संत प्रेमानंद महाराज ने सत्संग के दौरान मंत्र लिखे कपड़े पहनने पर आपत्ति जताई है. उन्होंने कहा कि मंत्र हृदय में लिखा होना चाहिए, कपड़े में नहीं, क्योंकि यह निषिद्ध है और ऐसे वस्त्रों को पहनकर शौच आदि में जाने से धर्म को हानि पहुंचती है. धर्म और अध्यात्म में विश्वास रखने वाले लोग इसे सही नहीं मानते हैं, जबकि मंत्र जाप के लिए शुद्धता और एकाग्रता आवश्यक है.