सनातन धर्म में गुरु का अर्थ अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला बताया गया है. गुरु मन के क्लेश और विकार मिटाकर उसे निर्मल करते हैं. शिक्षा प्रदान करने वाले को आंशिक अर्थों में गुरु कहा जा सकता है, लेकिन वास्तविक गुरु वह है जो जन्म जन्मांतर के संस्कारों से मुक्त कराकर ईश्वर तक पहुंचाता है. सनातन के ग्रंथों में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर माना गया है. हनुमान चालीसा की शुरुआत और समापन गुरु की महिमा से होता है. रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने गुरु को भगवान शंकर का रूप माना है.