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ऑफबीट

400 साल पुरानी है रोगन आर्ट की कला, बिना कपड़े को छुए बनाते हैं आर्ट, पीएम मोदी कई विदेशी महमानों को कर चुके हैं भेंट

Rogan Art
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एक ऐसी कला जो दिल से निकलकर दिमाग में बनती है और और हाथों के जरिए कपड़ों पर उकेरी जाती है लेकिन कपड़ों पर उकेरने के लिए सुई धागा या पैंट ब्रश का इस्तेमाल किया ही नहीं जाता है. यह एक ऐसी कला है जिसमें कपड़े को बिना छुए ही उस पर डिजाइन बनाई जाती है. दरअसल यह गुजरात के कच्छ जिले के निरोणा गांव में प्रचलित कपड़ा छपाई की एक कला है जिसे रोगन आर्ट कहते हैं.

Rogan painting
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आज से 400 साल पहले रोगन आर्ट ईरान से भारत के गुजरात में पहुंचा था. उसके बाद समय के साथ यह कला धुंधली पड़ती गई और एक समय ऐसा भी आया जब यह कला मरणासन्न अवस्था में चली गई थी. लेकिन कच्छ के निरोणा गांव के अब्दुल गफ्फार खत्री परिवार ने इसे पुनर्जीवित करने का काम किया है. यह कला कच्छ का सिर्फ यही एक परिवार जानता है.

Rogan Painting
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पीएम मोदी ने दुनिया भर के जिन दिग्गजों को यही रोगन पेंटिंग गिफ्ट की है. क्वाड शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जापानी समकक्ष फुमियो किशिदा को रोगन पेंटिंग भेंट की थी. इससे पहले भी दिवसीय यूरोपीय दौरे पर डेनमार्क की महारानी मार्ग्रेथ द्वितीय को भी एक रोगन पेंटिंग भेंट की थी. इससे पहले पीएम मोदी ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा को भी यही रोगन पेंटिंग गिफ्ट में दी थी. इसके बाद कई सारे विदेशी नेताओं को यह रोगन आर्ट पेंटिंग भेंट की जा चुकी है.विदेशी नेताओं को भेंट किए जाने के बाद देश में रोगन पेंटिंग की लोकप्रियता बढ़ी.

अब्दुल गफ्फार खत्री को अपने इस कला के लिए पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा उनके परिवार को कई बार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं. अब्दुल गफ्फार खत्री परिवार के सुमरा खत्री बताते हैं कि एक ऐसा वक्त भी था जब यह कला पूर्ण रूप से विलुप्त होने के कगार पर थी. लेकिन उनके परिवार ने इसे पुनर्जित्वित करने के काम किया.
 

Rogan Painting
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सूमरा बताते हैं कि यह उनकी आंठवी पीढ़ी है जो रोगन आर्ट का काम कर रही हैं. जाहिर सी बात है कि इससे पहले भी कई पीढ़ियों ने किया ही होगा. लेकिन आठ पीढ़ियों को ये जानते हैं. सुमरा बताते हैं कि इसे बनने में एक लंबा समय लगता है. दरअसल एक ऑयल बेस्ड आर्ट फॉर्म है. रोगन को बढ़ाने के लिए पहले कैस्टर ऑयल को दो से 3 दिन तक चूल्हे पर गर्म किया जाता है. गरम करने के बात जब यह तेल ठंडा होता है तब एक रबर नुमा चीज बनती है. इस रबर नुमा चीज को फिर अलग-अलग रंगों से रंग दिया जाता है. सुमेरा बताते हैं कि यह रंग भी पूरी तरह से नेचुरल होते हैं. जब रोगन तैयार हो जाता है तब उसे पानी में रख देते हैं.

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इस कला में एक विशेष 6 इंच लंबी लोहे की रॉड का इस्तेमाल किया जाता है. इस रॉड की मदद से रंग को बाएं हाथ पर रगड़-रगड़ कर धागे जैसी तार निकाली जाती है और फिर इस धागे से कपड़ों पर डिज़ाइन बनाए जाते हैं. सुमेरा के बाद वाली पीढ़ी भी यही काम कर रही है. 25 वर्षीय अब्दुल बताते हैं कि विशाल उसे अपने पिता और दादा जी को यही काम करते देख रहे हैं और इसीलिए उनका सपना भी यही है कि वे इस कला को आगे ले जाएं. अब्दुल बताते हैं कि रोगन आर्ट की सबसे खास बात यह है कि इस 8 को कपड़े पर बनाने से पहले किसी तरह का रफ स्केच नहीं बनाया जाता है. एक आर्टिस्ट जो उसके दिमाग में सोचता है वही कपड़ों पर सीधे उकेर देता है.

Rogan Painting
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इस आर्ट में सबसे ज्यादा लागत समय की है. हर एक कला को बनने में लंबा समय लगता है. किसी आर्ट को बनने में तो एक से डेढ़ साल तक का समय लग जाता है. और इसलिए इन पेंटिंग्स की कीमत पंद्रह सौ से शुरू होकर 30 लाख तक जाती है. समरा बताते हैं कि उनके लिए इस कला को जीवित रखना आसान नहीं था. शुरुआत में उन्होंने अपनी आजीविका चलाने के लिए रेडिया चलाने का काम भी किया. जैसे-जैसे कला को पहचान मिलती गई वैसे-वैसे उसका विस्तार भी होता गया. और आज पूरे विश्वभर में इसे पहचान मिल रही है.उनके परिवार को इस कला को जीवित रखने के लिए अब तक कुल तीस अवार्ड मिल चुके हैं. इसमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सभी अवार्ड्स सम्मिलित हैं.