
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले वोटर वेरिफिकेशन को लेकर सियासी बवाल मचा हुआ है. राजद-कांग्रेस सहित अधिकांश विपक्षी पार्टियां जहां इसे अल्पसंख्यकों और गरीबों के वोट काटने की साजिश बता रही हैं, वहीं चुनाव आयोग इसे नियमित प्रक्रिया बता रहा है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है.
क्या आप जानते हैं वोटर आईडी कार्ड (Voter ID Card) यानी मतदाता पहचान पत्र को धरातल पर उतारने में दो सगे भाइयों का विशेष योगदान रहा है. हम बात साल 1958 की कर रहे हैं. उस समय सुकुमार सेन मुख्य चुनाव आयुक्त और उनके छोटे भाई अशोक कुमार सेन कानून मंत्री थे. हम आपको इसकी पूरी कहानी बताने के साथ यह बताएंगे कि आखिर वोटर आईडी कार्ड होता क्या है?
क्या होता है वोटर आईडी कार्ड
आपको मालूम हो कि वोटर आईडी कार्ड के लिए सिर्फ भारत का नागरिक ही आवेदन कर सकता है. इसके लिए व्यक्ति का भारत में स्थायी पता होना चाहिए. वोटर आईडी कार्ड एक सरकारी दस्तावेज होता है. यह हमें लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव, नगरपालिका चुनाव हो या कोई और चुनाव उसमें मतदान करने का अधिकार देता है.
चुनाव आयोग 18 साल के उम्र के नागरिकों को मतदाता पहचान पत्र जारी करता है. आपको मालूम हो कि वोटर आईडी कार्ड सिर्फ चुनाव के दौरान मतदान करने में ही काम नहीं आता है बल्कि बैंक खाता खुलवाना हो, पासपोर्ट बनवाना हो या निवास का प्रमाण देना हो, सभी में फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र वैध दस्तावेज के रूप में काम आता है.
आइए वोटर आईडी कार्ड बनाने की जानते हैं कहानी
आपको मालूम हो कि देश की आजादी के बाद मार्च 1950 में भारतीय चुनाव आयोग का गठन हुआ. सुकुमार सेन को पहला मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया. देश में साल 1957 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद निर्वाचन आयोग ने रिपोर्ट दी थी कि यदि अगले आम चुनाव यानी लोकसभा चुनाव 1962 में बड़े और घनी आबादी वाले शहरों में फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र जारी किए जाएं, तो मतदाताओं की पहचान आसानी से हो जाएगी और किसी और कि जगह कोई और व्यक्ति मतदान नहीं कर सकेगा.
इससे मतदान के दौरान धांधली रोकने में मदद मिलेगी. चुनाव आयोग के पहचान पत्र जारी करने के इस सुझाव को केंद्र सरकार के पास भेजा गया. उस समय मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन थे और उनके छोटे भाई अशोक कुमार सेन कानून मंत्री थे. इन दोनों सगे भाइयों का वोटर आईडी कार्ड को धरातल पर उतारने में विशेष योगदान रहा है.
बडे़ भाई थे मुख्य चुनाव आयुक्त और छोटे भाई कानून मंत्री
भारत सरकार ने चुनाव आयोग के पहचान पत्र जारी करने के सुझाव पर एक्शन लेते हुए लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक 1958 में फोटो पहचान पत्र जारी करने का प्रावधान कर दिया. इसके बाद 27 नवंबर 1958 को यह विधेयक संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में पेश किया गया. उस समय तत्कालीन कानून मंत्री अशोक कुमार सेन ने लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक लोकसभा में पेश किया था.
जब यह विधेयक पेश किया था, उस समय कानून मंत्री के बड़े भाई सुकुमार सेन मुख्य चुनाव आयुक्त थे. 30 दिसंबर 1958 को यह विधेयक संसद से पारित होकर कानून बन गया. हालांकि सुकुमार सेन तब तक सेवानिवृत्त हो गए थे और 10 दिन पहले ही पद संभालने वाले दूसरे मुख्य चुनाव आयुक्त केवीके सुंदरम पर इसे देशभर में लागू कराने की जिम्मेदारी आ गई. आपको मालूम हो कि सुकुमार सेन देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर 21 मार्च 1950 से 19 दिसंबर 1958 तक रहे. फोटोयुक्त पहचान पत्र को धरातल पर उतारने में सुकुमार सेन और अशोक कुमार सेन का मुख्य योगदान रहा.
कोलकाता उपचुनाव में किया गया प्रयोग
चुनाव आयोग की लीप ऑफ फेथ नामक किताब में उल्लेख है कि लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक 1958 में फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र का प्रावधान किया गया था. मई 1960 में कलकत्ता (अब कोलकाता) के दक्षिण-पश्चिम लोकसभा क्षेत्र में होने वाले उपचुनाव में सभी मतदाताओं को फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र जारी करने की पायलट परियोजना शुरू की गई. 10 महीनों में सिर्फ 2 लाख 13 हजार 600 मतदाताओं की ही फोटो ली जा सकी. इसके बाद सिर्फ 2 लाख 10 हजार वोटर्स को ही फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र दिया जा सका. इस तरह से हर 8 में से 3 मतदाता पहचान पत्र से वंचित रह गए.
कलकत्ता के दक्षिण-पश्चिम लोकसभा क्षेत्र के कुल मतदाताओं की संख्या के हिसाब से फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र देने का आंकड़ा बहुत कम था. ऐसे में चुनाव आयोग का ये प्रोजेक्ट सफल नहीं कहा गया. इस प्रोजेक्ट में उस समय लगभग 25 लाख रुपए खर्च हुए थे. सभी लोगों को फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र देने के प्रोजेक्ट के असफल होने का सबसे बड़ा कारण महिला मतदाता थी. महिला मतदाता किसी भी फोटोग्राफर के सामने चाहे वह पुरुष हो महिला फोटो खिंचवाने के लिए तैयार नहीं थी. इसके अलावा कुछ मतदाता अपने घर पर नहीं मिले. वे कुछ सप्ताह या महीनों से घर से बाहर गए हुए थे. इसके अलावा कुछ मतदाता वोटर आईडी कार्ड बांटते समय उस पते पर नहीं मिले, जहां उनकी फोटो ली गई थी.
फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र जारी करने का प्रयोग रहा सफल
कोलकाता उपचुनाव में सभी मतदाताओं को फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र देने की परियोजना असफल होने पर इसे लगभग दो दशकों तक स्थगित रखा गया. इसके बाद साल 1979 में सिक्किम में हुए विधानसभा चुनाव में फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र जारी किए गए. यह प्रयोग सफल रहा.
इसका बाद असम, मेघालय, नागालैंड सहित अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इसे लागू किया गया. चुनाव आयोग ने अगस्त 1993 में देश के सभी वोटर्स के लिए फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र बनाने का आदेश दिया. धीरे-धीरे देश में हर जगह वोटरों का मतदाता पहचान पत्र बना दिया गया. सरकार ने साल 2015 के बाद प्लास्टिक के बने कलर वोटर आईकार्ड की शुरुआत की. इसके बाद चुनाव आयोग ने साल 2021 में इलेक्ट्रॉनिक इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड लॉन्च किया.