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Drone Use in War: जानिए कब अस्तित्व में आया ड्रोन का कॉन्सेप्ट... कब पहली बार युद्ध में इस्तेमाल हुआ

ड्रोन का इतिहास बहुत पुराना है. 1849 में ऑस्ट्रिया ने वेनिस शहर पर गुब्बारों में बांधकर बम बरसाए थे. यह पहला मौका था जब अनमैन्ड (मानव-रहित) एरियल व्हीकल्स का इस्तेमाल किया गया.

(प्रतीकात्मक तस्वीर) (प्रतीकात्मक तस्वीर)

पहलगाम हमले का बदला लेने के लिए भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया और पाकिस्तान व पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों पर स्ट्राइक की और इन्हें खत्म कर दिया. इस स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने भी भारत के कई इलाकों पर ड्रोन अटैक किया, लेकिन भारत के मजबूत डिफेंस सिस्टम ने इन अटैक्स को नाकाम कर दिया. सिर्फ डिफेंस ही बल्कि दूसरे सेक्टर्स में भी ड्रोन्स की भूमिका बढ़ रही है. हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब किसी युद्ध में ड्रोन अटैक की बात हो रही है. रूस-यूक्रेन वॉर और इजरायल-हमास वॉर में भी ड्रोन का इस्तेमाल देखा गया है. 9/11 अटैक के बाद अमेरिका ने भी ड्रोन स्ट्राइक्स में कई आतंकियों को ढेर किया.

ड्रोन कॉन्सेप्ट का इतिहास
ड्रोन का इतिहास बहुत पुराना है. 1849 में ऑस्ट्रिया ने वेनिस शहर पर गुब्बारों में बांधकर बम बरसाए थे. यह पहला मौका था जब अनमैन्ड (मानव-रहित) एरियल व्हीकल्स का इस्तेमाल किया गया. ऑस्ट्रियाई सेना ने वेनिस की घेराबंदी के दौरान 200 हॉट एयर बैलून का इस्तेमाल किया, जिनमें 24 से 30 पाउंड के बम थे. हालांकि, तेज हवा के कारण ज्यादातर गुब्बारे अपने लक्ष्य से चूक गए. 

यह पहली बार था जब ऐसा कोई कॉन्सेप्ट अस्तित्व में आया. 1917 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन ने पहली बार रेडियो-कंट्रोल से चलने वाले ‘एरियल टारगेट’ का परीक्षण किया. इसके अगले ही साल, 1918 में अमेरिका ने ‘केटरिंग बग’ नामक एक रेडियो-कंट्रोल वाहन का टेस्ट किया, जो मानव रहित वाहन (UAV) का शुरुआती उदाहरण माना जाता है. 

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पहली बार 'ड्रोन' शब्द कब जुड़ा?
1935 में ब्रिटेन ने ‘डीएच 82बी क्वीन बी’ नामक रिमोट-कंट्रोल से उड़ने वाला ड्रोन बनाया. यह एक टारगेट प्रैक्टिस ड्रोन था और यही पहला ड्रोन था जिसे "आधुनिक ड्रोन" माना गया. इसका इस्तेमाल ब्रिटिश रॉयल एयर फोर्स द्वारा किया गया, और इसी से प्रेरित होकर अमेरिका ने अपना ड्रोन कार्यक्रम विकसित किया. 

वियतनाम युद्ध में पहला युद्धकालीन इस्तेमाल
1960 के दशक में अमेरिका ने वियतनाम युद्ध के दौरान ‘रयान एक्यूएम-91’ नामक ड्रोन का इस्तेमाल किया. यह छोटा रिमोट-कंट्रोल ड्रोन दो कैमरों से लैस था और दुश्मन की निगरानी के लिए उत्तरी वियतनाम में तैनात किया गया. इसने 3400 से ज्यादा उड़ानें भरीं और 11 सालों तक इसका इस्तेमाल किया गया. ऐसे कई ड्रोन दुश्मन की कार्रवाई में नष्ट हो गए. 

‘प्रीडेटर’ ड्रोन: युद्ध का गेमचेंजर
शीत युद्ध के दौर में ड्रोन मुख्यतः जासूसी के लिए उपयोग किए जाते थे. लेकिन 1990 के दशक में अमेरिका ने ‘प्रीडेटर ड्रोन’ विकसित किया जो मिसाइलों से लैस था. इसका पहला बड़ा इस्तेमाल बाल्कन युद्धों में हुआ. 2000 के आसपास, इसे हेलफायर मिसाइलों से लैस किया गया. यह दुश्मन के इलाके में सटीक हमले करने में सक्षम था. इस ड्रोन ने अमेरिका के आतंकवाद के खिलाफ अभियानों में अहम भूमिका निभाई. यह 24 घंटे तक उड़ान भरने में सक्षम था, जिससे निगरानी और हमले दोनों संभव हुए.

भारत में ड्रोन की शुरुआत
भारत का पहला स्वदेशी रूप से विकसित ड्रोन था ‘निशांत’, जिसे 1995 में DRDO ने डिजाइन किया. इसे भारतीय सेना के लिए रिमोटली पायलेटेड व्हीकल (RPV) के रूप में विकसित किया गया. 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान इसका पहली बार वास्तविक युद्ध में इस्तेमाल हुआ. यह दुश्मन की टोह लेने और तोपखाने की सटीकता बढ़ाने में उपयोगी साबित हुआ. 

आज ड्रोन सिर्फ निगरानी के लिए नहीं, बल्कि सटीक हमले, डेटा संग्रह और आपदा राहत जैसे कई क्षेत्रों में उपयोग किए जा रहे हैं. 100 साल पहले एक प्रयोग के रूप में शुरू हुई यह तकनीक अब युद्धों की रणनीति बदलने का माध्यम बन चुकी है.