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UP Politics: अपना दल, SBSP, RLD, निषाद पार्टी... यूपी में छोटे दलों की क्या है ताकत? कैसे बनाते-बिगाड़ते हैं सरकार? समझिए

उत्तर प्रदेश पिछले 2 विधानसभा चुनावों में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला है. लेकिन इसके सहयोगी दलों की भी अहम भूमिका रही है. बीजेपी ने अनुप्रिया पटेल (Anupriya Patel) की अपना दल (एस) और संजय निषाद (Sanjay Nishad) की निषाद पार्टी के साथ गठबंधन किया. जबकि साल 2022 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने ओमप्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) की SBSP और जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) की पार्टी RLD के साथ गठबंधन किया. यूपी में हमेशा से छोटे दलों का बड़ा असर रहा है.

Om Prakash Rajbhar, Anupriya Patel and Jayant Chaudhary Om Prakash Rajbhar, Anupriya Patel and Jayant Chaudhary

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव साल 2027 में होने हैं. लेकिन सियासी दांव-पेंच का दौरा वक्त-वक्त पर लगता रहता है. दल चाहे छोटा हो या बड़ा हो, अपनी ताकत दिखाने से गुरेज नहीं करते. यूपी में छोटे सियासी दल भी अपनी समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं. कभी अकेले तो कभी साथ मिलकर अपनी ताकत दिखाते हैं. ऐसा ही एक नजारा दिल्ली में निषाद पार्टी के स्थापना दिवस के मौके पर देखने को मिला. इस कार्यकर्म में NDA के छोटे सहयोगी दल अपना दल(एस) और एसबीएसपी शामिल हुए. इसके बाद से ही सियासी कयासबाजी का दौर चल निकला है. सियासी गलियारे में इसे ताकत दिखाने के तौर पर देखा जा रहा है. अब सवाल उठता है कि क्या यूपी में छोटे-छोटे दल कोई सियासी उलटफेर कर सकते हैं? क्या छोटे-छोटे दलों के पाला बदलने से बड़े दलों का संतुलन बिगड़ सकता है? चलिए आपको यूपी के छोटे-छोटे दलों की पूरी सियासी कुंडली बताते हैं.

यूपी में कौन-कौन से छोटे दल हैं?
उत्तर प्रदेश में बीजेपी, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी बड़ी पार्टियां हैं. जिनकी सियासी ताकत सबसे ज्यादा है. इसके अलावे कई छोटी-छोटी पार्टियां हैं, जो अकेले चुनाव में उतरती हैं या बड़े दलों के साथ गठबंधन में मैदान में उतरती हैं. इसमें निषाद पार्टी (निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल), एसबीएसपी (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी), अपना दल (सोनेलाल), अपना दल (कमेरावादी), आरएलडी (राष्ट्रीय लोक दल), जनसत्ता दल लोकतांत्रिक, AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन) शामिल है. इसके अलावे भी यूपी में सीपीआई, सीपीएम भी सक्रिय हैं.

अकेले कितनी है छोटी पार्टियों की ताकत?
उत्तर प्रदेश में पिछला विधानसभा चुनाव साल 2022 में हुआ था. जिसमें बड़े दलों बीजेपी को 255 सीटें और समाजवादी पार्टी को 111 सीटें मिली थी. जबकि कांग्रेस को 2 और बीएसपी को सिर्फ एक सीट मिली थी. छोटे दलों की बात करें तो अपना दल (सोनेलाल) ने 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि आरएलडी को 8 सीटें और निषाद पार्टी को 6 सीटें मिली थी. ओमप्रकाश राजभर की पार्टी एसबीएसपी को 6 सीटों पर जीत मिली थी. रघुराज प्रताप सिंह की पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक को 2 सीटों पर जीत मिली थी.

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साल 2022 में कौन सी पार्टी किस गठबंधन में?
साल 2022 विधानसभा चुनाव में चुनाव हुए थे. उस समय एनडीए और समाजवादी पार्टी अपने सहयोगी दलों के साथ चुनाव मैदान में थी. एनडीए में बीजेपी, अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी शामिल थी. जबकि समाजवादी पार्टी ने जयंत चौधरी की RLD, ओमप्रकाश राजभर की एसबीएसपी, महान दल, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया), एनसीपी, जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) अपना दल (कमेरावादी) के साथ गठबंधन किया था.
कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने किसी के साथ गठबंधन नहीं किया था. इन दोनों दलों ने अकेले मैदान में उतरी थी.

गठबंधन में छोटे दलों की बढ़ती है ताकत?
पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए को जीत मिली थी. इस गठबंधन के छोटे दलों ने कांग्रेस और बीएसपी से भी ज्यादा सीटें पर जीत दर्ज की थी. एनडीए में बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी. निषाद पार्टी ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इससे पहले निषाद पार्टी को कभी भी इतनी सीटों पर जीत नहीं मिल पाई थी. लेकिन बड़े दल के साथ गठबंधन से उनकी सियासी ताकत बढ़ गई. गठबंधन में अपना दल की भी ताकत बढ़ जाती है. साल 2017 के चुनाव में भी अपना दल को 9 सीटों पर जीत मिली थी. अकेले दम पर भी अपना दल कई चुनाव लड़ चुकी है. लेकिन कभी इतनी बड़ी सफलता नहीं मिली.

समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने पर एसबीएसपी को 6 सीटों पर जीत मिली. साल 2017 में एसबीएसपी ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया था. जिसमें उनको 4 सीटों पर जीत मिली थी.

साल 2022 में आरएलडी भी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में मैदान में उतरी थी. आरएलडी को 8 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 2.85 फीसदी वोट हासिल हुआ था. जयंती चौधरी की आरएलडी को अकेले लड़ने पर साल 2017 के चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत मिली थी.

क्या बड़ी पार्टियों का खेल बिगाड़ सकती हैं छोटी पार्टियां?
अगर छोटी पार्टियां चुनाव में अकेले मैदान में उतरती हैं तो छोटी पार्टियों का कोई असर नहीं होगा. ये पार्टियां सिर्फ वोटकटवा पार्टी साबित होंगी. लेकिन अगर ये पार्टियां गठबंधन बदलती हैं तो इसका असर जरूर होगा. इसका अंदाजा इस आंकड़े से लगाया जा सकता है कि साल 2017 के चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन के बावजूद समाजवादी पार्टी को सिर्फ 47 सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन साल 2022 में ओमप्रकाश राजभर और जयंत चौधरी के साथ गठबंधन का फायदा समाजवादी पार्टी को हुआ. अखिलेश यादव की पार्टी को 111 सीटों पर जीत मिली थी. पूर्वांचल के कई जिलों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया था. इन जिलों में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी एसबीएसपी का वोटबैंक अच्छी-खासी संख्या में है. वैसे ही पश्चमी यूपी में समाजवादी पार्टी को जयंत चौधरी के साथ का फायदा मिला.

अकेले बीजेपी और SP की कितनी ताकत है?
अगर पिछले 2 विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो बीजेपी के सदस्यों की संख्या अकेले दम पर सरकार बनाने की है. लेकिन इसमें सहयोगी दलों का भी अहम भूमिका है. साल 2017 में बीजेपी की लहर का फायदा छोटे दलों को हुआ तो साल 2022 में छोटे दलों के साथ का फायदा बीजेपी को हुआ. अपना दल के खास जाति के वोटबैंक और निषाद पार्टी को वोटबैंक का फायदा बीजेपी को मिला और पार्टी बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब रही.
उधर, समाजवादी पार्टी को साल 2017 में सिर्फ 47 सीटों पर जीत मिली थी. जबकि साल 2022 में पार्टी 111 सीटों तक पहुंच गई. समाजवादी पार्टी को भी छोटे दलों से गठबंधन का फायदा मिला. पार्टी को उन इलाकों में जीत मिली, जहां सहयोगी दलों का वोटबैंक मजबूत था. पूर्वांचल के गाजीपुर जिले की सातों सीटों पर समाजवादी पार्टी के गठबंधन को जीत मिली थी. ओमप्रकाश राजभर इसी जिले से आते हैं और इस जिले में उनका वोटबैंक काफी मजबूत है. उसी तरह से एसबीएसपी के वोटबैंक का फायदा पूर्वांचल के बलिया, मऊ, आजमगढ़, देवरिया जैसे जिलों में समाजवादी पार्टी को मिल था. अगर ओमप्रकाश राजभर का साथ समाजवादी पार्टी को नहीं मिलता तो इन जिलों में जीत हासिल करना मुश्किल होता.

कांग्रेस और बीएसपी के पास कितनी ताकत?
कांग्रेस को साल 2022 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 2 सीटों पर जीत मिली और 2.33 फीसदी वोट हासिल हुआ. जबकि साल 2017 में बीजेपी की प्रचंड लहर के बावजूद समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की वजह से 7 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. अगर बीएसपी की बात करें तो भले ही पार्टी को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली. लेकिन पार्टी का 12.88 फीसदी वोटबैंक पर अभी भी पकड़ है. जबकि साल 2017 में पार्टी को 19 सीटों पर जीत मिली थी. आपको बता दें कि बीएसपी ने साल 2007 विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी.

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