

हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाया जाता है. इस दिन स्कूल-कॉलेज से लेकर सरकारी-प्राइवेट दफ्तरों, सोसाइटीज और इंडस्ट्रीज आदि में पर्यावरण से जुड़ी हुई ढेरों एक्टिविटीज की जाती हैं. लेकिन क्या सिर्फ एक दिन की एक्टिविटीज हमारे पर्यावरण को संरक्षित कर सकती हैं. जी नहीं, पर्यावरण संरक्षण के लिए सिर्फ एक दिन काफी नहीं है बल्कि आपको हर दिन अपने रूटीन में ऐसी चीजें करनी होंगी जो पर्यावरण के हित में हों.
यह काम करना सुनने में मुश्किल लग सकता है लेकिन जब आप एक शुरुआत करते हैं तो चीजें आसान हो जाती हैं. और आपके छोटे-छोटे कदम एक बड़ी क्रांति बन जाते हैं. आज हम आपको मिलवा रहे हैं कुछ ऐसे ही Environment Heroes से, जिनकी शुरुआत बीज की तरह बहुत छोटी थी लेकिन आज अभियान बन गई है.
शहरीकरण की तेज़ रफ्तार और विकास के नाम पर लोग जब कटते पेड़ों को देखते हैं बस सरकार को दोष देकर चुप हो जाते हैं. मगर भोपाल की साक्षी भारद्वाज ने दोष नहीं दिया बल्कि उन्होंने कर्म करने पर फोकस किया. उन्होंने अपने घर में 800 वर्ग फीट में एक मिनी जंगल तैयार किया, जिसे उन्होंने नाम दिया- जंगलवास. साल 2019 में कोविड महामारी के दौरान उनका यह पैशन शुरू हुआ था. उनके जंगलवास में आज 4000 से ज्यादा पौधे हैं- जिनमें से 450 प्रजातियां खुद साक्षी ने खोजकर इकट्ठी की हैं. इनमें 150 दुर्लभ और विदेशी प्रजातियां हैं, जो शुद्ध ऑक्सीजन देने के लिए जानी जाती हैं. यही कारण है कि वे इसे “ऑक्सीजन स्टेशन” भी कहती हैं.
उनका मानना है कि चाहे कोई स्टूडियो अपार्टमेंट में रह रहा हो या बड़ा बंगला, हर कोई अपने घर में एक मिनी फॉरेस्ट विकसित कर सकता है. शुरुआत में जंगलवास सिर्फ एक पर्सनल प्रोजेक्ट था, लेकिन जब लोगों ने इसे देखा, तो वे प्रेरित हुए. धीरे-धीरे लोग साक्षी से सलाह लेने लगे. अपने घरों और फार्महाउस पर ऐसा ही अर्बन फॉरेस्ट तैयार करने के लिए. अब पिछले 5 सालों से साक्षी भारद्वाज भारत के कंक्रीट के जंगलों में हरियाली उगा रही हैं. बालकनी में रखी पुरानी बोतलों से लेकर भोपाल, दिल्ली, इंदौर और ग्वालियर में बने 6 समृद्ध मिनी जंगलों तक, वे शहरों में प्रकृति को फिर से लौटा रही हैं. आज वह स्वच्छ भारत भोपाल की ब्रांड एंबेस्डर हैं और COP29 में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुकी हैं.
दिल्ली के रहने वाले रिपु दमन बेविल ने 2016 में प्लॉगिंग की शुरुआत की, जिसमें रनिंग करते हुए कचरा उठाया जाता है. यह शब्द स्वीडिश भाषा के 'प्लॉग' और 'जॉगिंग' से मिलकर बना है, जिसका मतलब है 'पिकअप.' रिपु दमन के लिए रनिंग करते वक्त कचरा उठाना एक्स्ट्रा वर्कआउट है. रिपु दमन को बचपन से ही उन्हें रनिंग की आदत थी, लेकिन रास्ते में कचरा देखकर उन्हें बहुत बुरा लगता था. उन्होंने डिसाइड किया कि वे जॉगिंग करते वक्त कचरा उठाएंगे और उसे सही जगह डिस्पोज़ करेंगे. रिपु दमन ने प्लॉगिंग को ऑनलाइन पोस्ट करना शुरू किया, जिससे लोग उनसे जुड़ने लगे. 2018 में उन्हें इंटरनेशनल मीडिया से पहचान मिली, जिससे अवेयरनेस मिली.
रिपु दमन ने 'रन टु मेक इंडिया लिटर फ्री' नामक नेशनवाइड कैंपेन शुरू किया, जिसमें 50 दिनों में 50 शहरों की सफाई करते हुए 1000 किलोमीटर ऑन फुट क्लीन अप किया. इस दौरान उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे बात की और 'मन की बात' में उनका जिक्र किया. रिपु दमन प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने के लिए 'प्लास्टिक उपवास' का कॉन्सेप्ट लेकर आए, जिसमें लोगों को सिंगल यूज़ आइटम को खत्म करने के लिए प्रेरित किया जाता है. 2 अक्टूबर 2019 को गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ने उनके साथ मिलकर पहला 'फिट इंडिया प्लॉगिंग रन' रखा, जिसमें 40,00,000 लोगों ने हिस्सा लिया. आज वह 110 शहरों में 700 क्लीनअप कर चुके हैं. वह प्लॉगिंग एंबेस्डर हैं और इको-वेडिंग कंसल्टेंट भी.
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र को पानी के संकट और लगातार पड़ने वाले सूखे के लिए जाना जाता है. यहां गर्मियों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, और जल स्रोत सूख जाते हैं. इस संकट से जूझते हुए एक नाम उभरा- रामबाबू तिवारी, जिन्हें अब ‘वॉटर हीरो’ के नाम से जाना जाता है. उनका यह सफर महज एक पहल नहीं, बल्कि 13-14 सालों की लगातार मेहनत और समर्पण की गाथा है. बुंदेलखंड के एक छोटे गांव अधावन में जन्मे और पले-बढ़े रामबाबू ने पानी की किल्लत को करीब से देखा है. लेकिन उन्होंने हाथ पर हाथ रखे बैठने की बजाय कुछ करने की ठानी. वह कक्षा 12 में थे जब उन्होंने गांव के एक सूखे पड़े तालाब को फिर से भरने की ठानी. परिवार और दोस्तों ने विरोध किया, लेकिन रामबाबू ने हार नहीं मानी. उन्होंने गांववालों को एकजुट किया और साथ मिलकर तालाबों की खुदाई और पुनर्जीवन का काम शुरू किया.
उनका पहला बड़ा प्रयास था 11 बीघे में फैला बजरंग सागर तालाब का पुनर्जीवन. गांववाले पहले तो तैयार नहीं थे, लेकिन तिवारी ने मंदिर में एक पूजा रखी, और प्रसाद से पहले लोगों से खुदाई करवाई. लगातार 8 सप्ताह तक हर सोमवार 24 घंटे खुदाई होती रही और तालाब पूरी तरह साफ हो गया और 2015 की बारिश में वह पूरी तरह भर गया. अब तक तिवारी और उनकी टीम 75 से ज्यादा तालाबों का पुनर्जीवन कर चुके हैं. उन्होंने 300 से ज्यादा 'पानी चौपालें' भी आयोजित की हैं, जिनमें लोगों को पानी बचाने और उसका सही उपयोग करने की जानकारी दी जाती है. आज उनके पास 5,000 जल मित्रों का एक सक्रिय नेटवर्क है जो बुंदेलखंड के अलग-अलग हिस्सों में जल संरक्षण में जुटे हैं. 2015 के बाद उन्होंने हर खेत के पास रेनवाटर हार्वेस्टिंग के लिए ट्रफ बनवाने शुरू किए, जिससे खेती में पानी की जरूरत पूरी हो सके. यह पहल भी बेहद कारगर रही. रामबाबू तिवारी की कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा है. उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि एक बूंद से शुरुआत करके भी सागर भरा जा सकता है.