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Inspiring Story: 12th फेल से लेकर IAS बनने तक, बचपन में खोया पिता को, पढ़ाई के साथ किया काम और फिर बने अफसर

असम के IAS नारायण कोंवर की कहानी भी 12th Fail फिल्म के नायक से मिलती-जुलती है. नारायण ने भी मुश्किलों से लड़कर अपना मुकान हीसिल किया है.

IAS Narayan Konwar IAS Narayan Konwar
हाइलाइट्स
  • 12 साल की उम्र में खोया पिता को  

  • लोगों की करते हैं मदद

हाल ही में, कई फिल्मफेयर अवॉर्ड्स जीतने वाली फिल्म, 12th Fail को देश-दुनिया में पसंद किया जा रहा है. यह फिल्म IPS मनोज शर्मा के जीवन पर आधारित है. लेकिन यह सिर्फ IPS मनोज की कहानी नहीं है बल्कि हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग होंगे जो इस कहानी से इत्तेफाक रखते होंगे. 

असम के IAS नारायण कोंवर की कहानी भी ऐसे ही संघर्ष से भरी है. कम उम्र में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था. पिता के जाने के बाद पढ़ाई के साथ-साथ घर की जिम्मेदारी भी नारायण के कंधों पर थी. उस जमाने में बाढ़ प्रभावित असम में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) का दबदबा बढ़ रहा था. नारायण भी इस सोच से प्रभावित थे लेकिन उन्होंने फिर ऐसी राह चुनी कि आज वह सबके लिए प्रेरणा हैं. 

12 साल की उम्र में खोया पिता को  
मध्य असम के मोरीगांव जिले के रहने वाले IAS नारायण कोंवर आज असम के शिक्षा विभाग की सचिव हैं. वह सिर्फ 12 साल के थे, जब उन्होंने अपने पिता को खोया. उनके पिता शिक्षक थे और उनके जाने के बाद पांच लोगों के परिवार को चलाने की ज़िम्मेदारी नारायण और उनकी मां पर आ गई. उस समय असम में बाढ़ का प्रकोप काफी ज्यादा रहता था. ऐसे में लोग मछलियां पकड़कर गुजारा करते थे. इस सबके बीच उन्होंने पढ़ाई भी जारी रखी. 

साल 1989 में पिता के निधन के बाद परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. पैसे कमाने की जद्दोजहद के बीच वह जैसे-तैस पढ़ रहे थे. हालांकि, उनकी मेहनत को देखकर उनके स्कूल प्रिंसिपल ने उनके लिए किताबें और वर्दी की व्यवस्था की. उन्होंने दसवीं में अच्छे मार्क्स हासिल किए. लेकिन 11वहीं कक्षा में उन्होंन इंटर कॉलेज में दाखिला लिया जो उनके घर से लगभग 15 किमी दूर था. आने-जाने में समय लगता था और वह काम भी करते थे. इस मुश्किल में उनका ध्यान पढ़ाई से हटने लगा और वह 12वीं में फेल हो गए. 

... पर नहीं मानी हार 
नारायण का फेल होना न सिर्फ उनके लिए बल्कि परिवार में सभी के लिए अपमानजनक था क्योंकि लोग उन्हें उनके पिता के नाम से जानते थे. इसलिए नारायण ने फिर से कड़ी मेहनत की और फिर प्रथम श्रेणी से परीक्षा पास की. 

इसी सबके के दौरान उल्फा आंदोलन ने असम की राजनीति पर अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी, इस संगठन ने विशेष रूप से युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल की. नारायण भी इस आंदोलन से प्रेरित थे, लेकिन संगठन में शामिल नहीं हुए. उनकी राह कुछ और थी और इसके लिए उन्होंने दिन-रात मेहनत की. गुवाहाटी विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर करने के बाद, कोंवर ने राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) पास की. वह एक कॉलेज शिक्षक बनना चाहते थे लेकिन उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी. वह समाज के वंचित वर्गों के लिए काम करना चाहते थे और इसलिए उन्होंने सिविल सर्विसेज को चुना. 

लोगों की करते हैं मदद
नारायण ने साल 2010 में UPSC की परीक्षा पास की और 119वीं रैंक हासिल की. नारायण ड्यूटी के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी करते हुए समाज के लिए भी काम कर रहे हैं. वह युवाओं का मार्गदर्शन करते हैं और उन्हें परीक्षा के लिए भी मदद करते हैं. इसके अलावा, वह पिछड़े इलाके के लोगों को आगे बढ़ने में मदद कर रहे हैं.