
केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी आज अपना 41वां स्थापना दिवस मना रही है. भारत की राजनीति में जब भारतीय जनता पार्टी ने कदम रखा होगा, उस वक्त किसी ने नहीं सोचा होगा कि एक दिन पार्टी देश में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर सत्ता संभाल रही होगी. 80 के दशक में बीजेपी का गठन होने के बाद जब पहली बार पार्टी ने लोकसभा चुनाव लड़ा तो पार्टी के खाते में महज दो सीटें ही आई थी. लेकिन उसके बाद भी पार्टी नेताओं ने हिम्मत नहीं हारी.
अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी से होते हुए आज पार्टी की अगुवाई नरेंद्र मोदी कर रहे हैं. 6 अप्रैल, 1980 में जब पहली बार बीजेपी की स्थापना हुई तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. वहां से शुरू हुआ सफर आज शिखर पर है. आइए जानते हैं कि बीजेपी का अब तक का सफर कैसा रहा और पार्टी कैसे बनी.
भारतीय जनता पार्टी का इतिहास
बीजेपी का इतिहास जानने के लिए विचारधारा पर बनी उस पार्टी का इतिहास भी जानना होगा, जिसकी नींव बीजेपी से पहले रखी जा चुकी थी. बीजेपी का गठन 1980 में हुआ लेकिन उससे पहले 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी, हालांकि 1952 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ को कुल 3 सीटें मिली थीं.
हालांकि जनसंघ का संघर्ष यहां खत्म नहीं हुआ. जब देश में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई तो जनसंघ ने कांग्रेस के विरोध में आवाज और तेज कर दी. इमरजेंसी में खत्म होने के बाद जनसंघ ने दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर जनता पार्टी बनाई.
जनता पार्टी ने 1977 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की और मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया. हालांकि तीन साल बाद देसाई को हटना पड़ा और फिर जनसंघ के लोगों ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनाई. बीजेपी के बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी को अध्यक्ष बनाया गया. 1984 में हुए 8 वें लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी को राष्ट्रीय चुनाव में उतरने का मौका मिला. लेकिन उस चुनाव में बीजेपी को केवल 2 सीटें मिली थीं, लेकिन जो सफर शुरू हुआ वो आज शिखर पर है. वैसे तो ये सफर अटल और आडवाणी ने शुरू किया था, लेकिन उसको मंजिल पर पहुंचाया नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने.
2 सीटों से 303 सीटों तक का सफर
1984 में 2 सीटें पाने के बाद बीजेपी ने कभी हार नहीं मानी, फिर 1989 में 85 सीटें, 1991 में राम मंदिर की लहर में पार्टी ने 120 सीटें जीतीं. इसके बाद पार्टी की सीटें लगातार बढ़ती रहीं. 1996 में 161 सीट, 1998 में 182 और उसके बाद 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने इतिहास रच दिया. पार्टी को 2014 में 282 लोकसभा सीटें मिली. वहीं 2019 में 303 सीटें जीतकर हर तरफ बीजेपी की लहर दौड़ गई.
2004 में करारी हार का किया सामना
2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना कर पड़ा था. 2004 के 14वें में पार्टी के खाते में महज 138 सीटें ही आई. वहीं अगले साल 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को और नुकसान हुआ. 15वें लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खाते में केवल 116 सीटें ही आई.
अब तक के राष्ट्रीय अध्यक्ष
जब पार्टी का गठन हुआ उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. फिर 1986 में लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. 1991 में वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने पार्टी की कमान संभाली. फिर 1993 में एक बार फिर लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी का अध्यक्ष चुना गया. इस बीच वरिष्ठ नेता कुशाभाई ठाकरे को पार्टी का अध्यक्ष चुना गया. फिर 2000 में बंगारू लक्ष्मण, 2001 में के. जना कृष्णमूर्ति, 2002 में एम. वेंकैया नायडू और 2005 में राजनाथ सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया. 2010 में नितिन गडकरी और 2013 में फिर से राजनाथ सिंह को दूसरी बार पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया. 2014 में ये जिम्मेदारी अमित शाह को दी गई. फिल साल 2019 की ऐतिहासिक जीत के बाद उन्हें गृहमंत्री बना दिया गया और जेपी नड्डा ने पार्टी की कमान संभाल ली.
दक्षिण में पांव पसार रही है बीजेपी
देश में बीजेपी की लहर के बाद बीजेपी की नजर अब दक्षिण भारत पर है. आम चुनाव में भले ही दो साल का वक्त बाकी है. लेकिन बीजेपी ने सियासी किलेबंदी अभी से शुरू कर दी है. दिल्ली में डीएमके कार्यालय के उद्घाटन के मौके पर विपक्षी नेताओं के जमावड़े को 2024 की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है. दरअसल बीजेपी हाल ही में पूर्वोत्तर और उत्तर में मिली जीत से बेहद से उत्साहित है, और दक्षिण में तेजी से अपनी जमीन मजबूत कर रही है. गौरतलब है कि दक्षिण के पांच राज्यों में बीजेपी की 129 सीटें हैं. जिनमें बीजेपी के पास 28 हैं. इनमें से 25 कर्नाटक में हैं, जो दक्षिण का प्रवेश द्वार है.
दक्षिण में इन मुद्दों पर आगे बढ़ रही है बीजेपी
कर्नाटक में हिजाबवाद, मुसलमानों को हिंदू मेलों में दुकान लगाने से रोक, हलाल मीट जैसे मुद्दों से बीजेपी हिंदुत्व का नैरेटिव बना रही है.
तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में राजनीति सिर्फ दलों के बीत ही सिमटी हुई है. इस दलों की कमान एक-दो पार्टियों तक सिमटी है, अब बीजेपी इसे परिवारवाद कहकर बड़ा मुद्दा बना रही है.
बीजेपी बाहरी पार्टी के नैरेटिव से बचना चाहती है, इसलिए लोकल नेताओं को बढ़ा रही है. दूसरे दलों के बड़े चेहरे साथ लाए जा रहे हैं.
दक्षिण में भाजपा डबल इंजन की सरकार का भी हवाला दे रही है. वहां भाजपा लोगों को बता रही है कि जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है, उनमें केंद्र की तमाम योजनाओं का पूरा फायदा जनता को मिल रहा है, जबकि दक्षिण में ऐसा नहीं है.
दक्षिणी राज्यों में भले अभी बीजेपी के कुछ साथी हो, पर पार्टी अपनी जमीन ऐसे तैयार कर रही है, जिससे वो धीरे-धीरे अकेले दम पर अपना आधार बना सके.