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UPSC परीक्षा 2021: 16 साल पहले देखा था IAS बनने का सपना, अब ट्रक ड्राइवर के बेटे ने UPSC में हासिल की 551वीं रैंक 

UPSC RESULT 2021: राजस्थान के बाड़मेर के रहने वाले पवन कुमार का चयन यूपीएससी में हुआ है. यूपीएससी में पवन ने 551वीं रैंक हासिल की है. इस वक्त पवन कुमार कुमावत बाड़मेर में जिला उद्योग केन्द्र में निर्देशक पद पर कार्यरत हैं.

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हाइलाइट्स
  • सफलता में है पिता का बहुत बड़ा हाथ

  • पिता ने लोन लेकर करवाई पढ़ाई पूरी 

UPSC RESULT 2021: कहते हैं मंजिल उस ही मिलती है जिसमें सपने पूरे करने का जज़्बा होता है. ऐसे ही राजस्थान के बाड़मेर के रहने वाले एक ट्रक ड्राइवर के बेटे का चयन यूपीएससी में हुआ है. कमाल की बात है कि ये सपना पवन कुमार ने 16 साल पहले देखा था. इससे पहले भी पवन दो बार यूपीएससी के इंटरव्यू दे चुके हैं. लेकिन इसबार तीसरे प्रयास में आईएएस बनने में सफल हुए हैं. 

वर्तमान में पवन कुमार कुमावत बाड़मेर में जिला उद्योग केन्द्र में निर्देशक पद पर कार्यरत हैं.

16 साल पहले देखा था IAS बनने का सपना

दरअसल, नागौर के रहने वाले पवन कुमार कुमावत ने 2006 में न्यूज़पेपर में हैडलाइंस पढ़ी थी कि रिक्शा चालक का बेटा गोविन्द जेसवाल IAS बना है. उसी दिन से पवन कुमावत ने यह ठान लिया थी कि रिक्शा चालक का बेटा आईएएस बन सकता है तो एक ट्रक ड्राइवर का बेटा क्यों नहीं. 

बताते चलें कि पवन कुमावत का चयन 2018 में RAS में हो गया था. वे इस वक्त बाड़मेर जिला उद्योग केंद्र में पवन निर्देशक के तौर पर कार्यरत हैं.

सफलता में है पिता का बहुत बड़ा हाथ 

दरअसल, 2003 से ही नागौर में ट्रक ड्राइविंग करने वाले रामेश्वर लाल ने अपने बेटे को कामयाब बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. ट्रक ड्राइवर के रूप में पवन के पिता की मात्र ₹4000 की सैलरी होती थी, जिससे घर भी नहीं चल पाता था. लेकिन उन्होंने बेटे को कर्ज लेकर पढ़ाया और बेटे की पढ़ाई जारी रखवाई.

अब आखिरकार बेटे ने भी आईएएस बनकर अपने परिवार का नाम रोशन कर दिया है. यूपीएससी में 551वीं रैंक हासिल करने वाले पवन कुमावत ने कितना संघर्ष किया है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके घर में लाइट का कनेक्शन तक नहीं था और पवन ने लालटेन की रोशनी में पढ़ाई कर अपनी पढ़ाई को जारी रखी.

पिता ने लोन लेकर करवाई पढ़ाई पूरी 

दरअसल, साल 2003 से नागौर में ट्रक ड्राइविंग करने वाले रामेश्वर लाल ने अपने बेटे को कामयाबी के शिखर तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कम सैलेरी होने के बाद भी बेटे की पढ़ाई जारी रखवाई और बेटे पवन को कर्ज लेकर पढ़ाया. 

पवन कुमावत कहते हैं, “मैं बहुत खुशनसीब हूं कि मुझे ऐसे माता पिता मिले. बचपन से ही मेरे परिवार ने अभावों में जीना सीख लिया था. गांव में कच्ची झोपड़ी में पिता मिट्टी के बर्तन बनाकर परिवार का गुजारा करते थे, उसके बाद 2003 में नागौर आ गए.”

(दिनेश बोहरा की रिपोर्ट)