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Supreme Court में सरकारी संस्थान लड़ रहे केस, जिनमें हो रहा समय और पैसा बर्बाद, Mediation का रास्ता है सबसे बेहतर

इस साल फरवरी में क़ानून मंत्रालय ने राज्यसभा को बताया कि केंद्र सरकार देशभर की अदालतों में लंबित करीब सात लाख मामलों में पक्षकार है, जिनमें से केवल वित्त मंत्रालय ही लगभग दो लाख मामलों में वादकारी है.

Justice BV Nagarathna Justice BV Nagarathna

सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने सरकारी निकायों को बेवजह मुकदमे दायर करने पर कड़ी आलोचना की है. उन्होंने कहा कि बार-बार ऐसे मामलों को अदालत में ले जाना, जिनमें सफलता की कोई संभावना नहीं है, केवल जनता के पैसों और न्यायालय के समय की बर्बादी है.

उन्होंने भुवनेश्वर में आयोजित द्वितीय राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन में कहा, "अगर सरकारी निकाय केवल न्यायिक रास्ते ख़त्म करने के लिए मुकदमे दर्ज करते रहेंगे, तो देश के संसाधन गलत तरीके से इस्तेमाल होंगे और न्यायालय का समय व्यर्थ जाएगा."

मध्यस्थता न्याय का कमजोर विकल्प नहीं...
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने यह धारणा भी ख़ारिज की कि मध्यस्थता (Mediation) न्याय का कमजोर या हल्का रूप है. उन्होंने इसे सुलभ और न्यायसंगत बताते हुए कहा कि मध्यस्थता न सिर्फ़ न्याय पाने का तरीका है बल्कि न्याय तक पहुंचने का भी सशक्त साधन है.

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कमर्शियल विवादों से आगे बढ़ाने की ज़रूरत
न्यायमूर्ति ने ज़ोर दिया कि मध्यस्थता का दायरा केवल कॉमर्शियल डिस्प्यूट्स तक सीमित नहीं रहना चाहिए. इसे पर्यावरण, स्वास्थ्य सेवा, बौद्धिक संपदा, कॉर्पोरेट गवर्नेंस, पब्लिक कॉन्ट्रैक्ट्स और किशोर न्याय जैसे क्षेत्रों में भी लागू किया जाना चाहिए.

वकीलों को बताया "मानव संघर्ष के चिकित्सक"
उन्होंने वकीलों से आह्वान किया कि वे खुद को “मानव संघर्ष के चिकित्सक” के रूप में देखें. साथ ही न्यायपालिका से आग्रह किया कि वे मध्यस्थता अधिनियम 2023 को पूरी तरह अपनाएं, क्योंकि यह संसद की उस मंशा को दर्शाता है जो अदालतों का बोझ कम करने और न्याय तक पहुंच को आसान बनाने की दिशा में है.

केंद्र सरकार पर लंबित सात लाख मुकदमे
क़ानून मंत्रालय के मुताबिक, केंद्र सरकार वर्तमान में करीब सात लाख मामलों में पक्षकार है. इनमें से सिर्फ़ वित्त मंत्रालय ही लगभग 1.9 लाख मामलों में शामिल है.

इसी साल फरवरी में संसद को दी गई जानकारी में क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया था कि सरकार अनावश्यक अपीलों को कम करने और विभागीय आदेशों में असंगतियों को दूर करने पर काम कर रही है, ताकि अदालतों में मामलों की संख्या घटाई जा सके.