आज़ादी के 79 साल पूरे होने से पहले, राजस्थान से कई परिवार दिल्ली एनसीआर के फुटपाथों पर तिरंगे बेचने के लिए आते हैं। ये लोग 600 किलोमीटर तक का सफर तय करके यहाँ पहुँचते हैं और 15 अगस्त से कुछ दिन पहले अपना अस्थायी आशियाना बना लेते हैं। इनका पूरा परिवार, बच्चों से लेकर बड़ों तक, तिरंगे के इर्द-गिर्द ही अपना जीवन बिताता है। ये लोग तिरंगे को अपनी जान से भी ज़्यादा महत्व देते हैं। इनकी देशभक्ति इनकी आर्थिक स्थिति से कहीं ज़्यादा बड़ी है। ये ग्राहक को तिरंगा कम दाम पर या बिना मुनाफे के भी दे देते हैं, ताकि हर घर में झंडा पहुँच सके। ये ग्राहकों को तिरंगे का सम्मान करना भी सिखाते हैं। गरीबी और मुश्किलों के बावजूद, ये लोग तिरंगे को अपने बिस्तर से ऊँची जगह पर रखते हैं और उसकी पूरी हिफाज़त करते हैं। इनके लिए आज़ादी का मतलब है, "ये सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा और क्या हो सकता है इससे बढ़िया।" ये अपनी परेशानियों को देश की आज़ादी के जश्न के सामने फीका मानते हैं।