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Uttarkashi Tunnel Collapse: सुरंग की अंधेरी दुनिया में चलता है ये कानून, जानिए मजदूरों के क्या हैं अधिकार

खदान में काम करने वाले मजदूरों पर Section 19 of mines act 1952 लागू होता है. इसके मुताबिक खदान में काम करने वाला एक व्यक्ति सिर्फ 2 लीटर पीने का पानी ही साथ ले जा सकता है. कामगारों से वाटर सप्लाई के लिए कोई पैसा नहीं लिया जाएगा.

Uttarkashi Tunnel Collapse Uttarkashi Tunnel Collapse

10 दिन से ज्यादा का वक्त हो गया है. उत्तरकाशी के सिल्कराया में 41 मजूदरों को बचाने की जद्दोजहद हो रही है. सुरंग के स्याह अंधेरे में मिट्टी और पत्थर से बना पहाड़ हर जगह का अलग अलग होता है. लिहाजा टनल के अंदर दाखिल होते ही गहराई के साथ साथ पत्थरों का नेचर बदलता है. ऐसे में जरूरी एहतियात ना होने की वजह से जान पर बन आती है. किसी चीज से ट्रिगर होने पर लूज नेचर के पहाड़ों के गिरने तक की नौबत आ जाती है. यही वजह है कि तय समय पर सुरंग की जांच की जानी चाहिए. नहीं तो एक बार पत्थर गिरना शुरू होने पर उसे रोक पाना बड़ा मुश्किल होता है. एक भूवैज्ञानिक ने बताया कि हिमालय यंगर एज का है. इसका मतलब है कि इस रीजन में अक्सर एक्टिविटी होती है. लिहाजा हर तरह का प्रीकॉशन लिया जाता है, क्योंकि यहां पर हर समय कुछ ना कुछ होता है. ऐसे में जान लेना जरूरी है कि खदानों में लेबर और सेफ्टी कैसे रेगुलेट किया जाता है. सबसे बड़ी बात सुंरग के अंदर खाने पीने और नेचुरल क्रिया के लिए क्या नियम कानून होते हैं. माइन्स एक्ट के तहत खदानों में काम करने वाले लोगों के स्वास्थ्य, उनकी सुरक्षा देखी जाती है। तेल का कुआं और कोल माइंस, metalliferous माइन्स में काम करने वाले मजदूरों पर भी ये लागू होता है. हालांकि मौके पर मौजूद साइट इंजीनियर इसे लागू करने या ना करने का फैसला लेते हैं.

सुरंग में लागू होता है ये कानून-
माइंस में मजदूर काम करते हैं. लेकिन उस दौरान उनके लिए क्या सुविधाएं होनी चाहिए? मजदूरों के क्या अधिकार होने चाहिए? इसका जिक्र Section 19 of mines act 1952 में किया गया है. चलिए आपको बताते हैं.

  • इस एक्ट के मुताबिक पीने का पानी किसी यूरिनल की जगह के 6 मीटर की दायरे में नहीं होना चाहिए. इस नियम के मुताबिक खदान में काम करने वाला एक व्यक्ति सिर्फ 2 लीटर पीने का पानी ही ले जा सकता है. कामगारों से वाटर सप्लाई के लिए कोई पैसा नहीं लिया जाएगा.
  • एक समय पर 100 या 100 से ज्यादा व्यक्ति अगर काम करते हैं तो वहां इंस्पेक्टर पीने के पानी को यांत्रिक तरीके से या फिर दूसरे तरीके से ठंडा करने का ऑर्डर दे सकता है.
  • माइनिंग के नियमों के मुताबिक ऐसे मजदूरों की नियमित स्वास्थ्य जाँच के अलावा हर पाँच साल पर विशेष जाँच करायी जानी चाहिए.
  • माइंस रुल्स एंड रेगुलेशन पीने के पानी की आपूर्ति पाइपलाइन के जरिये होनी चाहिए.

खदानों में सेफ्टी पर रिसर्च-
साल 1999 में साइंस डायरेक्ट में यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स, सिडनी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. डेविड लॉरेंस का रिसर्च छपा था. डेविड ने पिछले 25 सालों से ऑस्ट्रेलियाई और इंटरनेशनल खनन उद्योगों में एक खनिक, महाप्रबंधक, मुख्य खनन निरीक्षक समेत विभिन्न भूमिकाओं में काम किया है. दरअसल इस सर्वे को 33 खदानों में किया गया था. जिसमें एनएसडब्ल्यू, क्वींसलैंड और अंतरराष्ट्रीय खदान स्थलों के लगभग 500 खदानकर्मी शामिल थे. Journal of Safety Research का खुलासा कानून की अनदेखी को लेकर डराता है. इस रिसर्च के मुताबिक सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में खदान के अंदर काम करने वाले कामगारों पर सर्वे में पाया गया कि वे नियमों से अनभिज्ञ थे, जागरूक थे, लेकिन नियम नहीं समझते थे. कई जगहों पर  नियमों की अनदेखी की गई. जानबूझकर नियमों का उल्लंघन किया गया.
(नई दिल्ली से राम किंकर सिंह की रिपोर्ट)

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