
“जिंदगी में उम्र नहीं, हिम्मत और जज्बा मायने रखता है” ― यही सीख थी बागपत के जौहड़ी गांव की रहने वाली मशहूर शूटर दादी चन्द्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की, जिनकी बंदूक की गूंज ने न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में देश का नाम रौशन किया. आज भले ही दादी चन्द्रो इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनका सपना और उनकी प्रेरणा गांव की बेटियों की रग-रग में जिंदा है. और इसी सपने को हकीकत में बदला है गांव की ही बेटी वंशिका चौधरी ने, जिसने कजाकिस्तान में हुई एशियन शूटिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक (Gold Medal) जीतकर भारत का तिरंगा बुलंद कर दिया.
दादी के किस्सो से मिला हौसला
बागपत के जौहड़ी गांव की रहने वाली वंशिका चौधरी ने बचपन से ही दादी चन्द्रो और प्रकाशी तोमर की कहानियां सुनीं. जब वह दादी की दास्तां सुनती थीं तो उनके भीतर भी एक चिंगारी जलती थी. वंशिका बताती हैं कि दादी के किस्से सुनकर उनके मन में भी शूटिंग करने की इच्छा जागी. इसी जुनून ने उन्हें उसी गांव की शूटिंग रेंज तक पहुंचाया, जो दादी चन्द्रो ने अपने समय में बनवाई थी.
वहीं से वंशिका ने अपने सफर की शुरुआत की. इसी गांव की मिट्टी से स्टेट लेवल और फिर नेशनल लेवल तक का सफर तय करने के बाद, वंशिका ने एशियन शूटिंग चैंपियनशिप में अपनी काबिलियत का जलवा बिखेरा और भारत की झोली में एक नहीं दो गोल्ड जीत कर डाले.
दादी के सपने को किया पूरा
वंशिका की जीत की खबर मिलते ही गांव में जश्न का माहौल है. लोग ढोल-नगाड़ों के साथ खुशी मना रहे हैं और मिठाइयां बांटी जा रही हैं. उधर दादी चन्द्रो की पोती और नेशनल शूटर शेफाली ने कहा, गोल्ड मेडल दिलाकर इतिहास रच दिया. जो सपना दादी ने देखा तो उसे वंशिका ने पूरा कर दिया है. शूटर दादी ने दुनिया को ये संदेश दिया था कि अगर हौसले बुलंद हों तो उम्र और हालात कभी आड़े नहीं आते. उनकी यही सोच अब गांव की नई पीढ़ी की बेटियों में भी जिंदा है.
वंशिका चौधरी की यह जीत साबित करती है कि बागपत की धरती सिर्फ दादियों की वजह से नहीं, बल्कि अब नई पीढ़ी की वजह से भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गूंज रही है. वंशिका की यह जीत न सिर्फ एक खिलाड़ी की सफलता है, बागपत की धरती ने एक बार फिर भारत को गर्व करने का मौका दिया है.
क्या बोली वंशिका चौधरी
वंशिका चौधरी कहती हैं कि मैंने हमेशा दादी को अपना आइडल माना है. उनके किस्सों ने मुझे रास्ता दिखाया. आज जब मैंने देश के लिए गोल्ड जीता है तो लगता है जैसे उनका सपना मेरा सपना बन गया. अब मेरा अगला लक्ष्य वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड लाना है.
'मेरी दादी का सपना हुआ पूरा'
शेफाली का कहना है कि मेरी दादी का सपना था कि गांव की बेटियां भी बंदूक थामें और देश का नाम रोशन करें. आज वंशिका ने उस सपने को पूरा कर दिया. दादी होतीं तो सबसे ज्यादा खुश होतीं.
-मानव उपाध्याय की रिपोर्ट