Hindu Marriage
Hindu Marriage आज का दिन यानी 16 जुलाई ऐतिहासिक दिन है. इस दिन ही साल 1856 में महिलाओं के लिए बड़ा सामाजिक सुधार हुआ था. देश में पहली बार कानूनी तौर पर विधवा महिलाओं को दोबारा शादी करने की इजाजत मिली थी. हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के तहत हिंदू विधवाओं को फिर से शादी करना वैध माना गया था. चलिए आपको बताते हैं कि कैसे इस कानून ने विधवा महिलाओं की जिंदगी बदल दी.
168 साल पहले आया था कानून-
आज से 168 साल पहले देश में महत्वपूर्ण सामाजिक सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया था. इस दिन ही देश में हिंदू विधवा पुनर्विवाह कानून लागू किया गया था. यह कानून हिंदू विधवाओं के पुनर्विवाह की इजाजत देता था. इस कानून का मसौदा लार्ड डलहौजी ने तैयार किया था. लेकिन लार्ड कैनिंग ने इसे लागू किया था.
इस कानून में विधवा महिलाओं को उनकी पहली शादी से मिली हुई विरासत और अधिकार प्राप्त करने का हक दिया गया. इस कानून के तहत विधवा महिलाओं के साथ शादी करने वाले पुरुषों को कानूनी सुरक्षा भी मिली थी. इस कानून ने विधवा महिलाओं के लिए नई राहें खोल दी. धीरे-धीरे उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार होने लगा.
पहले विधवा महिला की नहीं होती थी शादी-
साल 1856 से पहले हिंदुओं में विधवा महिलाओं के दोबारा शादी की इजाजत नहीं थी. इस सामाजिक प्रथा की वजह से महिलाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. समाज में उनको सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता था. उनकी स्थिति काफी खराब थी. उनका जीवन काफी कठिन था. उनको कई तरह की बंदिशों का सामना करना पड़ा था. उनका सामाजिक बहिष्कार भी किया जाता था.
चलाए गए थे सामाजिक सुधार आंदोलन-
विधवाओं की बेहतर हालत को सुधारने के लिए समाज सुधारकों ने आवाज उठाई. इसमें सबसे प्रमुख समाज सुधारक ईश्वरचंद विद्यासागर थे. उन्होंने विधवाओं की दोबारा शादी के समर्थन में सामाजिक आंदोलन चलाया. विद्यासागर ने अपने बेटे की शादी विधवा से की थी. हालांकि इस शादी को करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी. उनको काफी विरोध का सामना करना पड़ा. ये शादी पुलिस की मौजूदगी में हुई थी.
विधवा पुनर्विवाह कानून एक ऐतिहासिक कदम था, जिसने भारतीय समाज में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया. यह कानून विधवाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए बना था.
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