महाराष्ट्र में राजनीतिक राजवंश उतना ही पुराना है जितना की राज्य. पवार, चव्हाण और ठाकरे सभी ने मुख्यमंत्री सहित कई कार्यालयों में काम किया है. हालांकि, उन सभी में गोविंदराव और शारदाबाई पवार के 11 बच्चों की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक तौर पर अपनी एक अलग ही भूमिका है. एक तरफ जहां 82 वर्षीय शरद गोविंदराव पवार, पवार कबीले में सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध नाम हैं, अन्य 10 भाई-बहनों ने अपने-अपने क्षेत्र में अपना नाम बनाया है.
शरद पवार गोविंदराव और शारदाबाई पवार की आठवीं संतान हैं, जिनके सात बेटे और चार बेटियां थीं. कहा जाता है कि पवार की राजनीतिक जमीन उनकी मां शारदाबाई पवार की सक्रियता से प्रेरित है, जोकि किसान और श्रमिक पार्टी (पीडब्ल्यूपी) और कांग्रेस से जुड़ी थीं. 1938 में, शारदाबाई पुणे स्थानीय बोर्ड चुनावों में निर्विरोध चुनी गईं. शारदाबाई पुणे जिले की बहुत कम महिला राजनेताओं में से एक थीं.
पवार परिवार
शरद पवार अक्सर उन्हें और उनके भाई-बहनों को कड़ी मेहनत और सार्वजनिक कारणों के प्रति प्रतिबद्धता के लिए सम्मान देने के लिए अपनी मां को श्रेय देते हैं. पवार के सबसे बड़े भाई वसंतराव पवार एक प्रसिद्ध वकील थे और पुणे जिले में काम करते थे. एक भूमि विवाद में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. वसंतराव के साथ, शरद के तीन अन्य भाइयों की अब मृत्यु हो चुकी है. उनमें दिनकरराव पवार शामिल हैं, जो एक कृषक थे, अनंतराव पवार जो अजीत पवार के पिता हैं और माधवराव पवार, जिन्होंने अपनी इन्डस्ट्रियल यूनिट्स स्थापित कीं.
सूर्यकांत पवार एक वास्तुकार हैं जिनकी रियल एस्टेट क्षेत्र में रुचि है. उनके बाद सरला जगताप और सरोज पाटिल हैं. पाटिल स्वर्गीय नारायण दयानदेव पाटिल की पत्नी हैं, जो राज्य के वामपंथी आंदोलन के एक बड़े नेता थे, जो PWP से जुड़े थे. शरद पवार और एन डी पाटिल ने राजनीति के दो विपरीत दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व किया और विभिन्न राजनीतिक मुद्दों का सामना किया, लेकिन इसे कभी भी अपने व्यक्तिगत संबंधों के आड़े नहीं आने दिया.
शरद पवार परिवार में आठवें बच्चे हैं. उनके बाद मीना जगधने, प्रताप पवार हैं जो अखबारों के सकाल समूह के प्रमुख हैं. इसके बाद नीला ससाने हैं जोकि परिवार में सबसे छोटी हैं.
कब आए राजनीति में
शरद 1967 से चुनावी राजनीति में सक्रिय हैं, जब उन्होंने बारामती से अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता था. उसके बाद, उनका महाराष्ट्र विधानसभा या संसद में निर्बाध कार्यकाल रहा. साल 2019 में चुनावी राजनीति से वो पीछे हट गए. उन्होंने चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया है और रक्षा और कृषि सहित महत्वपूर्ण विभागों की सेवा करते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनका एक लंबा कार्यकाल रहा. गोविंदराव और शारदाबाई पवार के बाद दूसरी पीढ़ी काफी हद तक एक साथ रही. इसके बाद परिवार की तीसरी पीढ़ी के सक्रिय हो जाने के बाद एक बार फिर परिवार में असंतोष बढ़ने लगा.
सुप्रिया की एंट्री से परेशान हुए अजीत
पवार परिवार के बाकी सदस्यों की तरह, शरद के बड़े भाई अनंतराव के बेटे अजीत, सहकारी क्षेत्र के माध्यम से राजनीति में आए. साल 1991-92 से पवार के पक्ष में, शरद के कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी बनाने के बाद, उन्होंने खुद को उत्तराधिकारी के रूप में देखा था. लेकिन शरद की बेटी सुप्रिया सुले के 2009 के संसदीय चुनावों में राजनीति में प्रवेश ने एनसीपी के प्रथम परिवार के भीतर बेचैनी की अटकलों को जन्म दिया. अजीत खेमे के लिए एक और परेशानी शरद के पोते रोहित पवार का राजनीति में प्रवेश था. रोहित ने कर्जत जमखेड से 2019 का विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता.
बेटे को लाना चाहते थे अजित
साल 2019 के विधानसभा चुनावों से कुछ हफ्ते पहले, अजीत प्रवर्तन निदेशालय द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनका और शरद का नाम लिए जाने पर सार्वजनिक रूप से टूट गए थे. उन्होंने दावा किया था कि उन्हें इस बात से गहरी चोट लगी थी. उन्होंने विधायक के रूप में इस्तीफा दे दिया और किसी से बात नहीं की. शरद पवार के 2019 के लोकसभा चुनाव लड़ने से पीछे हटने के फैसले के बारे में कहा गया था कि अजित अपने बेटे पार्थ को मावल से मैदान में उतारने पर जोर दे रहे थे. माना जाता है कि पार्थ की हार ने परिवार का माहौल और खराब कर दिया.
2019 में अजीत पवार ने आखिरकार अपने चाचा से अलग होकर भाजपा के साथ अल्पकालिक सरकार बनाने का साहस किया. जबकि शरद पवार अपने भतीजे को पछाड़ने में कामयाब रहे और उन्हें महाराष्ट्र विकास अघडी (एमवीए) सरकार बनाने के लिए वापस लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. एक बार फिर से शरद पवार के एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे की घोषणा ने एनसीपी और पवार परिवार के बारे में सुर्खियां तेज कर दी हैं.