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Explainer: क्या है Uniform Civil Code, कब हुआ था इसका सबसे पहले जिक्र, क्यों हो रहा है इसका अभी विरोध, यहां जानें हर सवाल का जवाब

यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम. इसके लागू होने पर सभी धार्मिक समुदायों के लिए विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने के नियम एक हो जाएंगे. 

यूसीसी लागू करने का कुछ लोग कर रहे विरोध (फोटो प्रतीकात्मक) यूसीसी लागू करने का कुछ लोग कर रहे विरोध (फोटो प्रतीकात्मक)
हाइलाइट्स
  • अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की कही गई है बात

  • देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान आपराधिक संहिता है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बाद अभी देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) यानी समान नागरिक संहिता का मुद्दा गरमा गया है. पीएम मोदी ने गत मंगलवार को कहा था कि एक घर में दो कानून नहीं चल सकते हैं. ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा. उन्होने कहा कि इस मुद्दे पर मुस्लिमों को गुमराह किया जा रहा है. 

छिड़ गया है सियासी घमासान 
पीएम मोदी के इतना कहने के बाद सियासी घमासान छिड़ गया है. कई विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया है कि पीएम मोदी ने कई राज्यों में चुनाव नजदीक आने पर राजनीतिक लाभ के लिए यूसीसी का मुद्दा उठाया है. मुस्लिम समुदाय भी इसका विरोध कर रहा है. आइए जानते हैं क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड और कब हुआ था इसका सबसे पहले जिक्र.

यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है 
यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम. दूसरे शब्‍दों में कहें तो समान नागरिक संहिता का मतलब है कि पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिए विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने के नियम एक ही होंगे. 

संविधान में कही गई है ये बात
संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है. समान नागरिक संहिता अनुच्छेद-44 के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है. इस अनुच्छेद में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है. अनुच्छेद 44 उत्तराधिकार, संपत्ति अधिकार, शादी, तलाक और बच्चे की कस्टडी के बारे में समान कानून की अवधारणा पर आधारित है. बता दें कि भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान आपराधिक संहिता है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है.

पहली बार कब हुआ था यूसीसी का जिक्र
समान नागरिक कानून का जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में भी किया गया था. इसमें कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है. इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई थी. हालांकि, 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया. राव समिति की सिफारिश पर 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया. हालांकि, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों लोगों के लिए अलग कानून रखे गए थे.

डॉ. आंबेडकर ने यूसीसी को बताया था जरूरी
संविधान सभा की बहस में डॉ. भीमराव आंबेडकर के बयान का हवाला देते हुए 2018 के कंसल्टेशन पेपर पर कहा गया, 'संविधान सभा में बहस के दौरान आंबेडकर की राय ये थी कि समान नागरिक संहिता जरूरी है लेकिन इसे स्वैच्छिक बनाया रखा जाना चाहिए. 23 नवंबर 1948 को डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने संविधान सभा की बहस में समान नागरिक संहिता के पक्ष में जोरदार दलीलें दी थीं.

अभी क्या है समान नागरिक संहिता का हाल
भारतीय अनुबंध अधिनियम-1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम-1882, भागीदारी अधिनियम-1932, साक्ष्य अधिनियम-1872 में सभी नागरिकों के लिए समान नियम लागू हैं. वहीं, धार्मिक मामलों में सभी के लिए कानून अलग हैं. देश का संविधान सभी को अपने-अपने धर्म के मुताबिक जीने की पूरी आजादी देता है. संविधान के अनुच्छेद-25 में कहा गया है कि कोई भी अपने हिसाब धर्म मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता रखता है.

इस राज्‍य में लागू है यूनिफॉर्म सिविल कोड
गोवा में यूसीसी पहले से ही लागू है. बता दें कि संविधान में गोवा को विशेष राज्‍य का दर्जा दिया गया है. वहीं, गोवा को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार भी मिला हुआ है. राज्‍य में सभी धर्म और जातियों के लिए फैमिली लॉ लागू है. इसके मुताबिक, सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक, उत्‍तराधिकार के कानून समान हैं. हालांकि, यहां भी एक अपवाद है. जहां मुस्लिमों को गोवा में चार शादी का अधिकार नहीं है. वहीं, हिंदुओं को दो शादी करने की छूट है. हालांकि, इसकी कुछ शर्तें भी हैं.

सुप्रीम कोर्ट का समान नागरिक संहिता पर रुख
1. ट्रिपल तलाक से जुड़े 1985 के चर्चित शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 44 एक ‘मृत पत्र’ जैसा हो गया है. साथ ही कोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर जोर दिया था. 
2. बहुविवाह से जुड़े सरला मुद्गल बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1954 में संसद में समान नागरिक संहिता के बजाय हिंदू कोड बिल पेश किया था. इस दौरान उन्‍होंने बचाव करते हुए कहा था कि यूसीसी को आगे बढ़ाने की कोशिश करने का यह सही समय नहीं है.
3. गोवा के लोगों से जुड़े 2019 के उत्तराधिकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों की चर्चा करने वाले भाग चार के अनुच्छेद-44 में संविधान के संस्थापकों ने अपेक्षा की थी कि राज्य भारत के सभी क्षेत्रों में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश करेगा. लेकिन, आज तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया.

यूसीसी लागू होने पर होंगे ये बदलाव 
यूसीसी के लागू होते ही हिंदू (बौद्धों, सिखों और जैनियों समेत), मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों को लेकर सभी वर्तमान कानून निरस्त हो जाएंगे. यदि यह लागू होता है, तो देशभर में सभी धर्मों के लिए विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे. 

क्यों कर रहे विरोध
मुस्लिम समुदाय यूसीसी को धार्मिक मामलों में दखल मान रहे हैं. दरअसल, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तहत शरीयत के आधार पर मुस्लिमों के लिए कानून तय होते हैं. यूसीसी का विरोध करने वाले मुस्लिम धर्मगुरुओं का मानना है कि यूसीसी की वजह से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का वजूद खतरे में पड़ जाएगा. मुस्लिम धर्मगुरुओं का कहना है कि शरीयत में महिलाओं को संरक्षण मिला हुआ है. इसके लिए अलग से किसी कानून को बनाए जाने की जरूरत नहीं है. मुस्लिम धर्मगुरुओं को यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिए मुसलमानों पर हिंदू रीति-रिवाज थोपने की कोशिश किए जाने का शक है. 

इन देशों में है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता का पालन कई देशों में होता है. इनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान, मिस्र, अमेरिका, आयरलैंड, आदि शामिल हैं.  इन सभी देशों में सभी धर्मों के लिए एकसमान कानून है.