महाराष्ट्र के अमरावती में रहने वाली भावना बचपन से एक हाथ से दिव्यांग हैं. इसके बावजूद, वह अपनी कलात्मक शक्ति से गणपति बप्पा की मूर्तियों में रंग भरती हैं और उन्हें जीवंत रूप देती हैं. भावना एक कमर्शियल आर्टिस्ट भी हैं और एक कॉलेज में आर्ट टीचर के रूप में अपनी कला की बारीकियां सिखाती हैं. शादी के बाद वह अपने मूर्तिकार पति के साथ इस काम से जुड़ीं और अपने काम को लेकर संतुष्ट हैं. भावना कहती हैं, 'उन्होंने मुझे इसी काम के लिए बनाया है. मैं भाग्यवान हूं कि मेरी कला से मैं जिसने मुझे बनाया, मैं उसको रूप देने का एक छोटा सा प्रयत्न कर रही हूँ' उनका यह कार्य गुजरे परिवार की परंपरा को आगे बढ़ा रहा है और समाज को साहस तथा आत्मविश्वास का संदेश देता है. भावना की कहानी यह दर्शाती है कि जो आपके पास है, उसमें से कुछ अलग किया जाए, क्योंकि उसी में असली ताकत छिपी है.