Vaikunda Perumal Temple, Uthiramerur
Vaikunda Perumal Temple, Uthiramerur अक्सर चुनाव के समय पर हम एक शब्द सुनते हैं ‘आचार संहिता.’ बहुत बार लोगों को नहीं पता होता है कि आखिर इस शब्द का क्या मतलब है और चुनाव के लिए इसका क्या महत्व है. दरअसल, देश में चुनाव आयोग द्वारा कुछ नियम बनाए जाते हैं ताकि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से हों.
चुनाव आयोग के इन्हीं नियमों को आचार संहिता कहते हैं. लोकसभा/विधानसभा चुनाव के दौरान इन नियमों का पालन करना सरकार, नेता और राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी होती है. जैसे ही चुनाव आयोग चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा करता है तो आचार संहिता लागू हो जाती है और प्रक्रिया पूरी होने बाद समाप्त होती है.
चंद सालों नहीं बल्कि सदियों पुराना है इतिहास:
अब अगर यह पूछा जाए कि चुनावों के लिए आचार संहिता की शुरुआत कब से हुई तो कोई भी यही कहेगा कि भारत के पहले आम चुनाव के लिए शायद नियम बनाये गए होंगे. और आम चुनाव तो शायद अंग्रेजों के जमाने से शुरू हुए थे.
लेकिन अगर इतिहास को सही से खंगाला जाए तो आपको पता चलेगा कि हमारे देश में आचार संहिता का प्रावधान सदियों पुराना है. जी हाँ लगभग 1200 साल पुराना तो बिल्कुल है. और इस बात का प्रमाण है तमिलनाडु में कांचीपुरम से लगभग 30 किमी दूर स्थित कस्बे उथीरामेरुर में वैकुंठा पेरूमल (विष्णु) मंदिर.
मंदिर के चबूतरों पर अंकित है राज्यादेश:
उथीरामेरुर का इतिहास लगभग 1250 साल पुराना है और इसे देश के प्राचीनतम तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है. और इसी कस्बे के प्रसिद्द वैकुंठा पेरूमल (विष्णु) मंदिर के चबूतरे की दीवारों पर 920 ईस्वी के आसपास चोल वंश का राज्यादेश दर्ज है.
इन राज्यादेश में जो प्रावधान लिखे गए हैं, उनमें से कई का पालन हमारी आज की आदर्श चुनाव संहिता में भी होता है. बताते हैं कि सदियों पहले उथीरामेरुर के 30 वार्डों से 30 जनप्रतिनिधियों का चुनाव बैलेट सिस्टम से करवाया जाता है.
एक निश्चित दिन पर बच्चों, महिलाओं सहित सभी लोग ग्राम सभा मंडप में उपस्थित होते थे. कहते हैं कि सिर्फ बीमार और तीर्थ यात्रा पर गए लोगों को छूट थी. ताड़ के पत्तों पर प्रत्याशियों के नाम लिखकर एक मटके में डाल दिए जाते थे. इसके बाद देखा जाता था कि सबसे ज्यादा किसके नाम के ताड़ पत्र हैं.
और उसे ही विजेता की घोषित करते थे. किसी भी वर्ग के लोग चुनाव में भाग ले सकते थे और फिर 30 निर्वाचित लोगों में से योग्यता के अनुसार अलग समिति बनाई जाती थीं जैसे सिंचाई तालाब, बाग, परिवहन, स्वर्ण परीक्षण व व्यापार, कृषि, सूखा राहत आदि के लिए.
क्या थी उस जमाने की आचार संहिता:
मंदिर के चबूतरों पर अंकित राज्यादेश के मुताबिक उस समय कार्यकाल एक साल होता था. अगर कोई पद पर रहते हुए घूसखोरी करता या अन्य कोई अपराध करता था तो उन्हें बीच में ही कार्यकाल से हटाया जा सकता था. इसे आप ‘राइट टू रिकॉल’ प्रक्रिया की तरह समझ सकते हैं.
ये थे नियम:
बताया जाता है कि 1988 में रैव गांधी इस मंदिर में दर्शन के लिए आये थे और तब एक पुजारी ने उन्हें इन राज्यादेश को अनुवाद करके बताया था. राजीव गांधी इससे बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने इस सिस्टम को समझने के लिए अधिकारी भी भेजे थे. मंदिर के चबूतरे के चारों ओर 25 राज्यादेश दर्ज हैं. आज भी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी इस मंदिर में आशीर्वाद लेने आते हैं.