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Kota Doria Saree: 3 महीने में बनती है एक साड़ी, बुनकरों के हुनर के परदेसी भी कायल.... जानिए कैसे कोटा डोरिया बनी भारत की खास पहचान

आज के दौर में भी कोटा डोरिया साड़ी हैंडलूम से तैयार की जाती है. इस साड़ी का इतिहास करीब 100 साल पुराना है. आज यह न सिर्फ कोटा शहर बल्कि भारत की पहचान बन रही है.

Representational Image: Getty Representational Image: Getty

कोटा से 15 किलोमीटर दूर कैथून कस्बे में दस हजार घरों में 25 हजार बुनकर हाथों से कोटा डोरिया की साड़ी तैयार करते हैं. बुनकर बड़ी ही बारीकी से इन साड़ियों को हाथों से बनाते हैं. दस हजार कीमत की साड़ी को बनाने में करीब 20 दिन का समय लगता है. और दो लाख कीमत की साड़ी को तीन से चार बुनकर करीब तीन महीने में तैयार करते हैं. यह शायद इन बुनकरों के हाथ का ही कमाल है जो देश में ही नहीं दुनिया में भी इसकी एक अलग पहचान है.

क्या है कोटा डोरिया का इतिहास?
कोटा डोरिया साड़ी हैंडलूम से तैयार की जाती है. इस साड़ी की खासियत यह है कि यह हल्की रेशम कपास और सोने व चांदी के तारों से तैयार की जाती है. कोटा डोरिया साड़ियों ने देश-प्रदेश सहित विश्व में अपनी पहचान कायम की है. इसकी वजह यह है कि यह साड़ी कोटा के इतिहास का हिस्सा रही है. कोटा डोरिया साड़ी का इतिहास करीब 100 सालों से अधिक पुराना है. 

मैसूर से आए कुछ परिवारों ने कैथून में कोटा डोरिया साड़ी बनाने का काम शुरू किया था और वह वक्त के साथ-साथ बढ़ता चला गया. कोटा राज परिवार ने इस प्रकार की कला को संरक्षण दिया था. वहीं से इस साड़ी को महत्व मिलने लगा. कोटा डोरिया साड़ी की खास और अहम बात यह है कि इसे तैयार करने में मशीन का प्रयोग नहीं किया जाता है.  यह पूरी तरह हाथों से ही तैयार की जाती है. कोटा डोरिया साड़ी का सालाना करोबार 70 से 80 करोड़ के आसपास रहता है. ये साड़ियां दक्षिण भारत सहित अन्य बड़े शहरों में काफी पसंद की जाती हैं. 

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क्यों खास हैं कोटा डोरिया की साड़ियां?
कोटा डोरिया की साड़ी की खासियत को समझने के लिए शायद पहले यह समझना ज़रूरी है कि बुनकर इसे तैयार करने में अपना कितना समय झोंक देते हैं. यह साड़ी वजन में हल्की होती है. इसे बनाने में असली रेशम के साथ-साथ सोने व चांदी की जरी का काम होता है. सादा साड़ी से डिज़ाइनर साड़ी बनाने में अलग-अलग वक्त लगता है. 
 

सादा साड़ी की कीमत सात हजार रुपए से शुरू है, जबकि डिजाइनर साड़ी की कीमत 15 से 40 हजार तक होती है. एक सिंपल साड़ी तैयार करने में 15 से 20 दिन का वक्त समय लगता है, जबकि डिज़ाइनर साड़ी बनाने में 20 से 25 दिन का समय लगता है. ज़री का इस्तेमाल कर सोने चांदी तारों से बनाने वाली साड़ी बनाने में तीन महीने का समय लगता है. 

मिल चुका है जीआई टैग 
कोटा डोरिया इस शहर की पहचान का ऐसा हिस्सा है कि इसे खास भौगोलिक पहचान के लिए भारत सरकार से इसे जीआई मार्क मिला हुआ है. भौगोलिक सीमांकन (Geographical Identification) मिलने से इन उत्पादों के उत्पादकों को अच्छी कीमत मिलती है और साथ ही अन्य उत्पादक उस नाम का दुरुपयोग कर अपने सामान की मार्केटिंग भी नहीं कर सकते हैं. यानी 12 गांव के अलावा अन्य कहीं ये साड़ियां बनाना अवैध है. 

कोटा डोरीया अध्यक्ष अब्दुल वहिद अंसारी ने बताया कि इस व्यवसाय के कोटा सम्भाग के लगभग नौ हजार पिटलूम (हथकरघा) हैं, जिनमें अकेले कैथून कस्बे में ही छह हजार मौजूद हैं. इसके अलावा आसपास के 12 गांवों में तीन हजार पिटलूम मौजूद हैं. हर दिन यहां 400 से 500 साड़ियां तैयार होती हैं. 

(कोटा से चेतन गुर्जर की रिपोर्ट)