अभी पितृपक्ष का पावन समय चल रहा है, जिसमें पूर्वजों के लिए पूजा, प्रार्थना, तर्पण और पिंडदान का विशेष महत्व है. हिंदू सनातन धर्म के अनुसार, भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण प्रतिपदा तक की यह अवधि पितृपक्ष कहलाती है. इस दौरान बिहार के गया, प्रयागराज, वाराणसी और बद्रीनाथ धाम जैसे तीर्थस्थलों पर लोग अपने पितरों के पिंडदान और तर्पण के लिए पहुँच रहे हैं. जो लोग इन तीर्थों तक नहीं पहुँच पाते, वे अब ऑनलाइन सुविधा का सहारा लेकर अनुष्ठान पूरे कर रहे हैं. मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरों को तर्पण और पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष मिलता है और जीवन में खुशहाली आती है. शास्त्रों में गया को मोक्ष की सैली कहा गया है, जहाँ भगवान विष्णु स्वयं पितृ देव के रूप में निवास करते हैं. कहा जाता है कि पितृ मुक्ति के लिए पूरे विश्व में कोई स्थान नहीं है, उसके लिए एक ही स्थान है, यहाँ विष्णुपद में पिंड देने से सात गोत्र का उद्धार होता है. फल्गु नदी के तट पर भगवान राम और माता सीता ने भी राजा दशरथ के लिए पिंडदान किया था. गया में पिंडदान करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है और परिवार में शांति व समृद्धि बनी रहती है.