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हर साल अक्टूबर-नवंबर में क्यों जहरीली हो जाती है दिल्ली की हवा?

हर साल आपने देखा होगा अक्टूबर से नवंबर के बीच यानी दिवाली के आसपास दिल्ली में वायु गुणवत्ता काफी खराब होने लगती है. शुक्रवार सुबह भी पूरे एनसीआर में धुंध छाई रही. नोएडा में सुबह के हालात देखकर प्रदूषण का अंदाजा लगाया जा सकता है. दिल्ली- एनसीआर के कुछ इलाकों में कुछ मीटर के बाद साफ दिखाई नहीं दे रहा था.

Delhi Pollution Delhi Pollution
हाइलाइट्स
  • मानसून की विदाई का समय होता है अक्टूबर का महीना

  • हवा में प्रदूषक तत्वों की मौजूदगी है प्रदूषण की जिम्मेदार

हर साल आपने देखा होगा अक्टूबर से नवंबर के बीच यानी दिवाली के आसपास दिल्ली में वायु गुणवत्ता काफी खराब होने लगती है. शुक्रवार सुबह भी पूरे एनसीआर में धुंध छाई रही. नोएडा में सुबह के हालात देखकर प्रदूषण का अंदाजा लगाया जा सकता है. दिल्ली- एनसीआर के कुछ इलाकों में कुछ मीटर के बाद साफ दिखाई नहीं दे रहा था. SAFAR एजेंसी के अनुसार, नोएडा का एयर क्वालिटी इंडेक्स 533 दर्ज किया गया, जोकि बेहद खतरनाक है.

15 अक्टूबर को जब इस सीजन में पहली बार एक्यूआई ने बहुत खराब स्थिति को छुआ था तो केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि उस दिन पराली जलाने का योगदान केवल 4 प्रतिशत था. इसके जवाब में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि से यह सवाल किया जाना चाहिए कि अगर पराली जलाना वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण नहीं है तो पिछले कुछ दिनों से शहर की खराब हुई आबोहवा का जिम्मेदार कौन है?

नासा के फायर इंफॉर्मेशन फॉर रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम (एफआईआरएमएस) के उपग्रहों से मिलने वाली तस्वीरों के आंकड़ों (सैटेलाइट इमेजरी डेटा) के अनुसार, नवंबर के पहले आठ दिनों में पंजाब और हरियाणा में 33,000 से अधिक फायर स्पॉट (खेतों में लगाई गई आग) देखे गए. यह नवंबर के महीने के लिए पिछले साल में सबसे ज्यादा संख्या है.

क्यों बढ़ जाता है अक्टूबर में प्रदूषण का स्तर?

  • अक्टूबर का महीना आमतौर पर उत्तर पश्चिमी भारत में मानसून की विदाई का समय है. 
  • मानसून के दौरान पूर्वी हवाएं चलती हैं,जो बंगाल की खाड़ी के ऊपर से चलती हैं. ये हवाएं नमी ले जाती हैं और देश के इस हिस्से में बारिश लाती हैं. एक बार जब मानसून वापस आ जाता है, तो हवाओं की प्रमुख दिशा उत्तर पश्चिम में बदल जाती है. 
  • गर्मियों के दौरान भी हवा की दिशा उत्तर पश्चिम होती है और तूफान राजस्थान और कभी-कभी पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धूल लाता है.
  • नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, सर्दियों में दिल्ली की 72 प्रतिशत हवा उत्तर-पश्चिम से आती है, जबकि शेष 28 प्रतिशत भारत-गंगा के मैदानों से आती है.

    PM को पर्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) या कण प्रदूषण (particle pollution) भी कहा जाता है, जो कि वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण होते हैं. हवा में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आंखों से नहीं देख सकते. कुछ कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके पता लगाया जा सकता है. इसके लिए प्रदूषण मापने के पैमाने से जुड़ी कुछ शब्दावलियों को समझाना जरूरी है - 

  • Air Quality Index या वायु गुणवत्ता सूचकांक, यह दरअसल एक नंबर होता है जिसके जरिए हवा का गुणवत्ता पता लगाया जाता है. साथ इसके जरिए भविष्य में होने वाले प्रदूषण के स्तर का भी पता लगाया जाता है. भारत में एक्यूआई को मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरोमेंट, फॉरेस्ट और क्लाइमेट चेंज ने लॉन्च किया.

  • पीएम 10: इन कणों का साइज 10 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास होता है. इसमें धूल, गर्दा और धातु के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं. पीएम 10 और 2.5 धूल, कंस्‍ट्रक्‍शन और कूड़ा व पराली जलाने से ज्यादा बढ़ता है

  • PM 2.5 वायुमंडलीय कण पदार्थ को संदर्भित करता है जिसमें 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास होता है, जो मानव बाल के व्यास के लगभग 3% है.

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