
शादी भारतीय महिलाओं की ज़िंदगी में बड़ा बदलाव लेकर आती है, जबकि पुरुषों की दिनचर्या में इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता. हाल ही में जारी टाइम यूज़ सर्वे के आंकड़े इस असमानता की ओर इशारा करते हैं. यह सर्वे देशभर में 4.5 लाख से अधिक लोगों पर आधारित है, जिसमें महिलाओं ने बताया कि शादी के बाद उनका ज़्यादातर समय घरेलू ज़िम्मेदारियों में बीतने लगता है- सुबह जल्दी उठने से लेकर रात देर तक काम करने तक.
शादी के बाद बदल जाती है महिलाओं की जिंदगी
सर्वे के मुताबिक, शादी के बाद महिलाएं अपने दिन का लगभग 25% समय घरेलू कामों जैसे खाना बनाना, सफाई करना और बच्चों की देखभाल में खर्च करती हैं, जबकि अविवाहित महिलाएं इन कार्यों में केवल 6% समय लगाती हैं. वहीं पुरुषों के लिए शादी से पहले और बाद की दिनचर्या में खास अंतर नहीं देखा गया.
महिलाओं की पढ़ाई और नौकरी पर भी असर पड़ता है. अविवाहित महिलाएं अपने समय का लगभग 23% पढ़ाई या काम में लगाती हैं, लेकिन शादी के बाद यह प्रतिशत घट जाता है. दूसरी ओर, पुरुषों के लिए यह अनुपात लगभग समान बना रहता है, चाहे वे शादीशुदा हों या नहीं.
शादीशुदा महिलाएं करती हैं सबसे ज्यादा घरेलू काम
खाना बनाने के काम में सबसे बड़ा अंतर देखा गया. शादीशुदा महिलाएं रोज़ाना करीब 3 घंटे खाना बनाने में लगाती हैं, जबकि पुरुष सिर्फ़ 4 मिनट. बच्चों की देखभाल के मामले में भी महिलाओं पर ज़्यादा भार होता है- वे रोज़ लगभग 1 घंटा बच्चों को देती हैं, जबकि पुरुषों का योगदान औसतन 19 मिनट होता है.
कुल मिलाकर, शादीशुदा महिलाएं रोज़ 6 घंटे घरेलू कामों में व्यतीत करती हैं, जबकि तलाकशुदा महिलाओं के लिए यह समय घटकर लगभग 3 घंटे रह जाता है. यह सर्वे स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि शादी के बाद महिलाओं की ज़िम्मेदारियां काफी बढ़ जाती हैं, जबकि पुरुषों की दिनचर्या लगभग जस की तस बनी रहती है.
महिलाओं पर घर की जिम्मेदारी
टाइम्स यूज सर्वे 2024 के आंकड़ों के मुताबिक, शादीशुदा महिलाएं अवैतनिक घरेलू कार्यों (जैसे खाना बनाना, सफाई करना, कपड़े धोना) और देखभाल (बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों की देखभाल) में पुरुषों की तुलना में काफी ज्यादा समय बिताती हैं. 2024 में, महिलाएं प्रतिदिन औसतन 289 मिनट घरेलू कामों में बिताती हैं, जबकि पुरुष केवल 88 मिनट. यह 201 मिनट का बड़ा अंतर है. परिवार की देखभाल संबंधी गतिविधियों में, महिलाएं प्रतिदिन औसतन 137 मिनट बिताती हैं, जबकि पुरुष 75 मिनट. यह भारतीय सामाजिक ताने-बाने को दर्शाता है जहां घर की देखभाल की ज्यादा जिम्मेदारी महिलाओं पर होती है.
रोजगार में भागीदारी:
15-59 वर्ष आयु वर्ग में, 2024 में पुरुषों की 75% भागीदारी की तुलना में केवल 25% महिलाएं ही रोजगार और संबंधित गतिविधियों में भाग ले रही थीं. हालांकि, यह 2019 (2019 में 21.8% था) की तुलना में थोड़ा बढ़ा है. यह दर्शाता है कि, बिना वेतन वाले काम के भारी बोझ के कारण, महिलाओं की वेतन वाले कामों में भागीदारी सीधे प्रभावित होती है. यानी कि घरेलू कामों के चक्कर में अक्सर महिलाओं की जॉब प्रभावित होती है.
15-59 वर्ष की आयु की महिलाएं 2019 में अवैतनिक घरेलू सेवाओं में लगभग 315 मिनट खर्च करती थीं, जो 2024 में घटकर 305 मिनट हो गया है. हालांकि यह बदलाव बहुत धीमा है.
छुट्टी और सेल्फ-केयर:
पुरुष छुट्टी वाली गतिविधियों (जैसे खेल, मीडिया और सामाजिककरण) पर महिलाओं की तुलना में अधिक समय बिताते हैं. पुरुषों ने इन गतिविधियों पर प्रतिदिन 177 मिनट खर्च किए, जबकि महिलाओं ने केवल 164 मिनट. यह बताता है कि महिलाओं को छुट्टी और सेल्फ-केयर के लिए कम समय मिलता है.
घरेलू काम का मूल्यांकन
घरेलू काम या जिन कामों का महिलाओं को वेतन नहीं मिलता, वह परिवारों, समुदायों और पूरी अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी होते हैं. लेकिन फिर भी इन कामों को काफी हद तक अनदेखा किया जाता है और कम आंका जाता है. अनुमान है कि महिलाओं के अवैतनिक घरेलू कार्य का आर्थिक मूल्य भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 15% से 17% तक है.
कुल मिलाकर, टाइम यूज सर्वे 2024 इस बात पर प्रकाश डालता है कि भारतीय शादीशुदा महिलाएं अभी भी अवैतनिक घरेलू और देखभाल कार्यों का एक बड़ा और असमान बोझ उठा रही हैं, जिसका उनके रोजगार में भागीदारी और छुट्टी के समय पर सीधा प्रभाव पड़ता है.