सावन का पावन महीना चल रहा है और भारत में भोले बाबा की पूजा अर्चना धूमधाम से हो रही है. वहीं नेपाल में इस महीने में एक ऐसा त्यौहार मनाया गया है जो होलिका दहन और रावण दहन की याद दिलाता है. नेपाल की राजधानी काठमांडू की सड़कों पर हर साल सावन में एक पारंपरिक उत्सव मनाया जाता है. इस दौरान एक राक्षस के पुतले का दहन किया जाता है. लोग यहां पर घंटाकर्ण नाम के राक्षस के अंत का जश्न मनाते हैं. इसे मंगल उत्सव भी कहा जाता है. यह त्यौहार श्रावण महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. इस दिन घास और बांस से राक्षस घंटाकर्ण के पुतले बनाए जाते हैं और उन्हें जलाया जाता है. यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. नेपाल के कई इलाकों में, खासकर नेवा समुदाय, इस त्यौहार को पारंपरिक विधि विधान से मनाता है. माना जाता है कि घंटाकर्ण कानो में घंटियां लगी होने के कारण यह नाम मिला था. वह गांव के बच्चों और महिलाओं को चुराकर ले जाता था. एक दिन मेंढकों के झुंड ने उसे घेर लिया और वह दलदल में डूब गया. इस त्यौहार को राक्षस के अंत से मुक्ति और स्वच्छता का प्रतीक भी माना जाता है. इस मौके पर लोग अपने घरों और आसपास के क्षेत्रों को साफ करते हैं. इसके साथ ही नेपाल में नेवा समुदाय के लोगों के बीच त्योहारों के सीजन और मांगलिक कार्यों का शुभारंभ भी हो जाता है.