
एक वैवाहिक विवाद के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पति-पत्नी को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि आपसी अहंकार को छोड़कर बच्चों के हित में सोचें. जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि इस तरह के झगड़ों से बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है और ऐसे मामलों में माता-पिता को जिम्मेदारी से पेश आना चाहिए.
पति रेलवे और पत्नी बैंक में कर्मचारी-
ये मामला एक ऐसे दंपति से जुड़ा है, जहां पति दिल्ली में रेलवे विभाग में कार्यरत है, जबकि पत्नी पटना में रिजर्व बैंक में नौकरी करती है और अपने माता-पिता के साथ रह रही है. दोनों की शादी वर्ष 2018 में हुई थी. उनके दो बच्चे हैं. सबसे बड़ी बेटी है, जिसकी उम्र 5 साल है. जबकि बेटा छोटा है और उसकी उम्र 3 साल है. साल 2023 से दोनों अलग रह रहे हैं और उनके बीच मतभेद इतने गहरे हो चुके हैं कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया.
पत्नी ने याचिका ट्रांसफर की मांग की-
पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर मुकदमे को ट्रांसफर करने की मांग की थी. वहीं, पति का कहना है कि वह ससुराल में रहना नहीं चाहता और लगातार पत्नी की ओर से मानसिक दबाव का सामना कर रहा है. पत्नी के परिवार ने पति के खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज करवा रखा है.
पति को लट्टू की तरह घुमाना ठीक नहीं- कोर्ट
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति को लट्टू की तरह घुमाना ठीक नहीं. आपसी संबंधों में अगर संवाद और समझदारी की जगह अहंकार ले ले, तो बच्चों का भविष्य सबसे अधिक प्रभावित होता है. कोर्ट ने दोनों पक्षों को मध्यस्थता के जरिए मामला सुलझाने की सलाह दी और कहा कि बच्चों का पालन-पोषण एक साझा जिम्मेदारी है, जिसे किसी एक की जिद या अहम के कारण नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
अंत में, पीठ ने स्पष्ट किया कि इस तरह के घरेलू विवादों का असर न केवल पति-पत्नी तक सीमित रहता है, बल्कि मासूम बच्चों की पूरी जिंदगी पर छाया डालता है. सुप्रीम कोर्ट का यह संदेश उन सभी वैवाहिक जोड़ों के लिए भी एक चेतावनी है जो अपने निजी मतभेदों को बच्चों की भलाई से ऊपर रख रहे हैं.
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