आदिगुरु शंकराचार्य ने आठवीं सदी में भारत में सनातन धर्म को उसका विराट स्वरूप लौटाया, जिसके लिए उन्होंने देश भर की यात्रा कर चार मठ स्थापित किए. केदारनाथ से उनका विशेष संबंध था, जहाँ उन्होंने अंतिम उपदेश दिए और ब्रह्मलीन हुए; यहीं उनकी समाधि स्थित है, जिसका 2020 में पुनर्निर्माण आरम्भ हुआ. उनका अद्वैत सिद्धांत 'जीवो ब्रह्मोवनापरह' अर्थात जीव ही ब्रह्म है, आज भी प्रासंगिक है.