

देश को कई राज्यों में मूसलाधार बारिश हो रही है. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भारी बारिश, बादल फटने और भूस्खलन से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. कई जगहों पर बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है. हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में बादल फटने (Cloudburst) से चार लोगों की मौत हो चुकी है. करसोग, थुनाग और सुंदरनगर के पास काफी नुकसान हुआ है. आइए जानते हैं आखिर कब व क्यों बादल फटते हैं और कितनी बारिश होती है?
क्या होता है बादल फटना
आपको मालूम हो कि बादल फटना एक ऐसी मौसमी घटना है. यह बारिश का चरम रूप है. बादल फटने की घटना जिस क्षेत्र में भी होती है, वहां बहुत ही कम समय में मूसलाधार से भी तेज बारिश होती है. यह बारिश कुछ मिनटों से लेकर घंटों तक चलती है. इस प्राकृतिक घटना को क्लाउडबर्स्ट या फ्लैश फ्लड भी कहा जाता है. सबसे तेज बारिश के लिए बादल फटना एक मुहावरा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
वैज्ञानिक तौर पर ऐसा नहीं होता कि बादल गुब्बारे की तरह या किसी सिलेंडर की तरह फट जाता है. आप बादल फटने की घटना को ऐसे समझ सकते हैं, जिस तरह पानी से भरा गुब्बारा यदि फूट जाए तो एक साथ एक जगह बहुत तेजी से पानी गिरता है, ठीक वैसी ही स्थिति बादल फटने की घटना में देखने को मिलती है. बादल फटने पर जान-माल को भारी नुकसान होता है. इस दौरान बारिश लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से होती है.
कब फटते हैं बादल
बादल फटने की अधिकतर घटनाएं मॉनसून आने के दौरान यानी जून से सितंबर में देखने को मिलती हैं. पहाड़ों पर ज्यादा बादल फटते हैं जबकि मैदानी भागों में बादल फटने की घटनाएं कम होती हैं. इसका कारण यह है कि पानी से भरे बादल जब हवा के साथ आगे बढ़ते हैं तो पहाड़ों के बीच फंस जाते हैं. पहाड़ों की ऊंचाई इसे आगे नहीं बढ़ने देती है. पहाड़ों के बीच फंसते ही बादल पानी के रूप में परिवर्तित होकर बरसने लगते हैं. बादलों की डेंसिटी बहुत ज्यादा होने से बहुत तेज बारिश होती है. कुछ ही मिनट में दो सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश हो जाती है.
बादल फटने की घटना अक्सर धरती से करीब 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर देखने को मिलती है. दोपहर या रात में अधिकतर बादल फटते हैं, जब वातावरण में नमी और गर्मी का स्तर चरम पर होता है. बादल फटने की स्थिति में एक सीमित क्षेत्र में कई लाख लीटर पानी एक साथ धरती पर गिरता है. नदी-नालों का अचानक जलस्तर बढ़ने से आपदा जैसे हालात बन जाते हैं. पहाड़ पर बारिश का पानी रुक नहीं पाता, इसीलिए पानी तेजी से नीचे की ओर आता है. नीचे आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी, कीचड़ और पत्थरों के टुकड़ों के साथ लेकर आता है. कीचड़ का यह सैलाब इतना खतरनाक होता है कि जो भी उसके रास्ते में आता है उसको अपने साथ बहा ले जाता है.
बादल फटने के प्रमुख कारण
1. बादल फटने की प्रक्रिया मौसम विज्ञान से जुड़ी है. इसके कई कारण हैं.
2. बादलों के रास्ते में जब अवरोध जैसे पहाड़ आ जाते हैं तो बादल फटने की घटना होती है.
3. हरित पट्टी का लगातार घटना और पेड़ों को काटा जाना भी बादल फटने का कारण है.
4. शहरीकरण का बढ़ना, जिससे तापमान बढ़ रहा है. यह भी बादल फटने का कारण है.
5. जब कई बादल आपस में टकरा जाते हैं, तब भी बादल फटने की घटना होती है.
6. मॉनसून के दौरान कम दबाव वाले क्षेत्रों में गर्म और नम हवाएं तेजी से ऊपर उठती हैं, जिससे बादल फटने की घटना को बढ़ावा मिलता है.
7. गर्म और ठंडी हवाओं का टकराव भी बादल फटने का कारण है. गर्म हवा में अधिक नमी होती है, जो ठंडी हवा के संपर्क में आने पर तेजी से बारिश बनकर गिरती है.
मैदानी इलाकों में कब फटते हैं बादल
मैदानी इलाकों में वैसे तो बादल फटने की घटनाएं बहुत ही कम होती हैं. यदि गर्म हवा का झोंका बादलों की तरफ मुड़ जाए तो भी बादल फट सकते हैं. मैदानी इलाकों में गर्म हवाएं ज्यादा चलती हैं, ऐसे में यहां इस स्थिति में बादल फट सकते हैं.
क्योमलानिंबस वाले बादल ही फटते हैं
आपको मालूम हो कि बादल के कई प्रकार हैं. इनमें क्योमलानिंबस वाले बादल ही फटते हैं. क्योमलानिंबस बादल खतरनाक दिखने वाले बहु-स्तरीय बादल हैं, जो टावरों या प्लम के रूप में आकाश में ऊंचे स्तर तक फैले हुए हैं. आमतौर पर गरज वाले बादलों के रूप में जाना जाने वाला क्योमलानिंबस एकमात्र प्रकार का बादल है जो ओलावृष्टि, गरज और बिजली पैदा कर सकता है. हर वर्ष बरसात में हिमालयी क्षेत्र में मूसलधार वर्षा से तबाही मचाने वाले ये बादल लगभग तीन हजार किलोमीटर का सफर तय कर बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से पहुंचते हैं.
बादल फटने की घटना से कैसे करें बचाव
1. बादल फटने की घटनाओं से बचने के लिए लोगों को पहले से अलर्ट रहना होगा. इसमें राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की मदद लेनी होगी.
2. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और अन्य एजेंसियां ऐसी घटनाओं की चेतावनी जारी करती हैं. इन चेतावनियों पर ध्यान देना जरूरी है.
3. ये चेतावनियां संवेदनशील क्षेत्रों को समय पर खाली करने और आपातकालीन प्रतिक्रिया उपायों के कार्यान्वयन की अनुमति देती हैं.
4. पहाड़ी क्षेत्रों में उचित जल निकासी व्यवस्था और बाढ़ प्रबंधन तकनीकों को शामिल करना होगा ताकि बादल फटने की घटना में अचानक से पानी का जलजमाव न हो.
5. स्थानीय लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने और आपातकालीन योजनाओं के बारे में शिक्षित करना होगा.
6. नुकसान को टालने के लिए लोगों को ढलान वाली कच्ची जगह पर मकान बनाने से परहेज करना चाहिए.
7. ढलान वाली जगह मजबूत होने पर ही निर्माण किया जाना चाहिए. इसके अलावा नदी-नालों से दूरी बनानी चाहिए.
8. बारिश के मौसम में ढलानों पर नहीं रहना चाहिए. ऐसे मौसम में समतल जमीन वाले क्षेत्रों में रहना चाहिए.
9. जिन पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन दरक गई हो, वहां वर्षा जल को घुसने से रोकने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए.
बादल फटने की प्रमुख घटनाएं
साल 1998 के अगस्त महीने में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के मालपा गांव में बादल फटने से भारी भूस्खलन हुआ था. इस बादल फटने की घटना में 60 कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्री सहित करीब 225 लोगों की मौत हो गई थी. साल 2004 में बद्रीनाथ मंदिर क्षेत्र में बादल फटा था. इसमें 17 लोगों की मौत हो गई थी. मुंबई में 26 जुलाई 2005 को बादल फटा था. इस घटना में सैकड़ों लोग मारे गए थे. उत्तराखंड के केदारनाथ में जून 2013 को बादल फटने की घटना हुई थी. इसमें 5000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी.