जैसलमेर के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित तनोट माता मंदिर जवानों की गहरी आस्था का केंद्र है. सीमा सुरक्षा बल के जवान इस मंदिर की देखरेख करते हैं और यहाँ के पुजारी भी बीएसएफ के सिपाही ही होते हैं. 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान इस मंदिर पर कई बम गिराए गए, लेकिन उनमें से एक भी नहीं फटा. इसे दुनिया माँ दनोट का चमत्कार ही मानती है. युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना के बीच आपसी संघर्ष भी हुआ, माना जाता है कि माता के प्रभाव से वे अपने ही सैनिकों को भारतीय सैनिक समझकर गोलीबारी करने लगे थे. तनोट माता को हिंगलाज माता का ही स्वरूप माना जाता है, जिनका शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है. विक्रम संवत 828 में भाटी राजपूत नरेश तरुण राव ने माता तनोट राय का मंदिर बनवाया था. मंदिर में होने वाली आरती 'वीर रस' से ओतप्रोत होती है और इसे 'पावर पैक आरती' कहा जाता है, जो जवानों में नया जोश भर देती है. सुरक्षा बल के जवान किसी भी नई जिम्मेदारी से पहले माता का आशीर्वाद लेते हैं. बीएसएफ के जवान तनोट माता मंदिर की सेवा भारत माता की सेवा के समान मानते हैं.