
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा छाया हुआ है. फडणवीस सरकार ने मनोज जरांगे की मांगों को मान लिया है. सरकार ने हैदराबाद गजट जारी करते हुए मराठा समाज के लोगों को कुनबी जाति का दर्जा देने का ऐलान किया है. उधर, महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल ने इस आदेश के खिलाफ कोर्ट जाने की बात कही है.
देशभर में कई बार ऐसे मामले सामने आए हैं. जब आरक्षण की मांग को लेकर बड़े आंदोलन हुए हैं. कई बार सरकारों ने आरक्षण को लेकर आदेश भी जारी किए है. लेकिन कोर्ट में मामले अटक गए हैं. चलिए आपको ऐसे में कुछ आरक्षण मुद्दों का जिक्र करते हैं, जो सरकार के ऐलान के बाद भी कोर्ट में फंसे हुए हैं.
मध्य प्रदेश में 27 फीसदी OBC का मुद्दा-
साल 2019 में मध्य प्रदेश की तत्कालीन कमलनाथ की सरकार ने ओबीसी आरक्षण का दायरा 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया. इस फैसले के खिलाफ मार्च 2020 में हाईकोर्ट में याचिका दार की गई. हाईकोर्ट ने 27 फीसदी आरक्षण पर रोक लगा दी. कोर्ट ने कहा कि कुल आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं किया जा सकता. सितंबर में राज्य की बीजेपी सरकार ने गाइडलाइन जारी की और आरक्षण देने की अनुमति दे दी. अगस्त 2023 में मामले फिर से हाईकोर्ट पहुंचा.
22 अप्रैल 2025 को 27 फीसदी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में चल रहे सभी 52 पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट को ट्रांसफर किया गया. सुप्रीम कोर्ट में इन मामलों की लगातार सुनवाई 22 सितंबर से शुरू होगी.
बिहार में जातिगत आरक्षण 65 फीसदी का मुद्दा-
बिहार की नीतीश सरकार ने विधानसभा में 9 नवंबर 2023 को आरक्षण संशोधन विधेयक 2023 पास किया. इसमें जातिगत आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया गया था. इसमें EWS को 10 फीसदी कोटे को मिलाकर कुल आरक्षण 75 फीसदी पहुंच गया था. सरकार के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी गई. पटना हाईकोर्ट ने जुलाई 2024 में आरक्षण पर इस फैसले को खारिज कर दिया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. अभी भी मामला कोर्ट में फंसा हुआ है.
आंध्र प्रदेश में मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा-
आंध्र प्रदेश में पहली बार साल 2004 में मुसलमानों को ओबीसी कोटे में 5 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई. लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. इसके बाद पिछड़ा वर्ग आयोग ने सभी मुसलमानों को पिछड़ा मान लिया और साल 2005 में मुसलमानों को 5 फीसदी आरक्षण दिया गया. लेकिन कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया. साल 2010 में मुसलमानों की कुछ जातियों को 4 फीसदी आरक्षण दिया गया. लेकिन कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया. आज भी आंध्र प्रदेश में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.
लिमिट 50 फीसदी तो तमिलनाडु में 69 फीसदी कैसे?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक जातिगत आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता. लेकिन तमिलनाडु में 69 फीसदी आरक्षण लागू है. इसके पीछे एक कहानी है. दरअसल साल 1990 में तमिलनाडु में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 69 फीसदी किया गया. इसके बाद साल 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत आरक्षण का अधिकतम दायरा 50 फीसदी कर दिया. इसके बाद आरक्षण पर जयललिता सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा. साल 1993 में जयललिता ने विधानसभा का स्पेशल सेशन बुलाया और प्रस्ताव पारित किया. इस प्रस्ताव को केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार सरकार के पास भेज दिया. नरसिम्हा राव की सरकार ने तमिलनाडु के आरक्षण मामले को संविधान की 9वीं अनुसूची में डाल दिया. आपको बता दें कि 9वीं अनुसूची में शामिल विषयों की अदालत में समीक्षा नहीं की जा सकती. इस तरह से तमिलनाडु में 69 फीसदी आरक्षण लागू है.
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