
शहीद दिवस की रैली से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी साफ कर दिया कि बांग्ला भाषा के मुद्दे पर उनकी पार्टी टीएमसी हल्ला बोल करेगी. साथ ही दूसरा मुख्य मुद्दा चुनाव आयोग द्वारा वोटर लिस्ट के रिवीजन की खिलाफत का होगा. इस तरह से ममता बनर्जी ने शहीद दिवस की रैली से चुनावी टोन सेट कर दिया है.
ममता बनर्जी ने कोलकाता के धर्मतल्ला इलाके में 21 जुलाई 2025 की रैली में दिए भाषण में अधिकांश समय बंगला भाषा के मुद्दे पर बात की. साथ ही नाम लिए बगैर प्रधानमंत्री पर हमला बोलते हुए कहा कि एक ओर तो वो बांग्ला भाषा भाषी के खिलाफ अत्याचार कर रहे हैं तो दूसरी ओर यहां आकर टेलीप्रॉम्प्टर की मदद से एक-दो शब्द बंगला के बोल रहे हैं. तृणमूल कांग्रेस पिछले कई दिनों से बांग्ला भाषा के मुद्दे पर आंदोलन कर रही है. तृणमूल का आरोप है कि महज बांग्ला बोलने के लिए बंगाली माइग्रेंट लेबर के साथ बीजेपी शासित राज्यों में अत्याचार हो रहा है. उन्हें जेल में भेजा जा रहा है. डिटेंशन कैम्प में डाला जा रहा है.
असम जाकर आंदोलन करने की दी धमकी
ममता बनर्जी ने बांग्ला भाषा के लिए असम जाकर आंदोलन करने की धमकी भी दे डाली. साथ ही ममता ने सोमवार को ऐलान किया बिहार की तर्ज पर वोटर लिस्ट में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को बंगाल में लागू नहीं होने दिया जाएगा और जरूरत पड़ी तो सड़क पर उतरा जाएगा और घेराव तक किया जाएगा.
क्या है इसके पीछे की राजनीति
ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के भाषण से साफ हो गया है कि तृणमूल कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ बांग्ला भाषा को हथियार बनाने की योजना बना चुकी है. इसी के साथ वोटर लिस्ट में गड़बड़ी करने के आरोप पर चुनाव आयोग से सीधी लड़ाई की योजना भी है. अब इसके पीछे की राजनीति समझते हैं. पिछले कई सालों से ही तृणमूल कांग्रेस की ओर से बीजेपी को बंगाल विरोधी पार्टी के तौर पर प्रोजेक्ट करने की कोशिश हो रही है. खास तौर पर आरोप लगाया जाता रहा है कि बीजेपी के आला नेता जो दिल्ली से बंगाल आकर चुनाव प्रचार करते हैं, उन्हें बंगाल की संस्कृति के बारे में कुछ नहीं पता है. अब टीएमसी प्रोजेक्ट करना चाह रही है कि पहले से ही बंगाल विरोधी बीजेपी ने अब बांग्ला भाषा-भाषियों के खिलाफ अत्याचार शुरू कर दिया है. ये आलम तब है जब बीजेपी बंगाल में सत्ता में नहीं है. ऐसे में अगर बीजेपी बंगाल में सत्ता में आती है तो क्या होगा?
बीजेपी ने भी बनाई रणनीति
हालांकि बीजेपी ने भी रणनीति के तहत खुद को बंगाली संस्कृति में रमा हुआ दिखाना शुरू कर दिया है. पहले बंगाली भद्रलोक की छवि वाले और बंगाली साहित्य संस्कृति से जुड़े शमिक भट्टाचार्य को बंगाल बीजेपी का प्रेसिडेंट बनाना और हाल में दुर्गापुर में रैली करने आए प्रधानमंत्री का बीच-बीच में बांग्ला बोलना. जय श्रीराम के नारे से हटकर जय मां काली और जय मां दुर्गा के नारे एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. इनके साथ ही शुभेंदु की अगुआई में बीजेपी का एक हिस्सा बंगाल में महिला और हिंदुओं की लड़ाई और ममता के मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के आरोपों के साथ चुनावी मैदान में उतर चुका है.