौरान किसी यात्री से चुराए गए पैसे को रेलवे की ओर से सेवा की कमी नहीं कहा जा सकता है. यह फैसला कोर्ट ने एक मामले में सुनाया. दरअसल, अप्रैल 2005 में एक कपड़ा व्यापारी के यात्रा के दौरान एक लाख रुपए धनराशि की चोरी हो गई थी और इस मामले में जिला, राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम ने रेलवे को ब्याज सहित 1 लाख रुपये का भुगतान करने के लिए कहा था.
उपभोक्ता मंचों के सर्वसम्मत फैसलों को चुनौती देने वाली रेलवे की अपील को स्वीकार करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की अवकाश पीठ ने केंद्र सरकार के वकील राजन के चौरसिया से सहमति जताई और कहा, "हम यह समझने में विफल हैं कि चोरी को कैसे रेलवे द्वारा सेवा में कमी माना जा सकता है जब यात्री अपने सामान को सुरक्षित रखने में सक्षम नहीं होता है.
क्या था मामला
कपड़ा व्यापारी सुरेंद्र भोला 27 अप्रैल 2005 को काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस में आरक्षित बर्थ पर सफर कर रहे थे. उनकी कमर में बंधी कपड़े की पेटी में एक लाख रुपये रखे थे जिनसे वह कपड़ा खरीदने के लिए दिल्ली जा रहे थे. 28 अप्रैल को सुबह 3.30 बजे उठने पर उसने देखा कि कपड़े की पेटी और पतलून के दाहिने हिस्से का हिस्सा कटा हुआ है और एक लाख रुपये चोरी हो गये हैं. 28 अप्रैल को दिल्ली स्टेशन पर उतरते ही उन्होंने राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) में प्राथमिकी दर्ज करायी.
कुछ दिनों बाद, उन्होंने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, शाहजहांपुर में एक शिकायत दर्ज की, जिसमें रेलवे को 18% ब्याज के साथ अपने चोरी हुए पैसे की भरपाई करने और क्षतिग्रस्त पतलून के लिए 400 रुपये देने का निर्देश देने की मांग करते हुए दावा किया गया कि चोरी रेलवे की लापरवाही के कारण हुई थी.
रेलवे ने दिया यह तर्क 
रेलवे ने कहा कि वह केवल अपने साथ बुक किए गए सामान के लिए जिम्मेदार है न कि यात्रियों के सामान के लिए. रेलवे ने जिला फोरम को बताया था कि हर स्टेशन पर यात्रियों को सतर्क रहने और अपने सामान की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होने की चेतावनी देने के लिए नोटिस लगाए गए हैं. रेलवे ने कहा था कि यात्रियों और उनके सामान की सुरक्षा राज्य सरकारों के तहत काम करने वाली जीआरपी के अधिकार क्षेत्र में आती है. 
2006 में जिला मंच ने शिकायत को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया और रेलवे को भोला को 1 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया, जबकि क्षतिग्रस्त पतलून के लिए ब्याज और मुआवजे के दावों को खारिज कर दिया. उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने 31 दिसंबर, 2014 को रेलवे की अपील खारिज कर दी थी. बाद में, रेलवे की अपील को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने 12 जून, 2015 को खारिज कर दिया था.