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केमिकल फ्री खेती हुई आसान: कानपुर का यह शख्स मिट्टी में मिला रहा अग्निहोत्र का भस्म, जानिए क्या है खेती का ये नया तरीका

कानपुर के रहने वाले पंकज मिश्र ने खेती का एक वैदिक तरीका खोज निकाला है. अग्निहोत्र के बाद बची हुई भस्म को खाद में मिलाते हैं, जिससे मिट्टी को वह सभी जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं.

पंकज मिश्रा पंकज मिश्रा
हाइलाइट्स
  • अग्निहोत्र से बीजोउपचार भी

  • खेतों में अग्निहोत्र भस्म का इस्तेमाल

जलवायु परिवर्तन और बढ़ता प्रदूषण अब कृषि पर भी भारी पड़ रहा है. लगातार बढ़ रहे रासायनिक खाद के इस्तेमाल से खेती करने वाली जमीन प्रदूषित हो रही है. साथ ही फसलों को भी नुकसान हो रहा है. यही वजह है कि अब किसान रासायनिक खेती की जगह अग्निहोत्र कृषि की ओर बढ़ रहे हैं. देश के कई बड़े कृषि वैज्ञानिकों ने खेती की इस वैदिक तकनीक को लाभप्रद बताया है.  

कानपुर के रहने वाले पंकज मिश्रा अग्निहोत्र के बाद बची हुई भस्म को खाद में मिलाते हैं, जिससे मिट्टी को वह सभी जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं, जिसकी उसे जरूरत होती है. पंकज मिश्र पहले मार्केटिंग की फील्ड में सेल्स का काम करते थे, लेकिन अब वो अग्निहोत्र कृषि की तरफ अग्रसर हुए हैं और उन्होंने अग्निहोत्र फ्रेश फार्म नाम से एक स्टार्टअप कंपनी रजिस्टर की है, जो कि अग्निहोत्र कृषि के द्वारा पैदा किए गए उत्पादों की मार्केटिंग करेगी. 

अग्निहोत्र फ्रेश फार्म स्टार्टअप के तहत रेस्टोरेंट और सेल्फ स्टोर्स की चेन कानपुर, लखनऊ, जयपुर और भोपाल में खोली जाएगी. ख़ास बात तो यह कि इस पूरे प्रोजेक्ट में भारत सरकार ने स्टार्टअप के तहत संस्था को बैंक के माध्यम से पूरी वित्तीय सुविधा प्रदान की है. 

क्या है अग्निहोत्र? 
अग्निहोत्र वेदों में बताई हुई एक हवन पद्धति है, जो सूर्योदय और सूर्यास्त पर होती है. अग्निहोत्र हवन जिसे करने के लिए तांबे या मिट्टी के पात्र की आवश्यकता होती है. यह पात्र पिरामिड के आकार का होता है. जिसमें गाय के गोबर से बने हुए कंडे को रखा जाता है और उसमें साबुत चावल के साथ गाय का शुद्ध घी मिलाकर आहुति डाली जाती है. इसे होमा फार्मिंग भी कहा जाता है. सूर्योदय के समय सूर्याय स्वाहा, सूर्याय इदं न मम... प्रजापतये स्वाहा, प्रजापतये इदं न मम' मंत्र का पाठ करते हुए आहुति दी जाती है. इसी प्रकार सूर्यास्त के वक्त अग्नये स्वाहा, अग्नये इदं न मम व प्रजापतये स्वाहा, प्रजापतये इदं न मम मंत्रोच्चार कर आहुति की जाती है.  

कैसे होती है अग्निहोत्र कृषि? 
अग्निहोत्र हवन करने के बाद जो राख (भस्म) बचती है, उसका इस्तेमाल खेती करने के लिए होता है. साथ ही खेत में अग्निहोत्र हवन करने से शुद्ध वातावरण का घनत्व बढ़ता है जिससे फसल में आपको आश्चर्यचकित करने वाले परिणाम दिखेंगे. इस पद्धति में बोनी से कटनी तक खेत में अग्निहोत्र करना होता है. 

अग्निहोत्र से बीजोउपचार भी
पंकज मिश्रा का यह कहना है कि अग्निहोत्र से बीज जनित रोग भी नियंत्रित किए जा सकते हैं. इसके लिए गौमूत्र एवं अग्निहोत्र भस्म की आवश्कता पड़ती है. धान, फल, सब्जी के बीज गोमूत्र और अग्निहोत्र के भस्म के घोल में डुबो कर रखे जाते है. इसके बाद उनकी बोनी की जाती है. देश भर में कई किसान इस पद्धति को अपनाकर आश्चर्यचकित करने वाले परिणाम हासिल कर चुके हैं. कई साइंटिफिक रिपोर्ट्स में भी यह सिद्ध हो चुका है कि अग्निहोत्र कृषि पद्धति फसलों पर काफी असरदार है.  साथ ही इसे करने के तरीके को माधव आश्रम, भोपाल ने पेटेंट भी कराया हुआ है. 

अग्निहोत्र कृषि का डंका भारत ही नहीं ऑस्ट्रेलिया और रूस जैसे देशों में भी बज रहा है. विदेशों से कई लोग इसके बारे में जानने के लिए उनके पास आते हैं. पंकज मिश्रा का कहना है कि अग्निहोत्र फार्म स्टार्टअप के जरिए शुद्ध तरीके से पैदा हुई फसल को इस्तेमाल कर लोगों को शुद्ध खाना देने उनका लक्ष्य है. 

खेतों में अग्निहोत्र भस्म का इस्तेमाल
पंकज मिस्र बताते हैं कि अमावस्या व पूर्णिमा को आधे घंटे तक वो महामृत्युंजय हवन करते हैं. इस दौरान मंत्रोच्चार से होने वाला स्पंदन खेती के लिए लाभप्रद पाया गया है.  इस बीच दोनों दिनों के हवन से जो राख बनती है उसे अलग-अलग पात्र में रखा जाता है. फिर दोनों को मिलाकर खेतों में उनका छिड़काव कर दिया जाता है.

(सिमर चावला की रिपोर्ट)