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Exclusive: भिखारियों को उद्यमी बना रहा है यह शख्स, शुरू किया Beggars Corporation, कहा डोनेट नहीं, इंवेस्ट करें

सामाजिक कार्यकर्ता, चंद्र मिश्रा ने साल 2021 में Beggars Corportion की स्थापना की और इसके जरिए वह भिखारियों को उद्यमी बना रहे हैं ताकि वे सम्मान के साथ जीवन जी सकें.

बच्चों के साथ चंद्र मिश्रा बच्चों के साथ चंद्र मिश्रा
हाइलाइट्स
  • हमेशा लोगों की आवाज बने हैं चंद्र मिश्रा

  • शुरू हुई भिखारियों को उद्यमी बनाने की मुहिम 

भारत में दान का बहुत महत्व है. पहले जमाने से लेकर अब तक, दान करने के तरीके बदल गए हैं लेकिन इसके पीछे का उद्देश्य सिर्फ एक है- कोई नेक काम करके पुण्य कमाना. बेन एंड कंपनी की रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल भारत में आम आदमी से 34 हजार करोड़ से ज्यादा रुपए चैरिटी में जाते हैं. लेकिन फिर भी देश से न तो गरीबी दूर हुई है और न ही भिक्षावृत्ति. क्योंकि इसमें से 80% से ज्यादा पैसे का कोई हिसाब नहीं है.

आपको मंदिर-मस्जिद से लेकर बस स्टैंड- रेलवे स्टेशन तक, हर जगह भीख मांगते हुए लोग मिल जाएंगे. अब सवाल यह है कि अगर आपके हमारे दान देने से भी भिक्षावृत्ति दूर नहीं हो रही है तो कैसे होगी? और इस पेचीदा सवाल को बहुत ही दिलचस्प जबाव दिया है एक सामाजिक कार्यकर्ता, चंद्र मिश्रा ने. दो दशकों से भी ज्यादा समय से समाज के लिए काम कर रहे चंद्र मिश्रा, Common Man Trust और Beggars Corporation के फाउंडर हैं. 

GNT Digital से बात करते हुए चंद्र मिश्रा ने कहा, "हमारे देश में दान देने की आदत ने कुछ ठीक नहीं होने दिया है. हमने सिर्फ दान पर ध्यान दिया जबकि परेशानी का हल रोजगार में है. क्योंकि रोजगार से जुड़कर ही ये लोग एक सही और सम्मानित जिंदगी जी सकते हैं. इसलिए हमने Don't Donate, Invest का नारा दिया और भिखारियों को उद्यमी बनाने की मुहिम शुरू की."

चंद्र मिश्रा, बेगर्स कॉरपोरेशन के को-फाउंडर

हमेशा लोगों की आवाज बने हैं चंद्र मिश्रा
अब बात करते हैं कि आखिर चंद्र मिश्रा कौन हैं? आपको बता दें कि मूल रूप से ओड़िशा के रहने वाले चंद्र मिश्रा पिछले कई सालों से रोजगार के मुद्दे पर काम कर रहे हैं. कभी बतौर पत्रकार काम करने वाले मिश्रा हमेशा से ही लोगों की आवाज बनकर उभरे. अपने जीवन के बारे में उन्होंने बताया, "मैं दिल्ली में काम करता था लेकिन पिताजी के देहांत के बाद मुझे ओड़िशा लौटना पड़ा. यहां पर लौटने के बाद, मैनें कॉमन मैन ट्रस्ट की स्थापना की. मैनें देखा कि ज्यादातर अखबार राजनीतिक पार्टियां चला रही हैं. ऐसे में, साल 1995 में मैनें ट्रस्ट के तहत एक अखबार शुरू किया- आरंभ और यह सिटिजन जर्नलिज्म पर आधारित था."

मिश्रा कहते हैं कि इस अखबार में काम करने वाले लोग आम थे. उनका संपादकीय भी हर रोज कोई आम आदमी लिखता था. उनके रिपोर्टर्स भी आम नागरिक थे जिन्हें वे हर महीने चार पोस्टकार्ड देते थे और वे अपने इलाके के मुद्दों के बारे में लिखकर उन्हें भेजते थे. मिश्रा का कहना है कि कई सालों तक उनका यह अखबार लोगों की परेशानियां प्रशासन और सरकार के सामने रखता रहा. उनका अखबार कई बड़े बदलावों की वजह बना. 

भिखारियों को बना रहे उद्यमी

इसके बाद, मिश्रा ने राज्य में रोजगार के मुद्दे पर काम किया. यह उनके ही प्रयास थे कि ओड़िशा देश में रोजगार मिशन लॉन्च करने वाला पहला राज्य बना. इसके बाद, उन्हें बिहार, कर्नाटक, हरियाणा, छत्तीसगढ़, और गुजरात जैसे कई राज्यों में रोजगार पॉलिसी पर मदद करने के लिए बुलाया गया. और इस दौरान उन्होंने देखा कि देश में भिक्षावृत्ति भी कितनी बड़ी समस्या है. 

कैसे शुरू हुई भिखारियों को उद्यमी बनाने की मुहिम 
चंद्र मिश्रा ने आगे बताया कि जब वह गुजरात में थे तब उन्हें पहली बार भिखारियों के साथ काम करने का ख्याल आया. गुजरात के अपने दौरे के दौरान, उन्होंने देखा कि अहमदाबाद के पास एक सरकारी कौशल्य-संवर्धन केंद्र है. यहां लोगों को स्किल ट्रेनिंग दी जाती है. लेकिन उसी केंद्र के पास बने मशहूर हनुमान मंदिर के परिसर में बहुत से भिखारी बैठते हैं. तब उन्हें लगा कि इन लोगों को पैसे देने की बजाय स्किल ट्रेनिंग देकर इनका रोजगार शुरू करवाने में मदद करनी चाहिए. 

हालांकि, मिश्रा का कहना है कि साल 2021 तक उन्होंने इस बारे में एक्टिवली काम नहीं किया था. लेकिन साल 2020 में कोरोना के कारण जब लॉकडाउन लगा तो बड़े पैमाने पर रोजगार की समस्या उत्पन्न हुई. उस समय, मिश्रा दिल्ली में थे. उन्होंने सोचा कि क्यों न रोजगार से संबंधित एक सर्वे किया जाए. हालांकि, पूरे देश का सर्वे करना मुश्किल था इसलिए उन्होंने पीएम मोदी के विधानसभा क्षेत्र, वाराणसी में सर्वे करने का फैसला किया. उन्होंने फेसबुक के जरिए एक गुगल फॉर्म शेयर किया और उन्हें 20 हजार से ज्यादा लोगों ने रेस्पॉन्स किया. इनमें छात्र, छोटे उद्यमी जिनका काम बंद हो गया, बेरोजगार लोग जिनकी नौकरी चली गई आदि शामिल थे. 

बेगर्स कॉर्पोरेशन के फाउंडर्स

अपने स्तर पर मिश्रा ने इन लोगों की मदद करना शुरू किया. और 31 दिसंबर 2020 को वह वाराणसी पहुंचे. यह जीवन में पहली बार था जब वह बनारस गए. लेकिन मिश्रा पूरी तैयारी के साथ गए थे. उन्होंने पहले ही वाराणसी के एक लोकल एनजीओ, जनमित्र न्यास से संपर्क किया और उन्हें बताया कि वह रोजगार पर काम करना चाह रहे हैं. इस एनजीओ को मिश्रा के काम के बारे में पता था और इसलिए उन्होंने उनकी मदद की. जब मिश्रा यहां पहुंचे तो उन्होंने घाट से लेकर मंदिरों तक, हर जगह पाया कि भीख मांगने वालों की कोई कमी नहीं है. 

यहां पर मिश्रा ने एक छोटी सी पहल की और इन भिखारियों से उनके बारे में पूछा. उन्हें अपने बारे में बताया और साथ ही, उन्हें भीख मांगना छोड़कर कुछ काम करने की सलाह दी. उन्होंने बताया कि तब वह किसी एक भिखारी को भी खुद के साथ काम करने के लिए नहीं मना पाए लेकिन उन्होंने एक मुहिम शुरू कर दी थी उन्हें जागरूक करने की. और साल 2021 में जब दूसरी बार लॉकडाउन लगा तो बहुत से भिखारियों ने उन्हें मदद के लिए संपर्क किया. 

...और Beggars Corporation की हुई शुरुआत 
अगस्त, 2021 में एक महिला ने उनके साथ काम करना शुरू किया. यह महिला अपने बच्चे के साथ घाट पर भीख मांगती थी क्योंकि उसके पति ने उसे घर से निकाल दिया था. और उसके पास कोई दूसरी जगह नहीं थी जाने के लिए. मिश्रा ने बताया कि उस महिला को उन्होंने समझाया कि एक स्थिर रोजगार से जुड़कर वह अपने बच्चे को बेहतर जिंदगी दे सकती है. उन्होंने महिला को बैग बनाने की ट्रेनिंग दिलवाई और फिर काम भी दिया. 

पहले भीख मांगती थी और अब कर रही हैं काम

इन बैग्स को उन्होंने एक कॉन्फ्रेंस तक पहुंचाया और यहां पर लोगों के ये बैग्स काफी पसंद आए. धीर-धीरे और भी लोग उनसे जुड़ने लगे. कई और भिखारी उनके साथ काम करने लगे तो दूसरी तरफ उनकी इस पहल को समाज की बड़ी हस्तियों ने सराहा और आगे बढ़ाने में मदद की. जनवरी 2022 में उन्होंने अपने साथी, बद्रीनाथ मिश्रा और देवेंद्र थापा के साथ मिलकर Beggars Corporation की स्थापना की थी और अगस्त 2022 में इसे 'फॉर प्रोफिट कंपनी' के रूप में रजिस्टर किया. 

आज वह 14 भिखारी परिवारों को उद्यमी बना चुके हैं. 12 परिवार उनके साथ बैग आदि बनाने का काम कर रहे हैं तो दो परिवारों ने मंदिरों के पास अपनी पूजा-सामग्री और फूल आदि की दुकानें शुरू की हैं. ये सभी लोग आज पूरे सम्मान के साथ एक अच्छी आजिविका कमा रहे हैं और बेहतर जीवन जी रहे हैं. 

क्या है उनका वर्किंग मॉडल 
चंद्र मिश्रा ने बताया कि उन्होंने जुलाई 2022 में एक कैंपेन शुरू की थी और लोगों से बस 10-10 हजार रुपए इंवेस्ट करने के लिए कहा था ताकि हम इन भिखारियों की जिंदगी बदल सकें. उन्हें एक-डेढ महीने चले इस कैंपेन में 57 लोगों ने पैसे दिए. सबसे पहले उन्हें छत्तीसगढ़ से एक इंजीनियर रोहित शर्मा ने डोनेशन दिया. इन पैसों से उन्होंने इन भिखारियों की स्किल ट्रेनिंग और फिर रोजगार सेट-अप करने में मदद की. साथ ही, उन्होंने अपनी कंपनी को रजिस्टर कराकर Innovative Startups कंपटीशन में हिस्सा लिया. 

धीरे-धीरे उन्होंने अपना काम बढ़ाया और साथ ही, उन्हें 100 इनोवेटिव स्टार्टअप्स में जगह मिली और इसके बाद उन्हें टॉप 16 माइंडफुल स्टार्सअप्स में शामिल किया गया. इससे उनके काम को काफी बूस्ट मिला. चंद्र मिश्रा कहते हैं, "इसके बाद हमने जिन लोगों से पैसे लिए उन्हें छह महीने 16.5 % ROI (Return on Investment) के साथ पैसे लौटाए. हमने सोचा नहीं था कि हम ऐसा कर सकेंगे लेकिन हमें डोनेशन नहीं इंवेस्टमेंट चाहिए थी. जो हमें मिली और समय आने पर हमने प्रोफिट के साथ इसे लौटाया."

रोजगार से जुड़ रहे हैं कभी भीख मांगने वाले लोग

बहुत से लोगों को इस बात का आश्चर्य हुआ कि ऐसे भी कोई सोशल कॉज से पैसा लौटा सकता है. मिश्रा कहते हैं कि इसके बाद लोगों का उनके इंवेस्टमेंट आइडिया पर विश्वास बढ़ा. गुरुग्राम में ChaiOm नामक चाय कंपनी चलाने वाली पायल अग्रवाल ने तो उनके साथ डील भी की कि वह पांच लाख की इंवेस्टमेंट से उनके साथ चाय कैफे शुरू करेंगी जहां भिखारी काम करेंगे. 

शुरू किया स्कूल ऑफ लाइफ
सबसे दिलचस्प बात यह है कि चंद्र मिश्रा ने Beggars Corporation के साथ-साथ School of Life भी शुरू किया. यह स्कूल उन बच्चों के लिए शुरू किया गया जो वाराणसी में घाट किनारे शिव-हनुमान का रूप लेकर भीख मांगते हैं या फिर जिनके माता-पिता भीख मांगते हैं. लेकिन अह इन बच्चों को पढ़ने का मौका मिल रहा है और उन्हें लाइफ-स्किल्स सिखाई जा रही हैं ताकि वे आगे चलकर कुछ बन सकें और अपने पैरों पर खड़े हो सकें. 

चंद्र मिश्रा का कहना है कि चाहे सरकार हो या आम आदमी, जब भी हम वेल्फेयर या पुण्य के नाम पर चैरिटी करते हैं तो लोगों को अपने ऊपर निर्भर करते हैं. जबकि हमारा उद्देश्य उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का होना चाहिए. उन्होंने आगे कहा, "हमारे देश में लगभग पांच लाख भिखारी हैं जिनमें सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल में और फिर उत्तर प्रदेश में हैं. यह डाटा सरकार के दस्तावेजों में है. वहीं, India Philanthropy Report 2022 के मुताबिक, हमारे देश में सिर्फ आम आदमी हर साल 28 हजार करोड़ पैसा चैरिटी में देते हैं."

School of Life बदल रहा बच्चों का जीवन

चंद्र मिश्रा का कहना है कि उनका मॉडल बहुत स्पष्ट है. उन्हें हर एक भिखारी के लिए मात्र डेढ लाख रुपए चाहिएं. इस डेढ लाख में से 50 हजार रुपए उस भिखारी को तीन महीने की स्किल ट्रेनिंग देने और उन्हें रिलॉकेट करने में खर्च होंगे. बाकी बचे एक लाख रुपए उस भिखारी को अपना रोजगार शुरू करने के लिए दिए जाएंगे. इस तरह अगर पांच लाख भिखारियों की बात करें तो उनका काम सिर्फ साढ़े सात हजार करोड़ रुपए में बात बन जाएगी. और यह पैसा भारत में सालभर में चैरिटी में जाने वाले पैसे से बहुत ही कम है. इसलिए वह लोगों से डोनेट करने की बजाय इंवेस्ट करने की अपील करते हैं. क्योंकि उनका उद्देश्य आने वाले समय में बेगर्स कॉरपोरेशन मॉडल को दूसरे शहरों में रेप्लिकेट करने का है. 

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि चंद्र मिश्रा का काम बहुत ही प्रेरक और काबिल-ए-तारीफ है. हमें उम्मीद है कि भारत के ज्यादा से ज्यादा लोग इस काम में उनकी मदद करेंगे.