
भोपाल से लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित रावन गांव में हर सुबह-शाम घरों और खेतों में यह पंक्तियां गूंजती हैं-
“जय लंकेश ज्ञान गुण सागर, असुरराज सब लोक उजागर.”
देश के अन्य हिस्सों से अलग, यहां लोग ‘रावण चालीसा’ का पाठ करते हैं और रावण की आरती उतारते हैं.
दशहरे पर अनोखी परंपरा
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, जब पूरे देश में दशहरे पर रावण का दहन होता है, उसी समय इस गांव में रावण की पूजा और भव्य भंडारा आयोजित होता है. गांववाले रावण को ‘ग्राम देवता’ मानते हैं और उनके लिए विशेष पूजा करते हैं.
500 साल पुराना रावण मंदिर
नटेऱन तहसील (विदिशा, मध्य प्रदेश) में स्थित इस गांव में एक प्राचीन मंदिर है, जहां 12 फीट लंबी लेटी हुई रावण की प्रतिमा स्थापित है. माना जाता है कि लगभग 500 साल पहले पास के पहाड़ पर रहने वाले ‘बुडेका’ नामक दैत्य ने रावण के कहने पर यह प्रतिमा स्थापित की थी. मंदिर की बारीक नक्काशी रावण की विद्वता और देवत्व का प्रतीक मानी जाती है.
गांव का गर्व: रावण बाबा
गांव के वरिष्ठ अधिवक्ता लक्ष्मी नारायण तिवारी (78) ने टीओआई से कहा, “हर सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम में सबसे पहले रावण बाबा की पूजा होती है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.” गांव के युवाओं ने लंकेश्वर वेलफेयर सोसाइटी भी बनाई है, जो मंदिर के विकास और सुंदरता बढ़ाने का काम करती है.
विशेष पूजा विधि
मंदिर के पुजारी अरविंद तिवारी बताते हैं कि किसी भी अवसर पर रावण बाबा को निमंत्रित करने का तरीका अनोखा है. इसके लिए तेल में डूबी रुई की बत्ती रावण की प्रतिमा की नाभि पर रखी जाती है. यह गांववालों की आस्था है कि ऐसा करने से सौभाग्य और समृद्धि आती है.
गांव का नाम और पहचान
गांव के लोग बताते हैं कि उन्हें यह नहीं पता कि गांव का नाम ‘रावन’ कब और क्यों पड़ा, लेकिन उनका कहना है कि वे इसे बदलना कभी नहीं चाहेंगे. गांव वाले कहते हैं, “यह नाम हमारा गर्व है, हमारी पहचान है.”
रावण के भक्त युवा
गांव के कई युवाओं के शरीर पर रावण के टैटू बने हैं. अंकित धाकड़ नामक युवक ने अपने हाथ पर रावण का नाम और चित्र गुदवाया है. वह कहते हैं कि हम सबको गर्व है कि रावण हमारे देवता हैं. टैटू हमारी आस्था और पहचान का प्रतीक है.
‘चंद्रहास’ तलवार की कथा
गांव के तालाब में एक पत्थर की तलवार पड़ी है, जिसका लगभग 7 फीट लंबा ब्लेड गर्मियों में पानी घटने पर दिखाई देता है. गांववालों का मानना है कि यह रावण की मशहूर तलवार ‘चंद्रहास’ है. पीढ़ियों से लोग इसकी पूरी लंबाई जानने के लिए खुदाई करते रहे हैं, लेकिन तलवार कभी पूरी तरह बाहर नहीं आई. यह अब भी जलमग्न है और शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजी जाती है.
रावण दहन का विरोध
गांव के लोग रावण को विद्वान और रक्षक मानते हैं, इसलिए वे रावण दहन का कड़ा विरोध करते हैं. किसान मनीष तिवारी (51) कहते हैं, “मैं दुर्गा उत्सव में शामिल होता हूँ, लेकिन रावण दहन नहीं देख पाता. हमारे देवता को जलते हुए देखना हमारे लिए असहनीय है. वह हमारे ईश्वर हैं, हम पीढ़ियों से उनकी पूजा करते आ रहे हैं.”
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